सोमवार, 10 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२५१ : #बने_चाहे_किसी_की_सरकार #लगा_नहीं_सकती_महंगाई_पर_लगाम




ज्यादा पीछे जाकर भी यदि नहीं देखें तब भी महज़ एक या दो साल पहले की ही कीमतों से आज की कीमत का मिलान करें फिर चाहे उत्पाद कोई भी हो तो हम पाते है कि उसमें थोड़ी-या ज्यादा वृद्धि हुई हैं जो यह दर्शाता कि समय की सुइयों के साथ ही महंगाई की रफ्तार भी बढ़ती अंतर केवल इतना कि जो चीज़ हम खरीदना चाहते या जो हमें पसंद उसकी बढ़ती कीमतें हमें परेशान नहीं करती चाहे फिर वो कितनी भी ज्यादा क्यों न हो

यदि ऐसा नहीं होता तो समय-समय पर महंगे-से-महंगा मोबाइल या कोई भी गेजेट्स खरीदना हो या कोई ड्रेस या न्यू मॉडल की गाडी लेना हो या मोबाइल या सेटेलाईट टी.वी. रिचार्ज कराना हो या दोस्तों के साथ पार्टी करना हो या किसी भी तरह का कोई भी सामान लेना हो चाहे उसकी आवश्यकता हो या न हो महज़, ऑफर के चलते उसे यूँ ही लेकर घर के किसी कोने में पड़े रहने देना हो हम तनिक भी विचार नहीं करते और फटाक से उसे खरीद लेते हैं

हाँ मगर, जब भी बात पेट्रोल या डीजल या अपने स्वास्थ्य की हो हम बेहद विचार करते जबकि, ये खर्चे हमारी दिनचर्या के हिस्से जिनको टालना आसान नहीं और जो इतने अधिक भी नहीं बढ़ गये कि हमारी पहुंच से बाहर हो गये हो लेकिन, हमारी तो आदत में शुमार कि बेवजह के खर्च हमें कभी नहीं अखरते पर, जब भी बात प्याज-दाल या पेट्रोल-डीजल या घरेलू गैस की हो तो हम इस तरह से दर्शाते मानो ये कोई सामने वस्तुएं नहीं ऑक्सीजन हो

इसके विपरीत जिससे हमें प्राणवायु मिलती जिसके बिना हम जी नहीं सकते उस प्रकृति के प्रति हद दर्जे के लापरवाह होते क्यों ? क्योंकि मुफ्त की चीजों के प्रति ये नजरिया पैदाइशी होता तो उस तरफ हमारा ध्यान तक नहीं जाता पर, इन तमाम सामान्य सी चीजों जिनके बिना हम काम चला सकते हमारे लिये अचानक से बेहद जरूरी हो जाती जबकि, इसके पूर्व हम सब बिना गाड़ियों के भी बड़े मजे से जी ही रहे थे और स्वस्थ भी थे कि साइकिल चलाने से हमारी एक्सरसाइज भी हो जाती थी

आजकल चूँकि स्टेट्स और ब्रांड्स का जमाना तो उसके अनुसार न मजबूरी कहकर महंगे-से-महंगा प्रोडक्ट भले घर का बजट बिगड़ जाये ले लेते क्यों न ले, भई बात तो शौक की हैं और जब शौक की हो तो जुमला हाज़िर हैं कि ‘शौक बड़ी चीज़ हैं’ जिसके लिये लाखों भी बर्बाद हो तो शिकन नहीं आती पर लाखों की उस गाडी में पेट्रोल या डीजल भराते समय हमरी सोच इस कदर हम पर हावी हो जाती कि उसके लिए हम भारत बंद जैसे बड़े कदम उठाने से भी नहीं हिचकते

यहाँ तक कि यदि सरकार बदलना पड़े तो भी एक पल को भी गंभीरता से इस पर सोचना नहीं चाहते आखिर हमारा वक़्त तो सोशल मीडिया के पास गिरवी पड़ा जहाँ बेकार के मैसेज ठेलकर हम एक दिन में ही न जाने कितनी क्रांतियों को अंजाम दे देते ऐसे में कुछ देर बैठकर ये सोचना कि देश के लिये क्या अच्छा है या क्या बुरा खतरों के खिलाडी के टास्क भी जयादा डिफिकल्ट लगता तो हम उसमें सर खपाने की जगह ये सही समझते कि इस बार किसी दूसरी पार्टी या दल को वोट दे देंगे और हमारी सभी समस्या उसका अल्लादीन का जिन चुटकी बजाते ही हल कर देगा

ऐसा करने के बाद भी नहीं सोचते और फिर वहीं गलती दोहराते जिससे होता क्या हैं ? सरकार बदल जाती, चेहरे बदल जाते और समस्यायें या महंगाई वहीँ की वहीँ क्योंकि, असलियत यही कि चाहे कोई भी सरकार हो वो महंगाई के बढ़ते कदम या चाल को न तो रोक सकती और न ही धीमा कर सकती क्योंकि, ये तो समय की तरह उसके अधिकार या कार्यक्षेत्र दूसरे शब्दों में बोले तो एजेंडे में शामिल होकर भी सिलेबस के बाहर का टोपिक जिस पर नियंत्रण नामुमकिन

इसलिये जब भी कोई दल या नेता इस तरह की बात करें तो उस पर कान ही न दे हमारे बाप-दादाओं के जमाने से आज तक नजर डालिये चाहे नमक हो या सोना या फिर कोई भी सामान सबके दाम पूर्व से अधिक ही हैं कम नहीं, तो फिर कोई इसे कम करने करने का दावा किस तरह से कर सकता इसलिये सोचे तो पाएंगे कि इस तरह के भ्रामक प्रचार में पड़ना ही दरअसल समय की बर्बादी है न कि कुछ वक़्त रूककर महंगाई के पिछले आंकड़ों और रिपोर्ट्स का आंकलन करने में जो हमें लगता जिसकी वजह से किसी भी पचड़े में पड़ने की जगह हमें अपना कीमती मत सस्ते में दे देना सरल लगता

इसलिये अब समय आ गया कि हम यदि शिक्षित हैं तो राजनीती को भले न समझे मगर, देश के लिये क्या उचित या अनुचित उस पर थोड़ा-सा ही सही अभी से सोचना शुरू कर दे तो चुनाव के समय तक तस्वीर साफ़ हो जाएगी कि जो ये कह रहे कि हम आ जायेंगे तो पेट्रोल-डीजल सस्ता हो जायेगा वो सिर्फ एक झांसा जिसमें आकर हम एक बार फिर-से बुद्धू बन जायेंगे वैसे भी जब सवाल देश का हो तो लालच में नहीं आना चाहिये भले, थोड़ा महंगा पड़े पर, वही लेना चाहिये जो उसके लिये सर्वश्रेष्ठ हो क्योंकि, हमने बचपन से यही तो सुना हैं न कि सस्ता रोये बार-बार... अब आप स्वयं निश्चय करें कि रोना है या हंसना है... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१० सितंबर २०१८

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