गुरुवार, 18 जनवरी 2018

सुर-२०१८-१८ : #हिंदी_सिनेमा_के_प्रथम_गायक_एवं_नायक_कुंदन_लाल_सहगल



जब दिल ही टूट गया
हम जीकर क्या करेंगे...

कौन होगा जिसने कभी ये गाना न गाया होगा चाहे दिल पर कोई आघात पहुंची हो या फिर जीवन में कोई दुःख आ जाये सबके लबों पर अनजाने ही ये गीत आ जाता जिसे १९४६ में प्रदर्शित होने वाली ‘शाहजहाँ’ फिल्म में उस गायक ने गाया था जिसे हिंदी सिने जगत के प्रथम गायक व नायक के साथ ही पहले सुपर स्टार का तमगा भी हासिल हैं जी हाँ, हम बात कर रहे हैं बाहुमुखी प्रतिभा के धनी ‘कुंदन लाल सहगल’ उर्फ़ ‘के. एल. सहगल’ की जिस तरह की लोकप्रियता उन्होंने हासिल की वैसी आज भी दुर्लभ हैं क्योंकि ये उस समय की बात हैं जबकि देश में सिनेमा ने आँखें खोली ही थी और बोलना सीखा तो वो आवाज़ ‘सहगल साहब’ की थी जो आज भी उसी तरह अपने सुनने वालों को अपनी गायिकी से दीवाना बना लेती हैं कि उसने ही तो अपने बाद के आने वाले सभी गायकों को गाना सिखाया और आज भी न जाने कितने हैं जो उस तरह से गाने का प्रयास करते पर असफल ही रहते कि ऐसे कलाकार तो विरले ही होते जो कभी-कभी ही जन्म लेते और हम सब भाग्यशाली जिन्होंने उन गीतों का वो सुरीला स्वाद चखा जिसने भूला पाना नामुमकिन हैं

दुःख के अब दिन बीतत नाही
सुख के दिन थे एक स्वपन था
अब दिन बीतत नाही मोरे अब दिन बीतत नाही
दुःख के अब दिन बीतत नाही

१९३५ में बनी सहगल की ‘देवदास’ में जब उन्होंने ये गीत गाया तो न जाने कितनों ने अपने धड़कते दिलों को थामकर ये अहसास किया कि वो वाकई धक-धक कर रहा हैं या नहीं कि एक तो वैसे ही ‘देवदास’ का चरित्र गम का पर्याय उस पर ‘सहगल’ की अदाकारी और गायिकी ने कर दिया धमाल तो उसके बाद तो उन्हें जो ओहदा व रुतबा हासिल हुआ वैसा फिर किसी दूजे को न मिला कि वे तो नींव का पत्थर थे जिन्होंने फ़िल्मी जगत को वो ठोस बुनियाद दी जिस पर उसके बाद आने वाले कलाकारों ने ‘बॉलीवुड’ की मजबूत ईमारत का निर्माण किया और इसलिये हिंदी सिनेमा के शुरूआती दौर के उन सभी कलाकारों के योगदान को विस्मृत करना संभव नहीं यदि वे न होते तो आज हम फिल्मों का जो रूप देख रहे हैं वो भी संभव न होता कि ये सब तो उनके ही समर्पण, लगन और मेहनत का ही परिणाम हैं जिसकी वजह से इस उद्योग ने अपने चरम शिखर को छुआ हैं और सबसे बड़ी बात कि उन्होंने ये सब कुछ बिना किसी सुविधा या तकनीक के कर दिखाया जबकि अब तो कंप्यूटर एवं टेक्नोलॉजी की वजह से कुछ भी असंभव नहीं पर, उन्होंने इनके बिना ही कमाल कर दिया था

उन्होंने जब गाया कि ‘एक बंगला बने न्यारा, रहे कुटुंब जिसमें सारा...’ हर दिल का सपना बन आँखों में बस गया इसके अतिरिक्त और भी अनगिनत गाने जिनको याद करें तो रात बीत जायेगी तो आज उनकी पुण्यतिथि पर ‘मैं क्या जानूं क्या जादू हैं, उन दो मतवाले नैनों में’ उनकी मखमली गायिकी और आवाज़ में कि उसे सुनकर सुधबुध खो जाती हैं... ☺ ☺ ☺ !!!    
      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१८ जनवरी २०१८

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