शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

सुर-२०१८-१२ : #स्वामी_विवेकानंद_ज्ञान_मोती_०५



आज भारत को आवश्यकता है, लोहे के जैसी मांसपेशियों की और वज्र के जैसी स्नायुओं की भारतवासी बहुत दिनों तक रो चुके हैं, अब और रोने की जरूरत नहीं है... अब जरूरत है अपने पैरों पर खड़े होने की और अपने और अपने राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण की
---‘स्वामी विवेकानंद’

अपनी ओजमयी वाणी से समस्त भूमंडल को जागृत कर अपने कर्तव्यों का बोध कराने वाले और अपने संपूर्ण जीवन से युवाओं को जीने का सही तरीका सीखाने वाले युगपुरुष और भारतभूमि के गौरव कहलाये जाने वाले सूर्य के समान तेजस्वी ज्ञान-विज्ञान की जानकारियों से भरपूर और वैदिक मंत्रों की वैज्ञानिकता का वास्तविक धरातल से संयोग करने वाले ‘स्वामी विवेकानंद’ की आज जयंती हैं जिसे कि ‘युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाना इस बात का द्योतक का जिसने इतनी कम उम्र में ही अपनी आंतरिक ऊर्जा का समुचित उपयोग कर अपने लघु व्यक्तित्व को विराट में रूपांतरित कर सारी दुनिया को बता दिया कि बरसों से नहीं कर्मों से व्यक्ति के जीवन का आंकलन होता हैं उन्होंने ये अहसास होते ही कि जीवन का मूल उद्देश्य मातृभूमि और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना हैं जिसके लिये मार्ग कोई भी हो सकता हैं लेकिन, उसकी मंजिल अपने देश को विश्व पटल पर विश्वगुरु के रूप में स्थापित करना ही हो तो फिर राह की बाधायें भी स्वतः ही सरल हो जाती और कायनात स्वयं ही उसकी सहायता करती कि शुभ संकल्प व्यक्ति का निज नहीं सार्वभौमिक होता तो भूतल की प्रत्येक जड़-चेतन वस्तु प्रत्येक प्राणी उसके प्रति सहाय हो जाता और ऐसे में यदि उसके पथ में कोई अड़चन आ भी जाये तो उसे निर्मूल नष्ट करने की वजह भी स्वयं ही पैदा हो जाती हैं

“संघर्ष जितना कठिन होता है, सफलता भी उतनी हीं बड़ी मिलती हैं”

उनका मानना था कि “जिंदगी में हमें बने बनाए रास्ते नहीं मिलते हैं, जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए हमें खुद अपने रास्ते बनाने पड़ते हैं, निरंतर सीखते रहना हीं जीवन है और रुक जाना हीं मृत्यु है” इसे उन्होंने केवल कहा नहीं अपने जीवन में उतारा भी तभी तो दूसरों के लिये प्रेरणास्त्रोत बन सके उन्होंने हमेशा ही अपने उपदेशों से युवाओं को राह दिखाई वे हमेशा कहते थे कि, “ब्रम्हाण्ड की सारी शक्तियाँ पहले से हीं हमारे भीतर मौजूद हैं ये तो हम हीं मूर्खता पूर्ण आचरण करते हैं, जो अपने हाथों से अपनी आँखों को ढंक लेते हैं और फिर चिल्लाते हैं कि चारों तरफ अँधेरा है, कुछ नजर नहीं आ रहा है” हमारी स्वाभाविक आदतों और कमजोरियों पर उन्होंने सदैव अपनी वाणी से प्रहार किया वे युवाओं को सदैव सजग, सतर्क और कर्मरत देखना चाहते थे साथ ही उनको अपनी दुर्बलता से लड़ने के मंत्र दिया करते थे कि, “जो भी चीज तुम्हें कमजोर बनाती है, उन चीजों को जहर समझकर त्याग दो तभी तुम उन्नति कर पाओगे ठोकरें खाने के बाद हीं अच्छे चरित्र का निर्माण होता है और निर्भय व्यक्ति हीं कुछ कर सकता है, डर-डर कर चलने वाले लोग कुछ नहीं कर सकते हैं. किसी भी चीज से डरो मत तभी तुम अद्भुत काम कर सकोगे निडर हुए बिना जीवन का आनंद नहीं लिया जा सकता है स्वतंत्र होने की हिम्मत करो” जिसने भी इन वाक्यों को ग्रहण कर लिया मानो अपने जीवन को सार्थकता प्रदान कर दी

“किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं”

नवयुवकों को उनका साहित्य पढ़कर उनको जानने का प्रयास करना चाहिये जो निश्चित ही उनके लिये एक अद्भुत प्रेरणादायी अनुभव रहेगा और वे उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं कि उन्होंने छोटी-से-छोटी बातों को भी महसूस कर युवाओं को ये बताने का प्रयत्न किया कि, “लोग तुम्हारी प्रशंसा करें या आलोचना, तुम्हारे पास धन हो या नहीं हो, तुम्हारी मृत्यु आज हो या बड़े समय बाद हो, तुम्हें पथभ्रष्ट कभी नहीं होना चाहिए तुम्हारे विचार तुम्हें जहाँ तक ले जाते हैं वहां तक जाने की हिम्मत करो और अपने विचारों को जीवन में उतारने की हिम्मत करो जिस व्यक्ति के साथ श्रेष्ठ विचार रहते हैं, वह कभी अकेला नहीं होता हैं”
      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१२ जनवरी २०१८

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