शनिवार, 15 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२५६ : #मोक्षगुंडम_विश्वेश्वरैया_की_बौद्धिक_क्षमता #देश_को_दिलाई_जिसने_पहचान_और_आधुनिकता




भारत भूमि सिर्फ सोना-चांदी या हीरे-मोती ही नहीं उगलती बल्कि, इसकी कोख़ से ऐसे अनमोल मानव रूपी रत्न भी जनम लेते जो अपनी प्रतिभा-हूनर से फिर इसका ऋण अदा करते जिन्हें हम ‘भारत रत्न’ कहते आज ऐसे ही एक नायाब नगीने ‘मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया’ की जयंती हैं जिसने इंजीनियर के रूप में अपने वतन के लिये ऐसा अद्भुत काम किया कि न केवल उन्हें सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया बल्कि, उनके जन्मदिन १५ सितंबर को ‘अभियंता दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा ताकि हम सब एक साथ न केवल उनके प्रति अपने मनोभाव प्रकट कर सकें बल्कि, उनके ही समान ऐसे सभी इंजीनियर्स का भी शुक्रिया अदा कर सकें जिन्होंने हमारे देश को इस शिखर पर पहुँचाया कि विदेशों में भी इसकी शिल्पकला का गुणगान किया जाता जहाँ कि इमारतों की अभुतपूर्व कारीगरी और वास्तुकला की आज भी देखने वालों को चमत्कृत कर देती है

न जाने ये कैसे लोग थे जिन्होंने आर्थिक अभाव और हर तरह की सुविधाओं की कमी के बावजूद भी उस दौर में जबकि, देश गुलाम था और तकनीकी शिक्षा के लिये भी उतनी व्यवस्थायें नहीं थी इन्होने न केवल अपनी काबिलियत से ही उसे हासिल किया बल्कि, अंग्रेजों को भी अपनी प्रतिभा से इस तरह प्रभावित किया कि उन्हें ये मनाना पड़ा कि कुछ तो बात है इस देश में जहाँ के लोग किस भी तरह के हालात से घबराते नहीं उसका डटकर मुकाबला करते हैं तो जब ‘मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया’ को सरकारी पद पर कार्यरत रहते हुये कुछ कर दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ तो उन्होंने प्राकृतिक जल स्त्रोतों से प्राप्त होने वाले जल जिसे भरने के लिये लंबी दूरी टी करनी पड़ती थी उसे घर-घर में पहुंचा दिया और कीचड़ व गंदे पानी की निकासी के लिये भी नदी-नालों की ऐसी सुनियोजित व्यवस्था की जिसे देखकर फिरंगी भी विस्मृत रह गये तो उन्हें ऐसी जगह में पानी की समस्या हल करने भेजा जहाँ ये एक दुष्कर कार्य था याने कि ‘सिंध’ पर, उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार कर सफ़लता प्राप्त कर ये साबित किया कि उनके पास हर एक मुश्किल का हल है उनके इस असाधारण कार्य के लिये सरकार ने उन्हें केसर-ए-हिंद की उपाधि देकर सम्मानित किया

अपनी अप्रतिम बौद्धिक क्षमता व मौलिकता के प्रयोग से उन्होंने ऐसे अनगिनत काज किये जो उनके जाने का बाद भी उनकी स्मृति के रूप में हमारे बीच में शेष है जैसे खेतों में सिंचाई के लिये नहर व बांध का निर्माण करना या विद्युत् ऊर्जा के लिये पॉवर स्टेशन बनाना या फिर देश को आर्थिक रूप से सृदृढ बनाना ही उन्होंने अंतिम समय तक ये काम किया क्योंकि, उनका मानना था कि इसी तरह से अंग्रजों को जवाब दिया जा सकता है तो अथक-अनवरत देश को मजबूत बनाने की दिशा में कार्यरत रहे और आज़ाद भारत में भी उनकी सोच व कार्यक्षमता में कोई कमी नहीं आई जिसकी वजह से उन्हें सन् 1955 में भारत रत्न प्रदान किया गया तब उन्होंने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी को लिखा, 'अगर आप यह सोचते हैं कि इस उपाधि से विभूषित करने से मैं आपकी सरकार की प्रशंसा करूँगा, तो आपको निराशा ही होगी। मैं सत्य की तह तक पहुँचने वाला व्यक्ति हूँ।'

उस समय में इस तरह की सच्चाई बयान करने का हौंसला करने वाले आधुनिक भारत के शिल्पकार ‘मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया’ की जयंती पर उनको शब्द सुमन व ‘अभियंता दिवस’ पर सभी इंजीनियर्स को बहुत-बहुत शुभकामनायें... और ये संदेश कि अब जबकि, सभी सुविधायें व तकनीक उपलब्ध है तब उनकी निष्ठा में ही कमी है जो वे इस तरह से निर्माण या नवीन अनुसंधान नहीं कर पा रहे है       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१५ सितंबर २०१८

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