शनिवार, 1 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२५१ : #शब्द_उदास_हैं #और_कलम_बीमार




बीत गये...
न जाने कितने लम्हें
लिये कलम बैठी हूं देर से बड़ी
शब्द उतर ही नहीं रहे
कागज़ कोरा का कोरा पड़ा
बैठे-बैठ न जाने कब
बंद हो गई पलकें मूंद गयी आंखें
शब्द सारे दिखे सशरीर
पहने हुये सफेद लिबास उदास
पूछा, जो वजह इसकी क्या?
तब दुखी स्वर में बोले,
बहुत गिर गया साहित्य का स्तर
छंद भी हो रहे लुप्त
कवि-सम्मलेनों में गूंज रहे ठहाके
सुनाये जा रहे चुटकुले
देखकर कविता का ये हाल
कलम हो गयी बीमार
वेंटिलेटर पर ले रही अंतिम सांस
ऐसे में हम क्यों न हो उदास?
सुनकर उसका ये जवाब
खुल गई एक झटके से मेरी आँख
कलम से किया वादा
न लिखूंगी कभी निरर्थक बेकार
शब्द निकल पड़े कलम से बेहिसाब
व्यक्त किये ये उद्गार
जो आप सब पढ़ रहे जनाब ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०१ सितंबर २०१८

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