मंगलवार, 18 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२५९ : #लैंगिक_भेदभाव_को_तोड़ने_वाली #अन्ना_राजम_मल्होत्रा_पहली_आई_ए_एस_बनी




आज़ाद भारत में चंद महिलाओं ने आज़ादी पाकर उसका सदुपयोग इस तरह किया कि सिर्फ, शिक्षा ही हासिल नहीं बल्कि, वे सभी क्षेत्र जो अब तक मर्दों की बपौती समझे जाते थे उनमें भी खूब जमकर सेंध मारी ताकि, उसके जरिये वहीं नहीं अन्य महिलायें भी भी वहां प्रवेश कर सके हालाँकि ये सब करना उनके लिये उतना आसान नहीं था क्योंकि, उस वक़्त तो हालात स्त्रियों के लिये इतने भी अनुकूल नहीं थे कि वो जो चाहे वो कर सके और अपने सपनों को सजा जामा पहना सके

लेकिन, जिन्हें मिसाल बनना होता है वे इन सब बंदिशों या मुश्किलों की परवाह कब करती है तो ऐसा ही एक असंभव-सा लगने वाला कारनामा कर दिखाया १७ जुलाई १९२७ को केरल के एक गांव में जन्मी ‘अन्ना राजम’ ने जो स्वतंत्र भारत के महज़ तीन साल बाद ही देश की प्रथम ‘आई.ए.एस’. बनी और अपने इस साहसिक कदम से उन्होंने जो छाप बनाई उन पदचिन्हों पर चलकर न जाने कितनी स्त्रियों ने भी अपनी मंजिल पाई और ये जाना कि वो मार्ग जिन पर चलने के लिये पुरुष समाज उन्हें मना करता या जिन्हें उनके लिये वर्जित बताता वे इतने भी दुर्गम नहीं बस, संकल्प शक्ति व जुझारूपन की कमी होती जिसकी वजह से कमजोर स्त्रियाँ हिम्मत हार जाती और अपनी नाकामी को पितृसत्ता के सर पर मढ़कर घर-गृहस्थी की डोर थाम चुपचाप बैठ जाती है

परन्तु, इनके ही बीच कुछ वो भी होती जिन्हें खुद पर यकीन होता इसलिये वे जब तक अपने आपको आज़मा नहीं लेती परिस्थितियों से समझौता नहीं करती या कहे कि उनका आत्मविश्वास इतना बड़ा होता कि वे छोटे मुकाम पर ठहर अपनी प्रतिभा को घुट-घुट कर मरते नहीं देख सकती जैसे कि अमूमन आम महिलायें करती है तो जब ‘अन्ना’ को लगा कि वे आम औरतों की तरह केवल घर की चारदीवारी में अपना जीवन नहीं गुज़ार सकती तो फिर ऐसा क्या हैं जो वो करना चाहती है ये जिसके लिये उनका जन्म हुआ हैं जब उन्होंने इस पर विचार किया तो उन्हें लगा कि ‘सिविल सर्विस’ ही वो ‘टारगेट’ है
     
यूँ तो सभी का जन्म किसी न किसी ख़ास काम को अंजाम देने के लिये होता लेकिन, सबको ये ताउम्र पता ही नहीं चलता कि अखिर वे पैदा ही क्यों हुये तो यूँ ही सोचते-सोचते दुनिया से चले जाते पर, जिनको ये इल्म हो जाता वे फिर तब तक नहीं रुकते जब तक कि अपने ध्येय को प्राप्त नहीं कर लेते तो ‘अन्ना’ को जब ये ज्ञान हो गया तो उन्होंने भी एडी-चोटी का जोर लगा दिया और १९५० में सिविल सर्विसेस की परीक्षा पास कर ये साबित कर दिया कि अगर, महिलायें चाहे तो अपनी इच्छाशक्ति के दम पर वे केवल परिवार पर शासन ही नहीं कुशलतापूर्वक देश में प्रशासन भी कर सकती और उन कार्यक्षेत्रों में भी जा सकती जहाँ उनके लिये दरवाजे बंद कर दिए गये है पर, उसकी चाबी खोजना कठिन नहीं है ।

उनके इम्तिहान पास करने के बाद भी अभी कुछ और इम्तिहान बाकी थे तभी तो परीक्षा क्रॉस करने के बावजूद पैनल ने उन्हें ‘फॉरेन सर्विसेज’ या फिर ‘सेंट्रल सर्विसेज ज्वॉइन’ करने की सलाह क्योंकि, उनके हिसाब से ये क्षेत्र महिलाओं के लिए ज्यादा मुफीद थे लेकिन, अन्ना तो दृढ़ संकल्पित थी कि उन्हें तो आई.पी.एस. ऑफिसर बनाना हैं तो वे इन कठिनाइयों के आगे भी नहीं झुकी फिर क्या वहीँ हुआ जो होना था याने कि उनके अपॉइंटमेंट पर उस वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री ‘सी .राजगोपालाचारी’ ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट सब कलेक्टर बनाने की बजाय सीधे सचिवालय में नियुक्त कर दिया इस तरह वे सचिवालय में नियुक्त होने वाली पहली महिला भी बनी थी ।

‘अन्ना’ केवल पढ़ाई-लिखाई में ही उत्कृष्ट नहीं थी बल्कि, घुड़सवारी, पिस्टल, रायफल शूटिंग में भी माहिर थी और व्यावहारिक ज्ञान, मानव मनोविज्ञान व् सूझबूझ भी भरपूर थी इसलिये देश की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी हो या देश के पहले प्रधानमन्त्री उनके पिता जवाहर लाल नेहरु दोनों ही उनकी सलाह लिया करते थे और उन्होंने तो राजीव गाँधी को भी उनके प्रधानमंत्रित्व काल में सहयोग दिया यही नहीं अपने जीवन काल में उन्होंने लगभग सात मुख्मंत्रियो के साथ काम किया लेकिन, कभी किसी के आगे झुकी नहीं जो सही लगा वही किया उनकी ईमानदारी व उनके प्रशासनिक कार्यों के लिये १९८९ में उनको ‘पद्मभूषण’ से भी सम्मानित किया गया था  

कल ९१ की उम्र में उनका निधन देश की एक अपूरणीय क्षति हैं और उनका जीवन आज की महिलाओं के लिये भी प्रेरणा दायक हैं जो आज सब कुछ पाकर भी भटक रही जबकि, उन्हें हर चीज़ पाने के लिये लड़ना पड़ा पर, फिर भी न तो झुकी, न हटी डटकर मुकाबला किया और विजेता बनी उनके आकस्मिक देहांत पर उनको ये शब्दांजली...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१८ सितंबर २०१८

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