गुरुवार, 4 जनवरी 2018

सुर-२०१८-०४ : #सुर_में_रोने_वाले_संगीतज्ञ



यूँ तो अमूमन लोग संगीत के शौक़ीन होते हैं लेकिन, उसके बाद भी उनको अपने पसंद के गाने तो याद होते और अक्सर उन्हें गाने वाले भी लेकिन, यदि उनसे उसके संगीतकार का नाम पूछे तो बगलें झाँकने लगते कि बहुत कम ही ऐसे होते जो अपनी रूचि के बारे में हर जानकारी रखते फिर भी कोई शख्सियत ऐसी होती जो अपनी असीमित प्रतिभा से कला की ही पर्याय बन जाती और लोगों से यदि उसके बारे में पूछा जाये तो बेसाख्ता ही मुंह से वो नाम निकल आता जो अपनी पहचान इस कदर अपने चाहने वालों के मध्य कायम करता कि उसे भूल पाना नामुमकिन होता गीत-संगीत की दुनिया में अपने हद से बढ़कर जुनून और असीमित क्षमताओं से ऐसा ही आदमकद व्यक्तित्व हासिल किया ‘आर. डी. बर्मन’ या ‘राहुल देव बर्मन’ ने जिनके बारे में मशहूर हैं कि वे रोते भी सुर में थे जिसकी वजह से उनको ‘पंचम दा’ नाम दिया गया

न जाने कितने ही गायकों और कलाकारों को उन्होंने अपने संगीत से नाम और एक मुकाम दिया कि उनका हुनर व कार्यक्षमता का आलम तो ये था कि अपने दौर में वो एक साथ कई फिल्मों में एक समान गुणवत्ता का संगीत दे सकने में सक्षम थे । यही वजह कि १९७२ में उन्होंने एक साथ १९ फिल्मों के लिये एक साथ म्यूजिक तैयार किया और उनका बनाया हर एक गीत लोगों की जुबान पर इस तरह से चढ़ जाता कि फिल्म में उनका होना ही सफलता की गारंटी माना जाता । संगीत के प्रति उनकी दीवानगी का आलम ऐसा था कि अक्सर किसी आवाज़ को उसके मूल स्वरूप में कैद करने घंटों बिना खाये-पिये लगे रहते एक बार तो बारिश की टिप-टिप को प्राकृतिक रूप से रिकॉर्ड करने उन्होंने बारिश की पूरी रात अपनी बालकनी में ही गुज़र दी क्योंकि वे इसे कृत्रिम रूप से पैदा नहीं करना चाहते थे । आज भी उनके गीत सर्वाधिक रीमिक्स किये जाते हैं जो स्वतः ही दर्शाते कि आज की पीढ़ी भी उनकी दीवानी हैं और उनको सुनना पसंद करती हैं तभी तो अपने जमाने में भी वो सबके प्रिय थे ।

संगीत उनको अपने पिता ‘सचिन देव बर्मन’ से विरासत में मिला जिसे उन्होंने अपनी ईश्वर प्रदत्त अनूठी काबिलियत से इस तरह नया रंग-ढंग दिया कि वो उनकी पहचान बन गया और धुन सुनकर ही कोई बता सकता कि ये उनकी बनाई हुई हैं । ऐसे प्रयोगधर्मी अद्भुत कलाकार अपने काम को अधुरा छोडकर असमय ही हमसे दूर चले गये लेकिन, अपनी रची धुनों और गीतों को हमारे लिये छोड़ गये जिनको सुनकर हम उनको अपने करीब महसूस करते । आज उनके जन्मदिवस पर सभी संगीत प्रेमियों की तरफ से उनको बहुत-बहुत शुभकामनायें... इन शब्दों के साथ कि एक संगीतकार को सुना तो ऐसा लगा... जैसे कोयल का राग, जैसे मुर्गे की बांग, जैसे बजती जलतरंग, जैसे टिप-टिप गिरती बारिश की बूंदें... जैसे मंदिर में हो बजता साज़... !!!
                 
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०४ जनवरी २०१८ 

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