ओ मन...
बन बंजारा
लाद चाहतों की
गठरी
साथ रख अपने
हौंसलों और
धैर्य का असबाब
चलता चल हर डगर
साँसों के साथ
चलता रहे सफर
फिर कहाँ
मिलेंगे ये पल
फिर कहाँ साथ
रहेगा यौवन
क्या पता कब थम
जाये
किस स्टेशन पर
खड़ा हो जाये
रेलगाड़ी-सा
चलता जीवन
उससे पहले ही तू
तय कर ले
अपनी मंजिल का पथ
कब रुका है
किसी के लिए भी
समय का घूमता पहिया
कब पकड़ सका है
कोई भी
उम्र की बढती रफ्तार
क्या पता कब,
कहाँ आ जाये
मुश्किलों का फरमान
क्या जाने कब
कहाँ किस मोड़ पर
मौत कर रही हो
इंतज़ार
भरोसा नहीं
किसी भी क्षण का यहाँ
इतनी अविश्वसनीयता
के बीच
न जाने किस
निश्चिंतता में तू बैठा है
अपने विश्व
भ्रमण सपने को तूने
किस आशा पर
भविष्य में रख छोड़ा है
न हो मुमकिन
गर, जाना तो भी
एक कदम तो आगे
बढ़ा
रास्ता
खुद-ब-खुद चलकर आयेगा
तेरे हिम्मती कदमों
के तले
कोशिशों की
पतंग को ऊँचा तो उड़ा
कटने के डर से
न पीछे भाग
सबको न मिलता
यहाँ
कुदरत के हाथों
बना ये जहान
देख फिर से ‘विश्व
पर्यटन दिवस’ आया
धुंधला ही सही मगर
उसने
तेर वो पुराना
ख्व़ाब याद दिलाया
जो देखा था कभी
तूने
पढ़ा था जब देश
का इतिहास
सोचा था एक दिन
जरुर
उन किलों, उन
खंडहरों, उन स्थलों
हर एक उस जगह
पर जायेगा
उस धरती पर अपना
सर झुकायेगा
गिरा जहाँ
शहीदों का रक्त
जहाँ देशभक्तों
ने लगाई जान की बाजी
इससे पहले कि
देर हो जाये
आ चल अपने देश
को जी-भर देख आये
न जाने फिर
कैसा हो इसका अक्स
न जाने फिर ये कितने
टुकड़ों में बंट जाये
न जाने कैसे हो
इसके नैन-नक्श
अखंड भारत तो
रहा नहीं
कहीं खंड-खंड
होकर खंडित ही न हो जाये
आ देश को जोड़ने
का संकल्प ले
चल उठ भारत
भ्रमण करें ।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
२७ सितंबर २०१८
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