सोमवार, 8 जनवरी 2018

सुर-२०१८-०८ : #विवेक_ज्ञान_मोती_०१


'नरेंद्रनाथ दत्त' का पृथ्वी की ‘भारत भूमि; पर अवतरित होना महज़ संयोग या ग्रह-नक्षत्रों का कोई षड़यंत्र नहीं बल्कि, इस धरा से किया गया एक अधूरा वादा था जिसे पूरा करने उनको दुबारा जनम लेकर आना ही था कुछ जो अधूरा छूट गया था उसे सिर्फ वही आत्मा पूर्ण कर सकती थी तो पुनः अल्पायु लेकर वो इस देश में आई प्रारंभ में कुछ दिग्भ्रमित-सी भटकती भी रही लेकिन, फिर जिस तरह से पारसमणि सदृश ‘गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस’ का वरदहस्त और सानिध्य मिला तो ‘स्वामी विवेकानंद’ में परिवर्तित होकर उनको अपने लक्ष्य ही नहीं जीवन के उद्देश्य का भी ज्ञान हुआ तब बिना रुके, बिना थके वे अनवरत चलते रहे उस असाध्य ध्येय को पाने जिसके बाद जीवन निरर्थक हो जाता तभी तो उसको पाते ही समस्त भूमण्डल को अपने उस प्रखर ज्ञान की रश्मियों से प्रकाशित कर वो दिव्य ज्ञान ज्योत बुझ गयी लेकिन, अपने पीछे चलने वालों को सदैव सत्य पथ दिखाने अपने पीछे विवेक साहित्य के रूप में ज्ञान का असीम भंडार छोड़ गई जिसे आत्मसात कर कोई भी सूर्य की भांति आभामय व्यक्तित्व में बदल जग को रोशन कर सकता हैं ।

उसी विवेक ज्ञान को आप सबके बीच वितरित करने का एक छोटा-सा काम हम भी एक श्रृंखला का आयोजन कर प्रतिवर्ष करते तो आज साल के दूसरे सप्ताह के पहले दिन से उस विराट व्यक्तित्व के अवतरण दिवस 12 जनवरी तक 'विवेक ज्ञान मोती' इस श्रृंखला का 5 किश्तों में प्रकाशन किया जायेगा इस सदप्रयास के साथ कि हम उनके संदेशों को महज दोहराये या रटे नहीं बल्कि अपने जीवन में उतार लें तो केवल हमारी ही नहीं दुनिया की बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो जाये क्योंकि उन्होंने सतत चिंतन-मंथन से ऐसे गहन अनुसंधान किये जिनके उपरांत उन्होंने जो निष्कर्ष निकाले वो अद्भुत और अनुकरणीय हैं परंतु, उनका अक्षरशः पालन करने की जगह हमने हमेशा की तरह उन्हें पूज्यनीय बनाकर संग्रहित कर लिया  तो ऐसे में उनका वो परिणाम नहीं निकला जो होना चाहिये था और इस बार ही नहीं हमेशा ही ऐसा हुआ जब-जब भी इस धरती पर कोई भी महान आत्मा हमको ये संदेश देने आई कि हम अपने जीवन के रहस्य को समझ उसे व्यर्थ न गंवाये हमने उसे समझकर भी ग्रहण करने की जगह संचित कर लिया ।

‘स्वामी विवेकानंद जी’ को ‘युथ आइकॉन’ मानने की वजह यही थी कि उन्होंने युववस्था में ही वो कर दिखाया जो कोई आजीवन नहीं कर पाता और उस उम्र में जहां को अलविदा कह दिया जबकि लोग स्वयं को न पहचान पाते उन्होंने अपनी संचय ऊर्जा का जिस तरह से उपयोग किया वही हमें भी उनकी जीवन गाथा से सीखना हैं तो इसे बार-बार पढ़कर हो सकता किसी दिन हमारी भी कुंडलिनी जागृत हो जाये और हमारी भटकन को अपना पड़ाव मिल जाये तो ऐसे सुविचार के साथ हर बरस हम एक लंबी श्रृंखला लिखते कि शायद, कोई आत्मा खुद को पहचान ले जिस तरह उन्होंने जाना । इसी शुभकामना के साथ प्रस्तुत हैं ये प्रथम कड़ी... =D =D =D !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०८ जनवरी २०१८ 

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