रविवार, 21 जनवरी 2018

सुर-२०१८-२१ : #मासूम_अदाओं_वाली_गीता_बाली



सुन, बैरी बलम सच बोल रे
इब क्या होगा...

‘बावरे नैन’ फिल्म में जब ‘राज कपूर’ के सामने अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों को मटकाती, भोली-भाली अदाओं के जलवे दिखाती हाथ में पल्लू को थामे ‘गीता बाली’ मासूमियत से ये कहती हैं तो उनकी उस बाल-सुलभ चितवन पर देखने वाले को अनायास ही प्यार आ जाता हैं कि उस जमाने में जबकि सभी अभिनेत्रियाँ एक-से-बढ़कर एक थी तब भी ये बात देखने में आती थी कि सबकी अपनी एक अलग ख़ासियत थी जिसकी वजह से उनको पहचानना या उयाद रख पाना मुश्किल न था उस पर उस समय में इतने प्रतिभावान फिल्मकार भी हुये जिन्होंने अपनी तरह से उनकी खुबसूरती और अभिनय का बेहतरीन उपयोग किया जिसका नतीजा कि सभी नायिकाओं के पास अपनी कुछ ख़ास फ़िल्में और किरदार हैं जिनकी वजह से उनको आज तलक भी याद किया जाता हैं ऐसी ही खुशनसीब ‘गीता बाली’ भी थी जिन्हें उम्दा निर्देशकों व लाज़वाब अभिनेताओं का भी साथ मिला तो फिर उन्होंने भी अपने भीतर की नायिका को पूरी तरह से रजत पर्दे पर उभरने का मौका दिया और इस तरह के किरदार उनके रूप में पर्दे पर आये जिनको देखकर ये नहीं लगता कि इन्हें उनके सिवाय कोई दूसरी अभिनेत्री अभिनीत कर सकती थी कि ये तो सिर्फ उनके ही लिये रचे गये थे तभी तो उन्होंने डूबकर ऐसा उन्हें साकार किया कि अब भी जब उनको देखो तो लगता कि ये चरित्र उनके साथ इस तरह एकाकार हो गया कि उसमें से ‘गीता बाली’ को अलग कर पाना मुमकिन नहीं हमें तो उनमें से ही अपनी पसंदीदा अभिनेत्री को ढूँढना हैं जो दिखने में इतनी मासूम और भोलीभाली नजर आती हैं कि उनकी नटखट हरकतें हमारे मन को लुभाती हैं उनका अंदाज हमारा दिल चुरा लेता हैं और जब ‘बाज़ी’ में ‘देव आनंद’ के ‘ये रात ये चांदनी फिर कहाँ सुन जा दिल की दास्ताँ...’ गीत गुनगुनाने पर वो अपने चेहरे के मनोभावों से अपनी भीतर की बैचेनी को दर्शाती तो हम उनकी उस कशमकश को हूबहू उसी तरह से समझ पाते जिस तरह से वो उसको पर्दे पर बखूबी उभारती हैं तो ऐसी अभिनेत्रियाँ जो गीतों में भी अपने पूर्ण अभिनय का प्रदर्शन करती भूल पाना आसान नहीं हैं
   
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२१ जनवरी २०१८

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