रविवार, 23 सितंबर 2018

सुर-२६४ : #अनंत_चतुर्दशी_का_आना #सर्वप्रिय_श्रीगणेश_का_जाना





जीवन में हर्षोउल्लास के पल यूँ तो सबके लिये अलग-अलग समय पर आते ही रहते और वो अपने परिजनों के साथ मिलकर उसका आनंद उठाता लेकिन, पर्व-उत्सव ऐसे अवसर जिसमें देश के सभी लोग आपस में मिलकर सार्वजनिक रूप से खुशियाँ मनाते है इससे संपूर्ण वातावरण में जो ऊर्जावान सकारात्मक तरंगें उत्पन्न होती वे इसमें शामिल परिचितों व अजनबियों को भी एक-दूसरे से इस तरह से जोड़ देती कि उनमें परस्पर भाईचारा निर्मित हो जाता है

शायद, यही सोचकर हमारे पूर्वजों ने ऐसे रीति-रिवाज बनाये कि जीवन की एकरसता व भागदौड़ से उबकर हम नीरसता का अनुभव करे तो इस तरह के सयुंक्त आयोजन हम सबको थोड़ी देर को ही सही हर तरह के तनावों से मुक्त कर सके फिर इनके माध्यम से हम अपनी रूटीन दिनचर्या के लिये पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त करें जिससे कि नवीन उत्साह के साथ उस जीवन शैली में लौट सके और जब हम इनके पीछे छिपी इस सौहार्द्रता को महसूसते तो हमारा मन अपने आप ही कोमल भावों से भर जाता है

इस मानस परिवर्तन से सिर्फ अपने लिये ही नहीं बल्कि, समस्त जगत के प्रति करुणा का अहसास जागृत होता तभी तो हमारे यहाँ रोज अपनी नियमित प्रार्थना में समस्त विश्व की कल्याण की कामना की जाती जो विश्व बंधुत्व की अवधारणा को पोषित करती है । आज गणेशोत्सव के दस दिवसीय आयोजन के समापन की घड़ी ‘अनंत चतुर्दशी’ के आने से जगह-जगह दिखाई दे रहे होम-विसर्जन व भंडारे के मनोहारी दृश्यों ने कुछ ऐसा ही उत्सवी माहौल रच दिया जो देश व सामाजिक सरसता के लिये मंगलकारी है ।

जहाँ गणेश मंडल के सदस्य हर जात-पात के लोगों को एक-साथ समान सम्मान के साथ प्रसाद वितरित कर खुद को कृतार्थ महसूस कर रहे जिसे उनके मुखमण्डल पर झलकते संतोष से समझा जा सकता हैं । हमारे देश की इन गौरवशाली परम्पराओं ने ही हमको युगों-युगों से जीवंत किया हुआ है और आने वाली सदियों तक इस दुनिया में हमारा अस्तित्व कायम रहेगा अगर, हम इसी तरह मिल-जुलकर सबके साथ इन परम्पराओं का पालन करेंगे ।  
      
एक तरफ जहाँ हम सबके प्यारे श्रीगणेश की विदाई से मन का कोई कोना उदास है वहीँ दूसरी तरफ उनके फिर अगले बरस आने के वादे से ख़ुशी से झूम भी रहा है ऐसे सुख-दुःख के संगम के प्रतीक अनंत चतुर्दशी की सबको मंगल कामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२३ सितंबर २०१८

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