मंगलवार, 4 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२३५ : #प्रेम_की_पालिसी_ली_है_तो #नियमित_निवेश_भी_जरूरी_है




‘समायरा’ आज बेहद खुश थी क्योंकि, बड़े दिनों के बाद ‘विधान’ ने उसके साथ बाहर घूमने का प्लान बनाया था नहीं तो जब देखो तब उसे काम से फुर्सत ही नहीं जबकि, यही ‘विधान’ जब उनका रिश्ता शुरू दोस्ती की डगर पर शुरू हुआ था दिन-रात एक कर दिया करता था जब देखो तब ऑनलाइन बैठा रहता कि ‘समायरा’ अपना मोबाइल ऑन करे और वो उससे बात कर के ही अपने दिन की शुरुआत करे फिर दोपहर को उसके डांटने पर काम छोडकर लंच करे और जब रात हो तो दोनों दूर-दूर बैठकर भी की-बोर्ड के जरिये एक-दूसरे की छुवन को महसूस करें और अपने भविष्य की तस्वीर बनाये

इस तरह उनका हर दिन गुजरता जिसमें यदि समायरा किसी भी वजह से थोड़ी-सी भी देर कर दे तो विधान बेचैन हो जाता जब तक कि उसकी आवाज़ न सुन ले या उसका कोई मैसेज न पा ले दिनों-दिन उन दोनों की घनिष्ठता बढ़ती ही जा रही थी तब एक दिन विधान ने ही इस दोस्ती को प्यार में बदलने का इसरार किया जिसे उसने स्वीकार कर लिया आखिर, आग दोनों तरफ जो लग चुकी थी तो उनकी दीवानगी के चलते उनका प्रेम दिनों-दिन परवान चढ़ता गया उन्हें अहसास ही नहीं हुआ कब एक-दूजे की जरूरत बन गये और दोस्ती-प्रेम के साथ उनके दो साल ऐसे गुजर गये जैसे दो दिन

जिसके बाद शुरूआती दिनों की कशिश में कुछ कमी आई जिस तरह से न्य खिलौना मिलने पर बच्चा शुरू-शुरू में उसे हरदम अपने सीने से लगाया फिरता यहाँ तक कि रात में उसे साथ में लेकर सोता भी मगर, धीरे-धीरे जब वो पुराना होता तो उसका मोह भी उसके प्रति कुछ कम हो जाता तो उसी तरह से इस संबंध में भी एक ट्विस्ट आया जब विधान अपने काम में अधिक व्यस्त रहने लगा तो पहले की तरह दिन-रात हर पल भेजे जाने वाले संदेश व हर होने वाली बात को शेयर करने में भी कमी आई जिसकी वजह से समायरा परेशां रहने लगी क्योंकि, उसे तो उसकी आदत हो गयी थी

उसने उसके लिये अपनी दिनचर्या तक में परिवर्तन किया अपनी ट्यूशन, अपनी सहेलियों के साथ घुमने जाना या घर में सबके साथ समय बिताना सब कम कर दिया तो उसकी व्यस्तता से रिक्त स्थान उत्पन्न होने लगा जो उसके भीतर भी खालीपन की भावना जगाता तब ऐसे में उसकी पुरानी बातों या उसके संदेशों को पढ़ते-पढ़ते वो एकदम से तड़फ जाती और उसे कॉल कर लेती तो उधर से बेरुखी से जवाब आता फ़िलहाल थोडा व्यस्त फ्री होकर कुछ देर में बात करता पर, वो कुछ पल की देर इतनी लंबी हो जाती कि कभी-कभी तो सप्ताह भर हो जाता उन्हें आपस में बतियाये हुये जिसकी वजह से वो तन्हाई में जो मन में आता वही सोचती रहती खुद से बात करती और खुद ही जवाब देती सहेलियाँ तक छुट गयी थी और जो थी तो उसका ही मन न करता किसी से बात करने

उसे तो बस, विधान की कॉल या संदेश का इंतजार रहता सारा समय और वो तो काम में ऐसा खोया रहता कि भूल जाता और जब वो रूठ जाती तो अपनी मीठी-मीठी बातों से उसे झट से मना लेता इस बार भी यही हुआ जब इंतजार बड़ा लंबा हो गया तो उसने उससे रेस्टारेंट में मिलने का प्रोग्राम बनाया जिसकी वजह से वो बेहद खुश थी उसके पाँव जमीन पर ही न पड़ रहे थे तो शाम को तैयार होकर समय से पहले ही वहां पहुंचकर उसका वेट करने लगी पर, घड़ी की सुइयां ही नजर आई जो अपनी रफ्तार से बढ़ रही थी ऐसे में उसने कॉल किया तो पता चला कि वो मीटिंग में हैं जिसे सुनकर उसकी आँखें जो अब तक आंसूओं के बाँध को थामे थी छलक पड़ी उसे समझ नहीं आ रहा था कि जो विधान पहले उसके आगे-पीछे घूमता जिसके पास हमेशा समय होता था अब अचानक से इतना व्यस्त कैसे हो गया कि मिलने तक का समय नहीं क्या प्रेम की आश्वस्ति ने उसे इतना निश्चिन्त बना दिया पर, ये कैसे भूल गया कि प्यार को भी पौधे की तरह नित्य ख़ुराक चाहिये नहीं तो वो मुरझा सकता और अभाव हो तो मर भी सकता है

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०४ सितंबर २०१८

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