शनिवार, 29 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२७० : #विश्व_हृदय_दिवस_रोज_मनाओ #खुद_को_पूर्ण_स्वस्थ_निरोगी_बनाओ




ज़िन्दगी जिन्दादिली का नाम है
मुर्दा दिल भी क्या ख़ाक जिया करते है 

वाकई, जीवन में जितनी हलचल हो जितनी ज्यादा उच्छल-कूद और उतार-चढ़ाव वो उतनी ऊर्जावान जीवन्त नजर आती जिस दिन शांत होकर थम जाती उस दिन जीवित होते हुये भी इंसान का वजूद मृतवत ही दिखाई देता कि जहाँ इक तरफ मौन व शांति जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करना दर्शाता जिसके लिये साधक अनंत काल तक तपस्या करता हुआ कभी एक टांग पर तो कभी अपनी देह को भूलाकर ध्यानस्थ हो प्रतीक्षा करता तो दूसरी तरफ कार्डियोग्राम पर जब एक सीधी लकीर उभरती तो जीवन को बचने में लगा चिकित्सक ही उस शख्स के न होने की सूचना देता है

इस तरह संघर्षों की लहरों पर थपेड़े खाता दहाड़ें मारता हुआ उछलता-गिरता सांसों की तरंग पर हिलोरें मारता हुआ अहसास जहाँ जीवन का प्रतीक वहीँ सपाट-नीरस, कांतिहीन सांसों को बोझ समझकर ढोता हुआ जीवित व्यक्ति भी मृतक समान और सीधी रेखा मृत्यु का संकेत फिर भी न जाने क्यों अक्सर, इंसान जीवन में आने वाले दुखों व तकलीफों से घबरा जाता उसकी भीतर जीने का जज्बा खत्म हो जाता तो ऐसे में वो उस वरदान स्वरुप अनमोल जीवन को अपने ही हाथों स्वयं मिटा देता जबकि, थोड़ा-सा सब्र कर लेता या खुद को इतना मजबूत बना लेता कि इस तरह के हालातों को सम्भालना उसे इतना कठिन नहीं लगता तो बात बन सकती थी

ये जीवन सिर्फ़ सांसों से ही नहीं हृदय की धड़कन से भी संचालित होता तो फिर हमें इन दोनों की ही फ़िक्र करना चाहिये न मगर, हम क्या करते जीभ के आगे मजबूर होकर सब कुछ उलुल-जुलूल खाते जाते जिसका खामियाजा आगे चलकर कमजोर सांसों व कमजोर हृदय के रूप में भुगतना पड़ता फिर भी समझ न आता और हम एंजियोप्लास्टी, बायपास सर्जरी न जाने कितने उपकरणों की मदद से प्राकृतिक दिल को कृत्रिम बनाकर जिये जाते फिर भी अपनी हरकतों से बाज न आते जबकि, ये इतना भी कठिन भी नहीं पर, अपने आलस-प्रमाद की वजह से हम लापरवाही पर लापरवाही करते जाते है  

आज के समय में हृदय के लिये केवल, गलत खान-पान ही नहीं मोबाइल टावर, स्मार्ट फोन्स, लैपटॉप जैसे अत्याधुनिक गेजेट्स भी है जिनसे निकलने वाली तरंगें हमें असमय ही रोगी बना देती पर, हम न तो अपनी जीभ और न ही अपने मोह पर ही काबू रख पाते इसलिये इनके शिकार होते फिर सब कुछ जानने का क्या फायदा जब हम उसका लाभ ही न उठाते आज भी किसी से पूछो तो वो न जाने हृदय को स्वस्थ रखने के कितने नुस्खे बता देगा पर, खुद ही उनको न आजमाता होगा क्या सुबह जल्दी उठाना, टहलना, व्यायाम करना या सात्विक भोजन ग्रहण करना इतना कठिन है कि हम ये जानते-बुझते भी कि जो फ़ास्ट फ़ूड हम खा रहे वो हमारी सेहत के लिये हानिकारक हम फिर भी खाते, योगासन या प्राणायाम हमारी आयु को बढ़ा सकते हमारे जीवन के लिये लाभदायक फिर भी हम नहीं करते है क्यों???   

हृदय की रक्षा करना मोबाइल चलाने जितना ही सरल बल्कि, मोबाइल पर भी उसके लिये अनगिनत टिप्स उपलब्ध है पर, उनको पढ़ना जितना सरल अमल में लाना उतना ही कठिन इसलिये इस तरह के दिवस का आयोजन करना पड़ रहा अन्यथा हमारे ऋषि-मुनियों ने तो हजारों बरस पूर्व ही स्वस्थ, निरोगी दीर्घायु जीवन के अनेक सूत्र दे दिये पर, हम तो पाश्चात्य सभ्यता के भोगी बन रहे तो योगी बनकर किस तरह जी सकते इसलिये एक-दो दिन इस तरह के दिवस मनाकर स्वस्थ होने का भ्रम पाल लेते ब्रम्ह को समझने की जेहमत कौन उठाये तो एक दिन के विश्व हृदय दिवस की सबको हार्दिक शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ सितंबर २०१८

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