सोमवार, 17 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२५८ : #श्रीराधा_अष्टमी_आई #साथ_अपने_महर्षि_दधिची_और #विश्वकर्मा_जयंती_लाई



भारत भूमि का चाव सिर्फ ऋषि-मुनियों को ही नहीं देवताओं को भी इस कदर हैं कि वे भी बार-बार जनम लेकर इसकी पावन माटी में खेलने चाहते हैं और माँ के आंचल में छिपकर अपने बाल रूप से केवल अपने जननी ही नहीं समस्त संसार को भी मोहित करना चाहते है इसलिये जब भी कोई ऐसा अवसर आता जबकि, ये देश विपदाओं से घिर जाता या पाप हद से जियादा बढ़ जाता तब भगवान् कोई न कोई रूप लेकर स्वर्ग से धरती पर चले आते और इसे पाप से मुक्त कर पुनः पुण्य व सत्य का साम्राज्य स्थापित करते है

देवताओं की एक अलग ही दुनिया हैं और धरती का अपना अलहदा संसार पर, धरती-आकाश की तरह ये भी क्षितिज़ पर कहीं मिले होने का आभा पैदा करते तभी तो हमें दूर गगन में रहने वाले वो ईश्वरीय अंश अपने ही परिवार का हिस्सा लगते और हम उनसे इस तरह अपना नाता जोड़ लेते कि बिना मोबाइल या इंटरनेट के हमारे मन की बातें अदृश्य सूक्ष्म तरंगों के माध्यम तक उन तक पहुँच जाती और जब भी कोई उन्हें करुण स्वर में आवाज़ देता तो वे उससे निराश नहीं करते दौड़े चले आते और साबित करते कि जिसका कोई नहीं उसके वे है बस, पूर्ण मन से उनको मानने व अपनाने की बात हैं फिर अकेलापन महसूस नहीं होता बल्कि, सर्वत्र व अपने आस-पास उनकी उपस्थिति का दिव्य अहसास साथ होता है

कुछ ऐसा ही महसूस होता पवित्र चातुर्मास में जब इन दिनों सकल वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर हो जाता और सावन की तरह एक के बाद एक तीज-त्योहारों की झड़ी लग जाती जिससे समस्त प्रकृति व प्राणी उस अलौकिक आभा से दीप्तिमान होकर रिचार्ज हो जाते जिससे कि आने वाले मुश्किल हालातों का सामना कर सके और अपने आपको इतना मजबूत बना सके कि कोई भी बदलाव प्रभावित न कर सके तो इन चार महीनों का जानकार भरपूर फायदा उठाते और हर दिवस की महत्ता समझते हुये उसका उसी प्रकार से अनुभव करते जैसा कि वेद-पुराणों में वर्णित हैं

आज के समय में तो ये अधिक आवश्यक हो गया क्योंकि, नकारात्मकता इस स्तर तक बढ़ी हुई कि अपराध का ग्राफ निरंतर बढ़ता जा रहा तो आपसी रिश्तों तक में विश्वास की डोर न केवल कमजोर हो चुकी है बल्कि, समाप्ति की कगार पर हैं तो इन्हें पुनर्जीवित करने का यही एकमात्र यही उपाय हैं कि पुनः वेदों की और लौटे अपनी जड़ों से जुड़े अन्यथा अधर में लटके-लटके एक दिन कहीं के न रहेंगे इसलिये तो हमारे पूर्वजों ने बेहद सोच-समझकर ऐसी सामाजिक व्यवस्था व नियमावली जिसे अपनाकर हम अपनी जीवनशैली को चुस्त-दुरस्त व स्वयं को दीर्घायु, निरोगी बनाकर अपनी मर्जी से मोह-माया से मुक्त होकर अपने जीवन का त्याग कर सके और आगे आने वाले अपने जन्म को भी सुधार सके

आज एक ऐसा ही परम पावन सौभाग्यशाली दिवस है जब भगवान् कृष्ण की प्यारी बरसाने की लाड़ली राधारानी जिनकी एक छवि को निहारने भक्त नित दर्शन करने आते, देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जिन्होंने सतयुग में स्वर्गलोक, त्रेता में लंकापुरी और द्वापर में द्वारिका का निर्माण करने के अतिरिक्त भी अनेक समाजोपयोगी निर्माण किये और इस जगत को वृतासुर जैसे अतातायी से मुक्त करने अपनी हड्डियों तक का दान करने वाले महादानी महर्षि दधिची की जयंती हैं जिनकी कहानियां पढ़ना-सुनना आज कम हो गया और जिनसे जुडाव भी लगभग खत्म हो गया इसलिये पाप कर्मो की तरफ प्रवृति उन्मुख हो रही है ।

अब वो सात्विक और पवित्रतम वातावरण न रहा, न उपनिषद की प्रेरक कहानियां और न ही घरों में गूंजने वाली वो मंत्र ध्वनियाँ और न ही हवन के धुएं की वो सुगंधि जिनके होने से ही एक ऐसा सुरक्षा कवच हमारे चारों तरफ निर्मित होता जो हमें हर तरह की बुराइयों से बचाकर रखता बल्कि, अब तो तकनीकी युग ने ऐसा माहौल बना दिया कि मोबाइल हो या लैपटॉप या टेलीविजन जिनके माध्यम से हम अपनी सभ्यता व संस्कृति से भी जुड़ सकते की बजाय अधिकांश लोग इस तरह की गतिविधियों में लिप्त जिनसे शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य का ह्रास हो रहा, अश्लीलता बढ़ रही फिर भला दुष्कर्म क्यों न बढ़ेंगे ???              

दिन-ब-दिन बढ़ने वाली कुप्रवृति व अपराधिक घटनाओं को विराम देने का यही एक मार्ग हमारे पास बचा जिस पर चलकर हम पुनः कलयुग से सतयुग में पहुँच सकते कि हम अपने वेद, पुराण, उपनिषद, धर्मग्रंथ को पुनः खोले जहाँ न केवल इस कलिकाल का विस्तृत वर्णन मिलेगा साथ ही इससे निपटने का भी उपाय भी निकलेगा... पूजा-पाठ केवल ढोंग या औपचारिकता या धर्म का अंग नहीं बल्कि, ऐसा अमोघ अस्त्र है जिसके द्वारा हम हर समस्या को बड़ी आसानी से सुलझा सकते केवल अंतर से कलुष खत्म कर ले और मंत्रों के वास्तविक अर्थ ग्रहण करें तो हमको हराने वाला दुनिया में कोई न होगा... हमारे यहाँ तो ऐसे-ऐसे महानतम चरित्र हुये जो अपने आप में मिसाल है

आज ऐसी ही तीन विभूतियों का जन्मदिन हैं... प्रेम की पराकाष्ठा की प्रतीक वृषभान की दुलारी राधा, शिल्पकला के अद्भुत विशेषज्ञ व विशिष्ट निर्माण के महारथी विश्वकर्मा और जनहित में अपनी देह तक का त्याग करने वाले परोपकारी महर्षि दधिची... तो आज हम इनका स्मरण करें इन्हें नमन और प्रणाम कर ये वर मांगे इनसे कि हम सदैव पापकर्मों से विमुख रहे...  विश्व का कल्याण हो... राधे-राधे... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१७ सितंबर २०१८

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