शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२६९ : #इश्क़_करो_देश_से_अपने #भगत_सिंह_ये_गये_कह_के




मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम,
मैँ 'इश्क' लिखना चाहूँ तब भी 'इन्कलाब' लिख जाता है...

ख़ुशी होती हैं जब आज के युवाओं को ‘भगत सिंह’ का नाम लेती देखती हूँ और उनकी जयंती पर वे बड़े उत्साह से विविध आयोजन भी करते है तो लगता है कि नाउम्मीदी के बीच आशा की ये किरणें है जब तक तब तक मायूस होने की कोई आवश्यकता नहीं है

क्योंकि, देश की आज़ादी के लिये अपनी जिंदगी और जवानी को यूँ हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ा देना आसान नहीं होता वो भी तब जबकि, विकल्पों की कमी आपके पास भी नहीं हो ऐसे में यदि आप अपनी इच्छा से ‘मौत’ को चुनते तो ये आपकी देश के प्रति वफादारी ही नहीं आपकी मानसिक परिपक्वता और निर्णय लेने की क्षमता को दर्शाता है

यूँ तो किसी वजह से क्षणिक जज्बा तो सबके भीतर ही जगता लेकिन, उसको दिशा व मंजिल देना सबके बूते की बात नहीं यदि ऐसा नहीं होता तो उस दौर में जबकि, देश की जनसंख्या या नौजवानों की संख्या कम नहीं थी और पूरे वातावरण में चारों तरफ विवशता, मजबूरी, गुलामी के ही दृश्य बिखरे पड़े थे तब भी चंद नहीं अनगिनत उभरकर सामने आ सकते थे

फिर भी जो सामने आये उन्होंने दूसरों को भी राह दिखाई कि ये जन्म, ये जीवन सिर्फ अपने जीने के लिये नहीं है वो भी तब जबकि, अपने ही परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़े हो तो ऐसी हवा में सांस लेना भी अन्याय है इसलिये भले, जान चली जाये या भले ही हम आज़ादी का सुख नहीं ले पायें फिर भी लड़ना और लड़ते-लड़ते शहीद हो जाना ही धर्म है

यही तो ‘भगवान् श्रीकृष्ण’ ने भी ‘श्रीमद्भाग्वाद्गीता’ में कहा था कि मूक-बेबस अत्याचार को सहन करते हुये लम्बा जीवन जीने से अपने हक के लिये लड़ते हुये कम उम्र में मरना श्रेयस्कर है तो क्यों न फिरंगियों के खिलाफ़ आवाज़ उठाई जाये दुश्मनों को उनके ही घर में जाकर ललकारा जाये और ये बताया जाये कि अब जो पीढ़ी उनके सामने है वो चुपचाप तमाशा नहीं देखेगी सरकार को अपनी पावन भूमि छोड़ने को मजबूर कर देगी

यदि भारतमाता का एक लाल कम भी हो गया तो गम नहीं अपनी आज़ादी को पाने अपने देश पर मर मिट जाने वालों की कमी नहीं इतनी बड़ी फ़ौज हम तैयार कर जायेंगे जो जंगे आज़ादी को हमारे मिटने के बाद भी जारी रखेगी तो अपने इस सपने को पूरा करने उन्होंने ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ का नारा ही नहीं दिया उन्हें बताया कि ये उम्र इश्क़ करने की जरुर हैं पर, किसी हसीना से नहीं बल्कि अपनी भारतमाता से जिसके बिना हम नहीं

वैसे भी वो जीवन जो दूसरों के काँधे पर गुज़ारा जाये जनाजे के समान है अपने दम पर अपनी ज़िन्दगी अपने कंधे पर ही जीना जीवन को वास्तविक मायने देता है...         

जिन्दगी तो अपने दम पे जीती जाती है,
दुसरो के कांधो पे तो जनाजे उठा करते है
 
आज उस साहसी, पराक्रमी, वीर सपूत की जयंती पर सदर नमन जिसने सच कहा था कि, मुझे समाप्त किया जा सकता है मेरे विचारों को नहीं वो मेरे मरने के बाद भी अगली पीढ़ी को प्रेरणा देते रहेंगे तो वही हो रहा है... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ सितंबर २०१८

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