रविवार, 9 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२५० : #पोला_अमावस_आई #बचपन_की_याद_दिलाई




हमारे पूर्वज कितने दूरदर्शी थे जो उन्होंने आने वाले समय को देखते हुये प्रकृति सरंक्षण के गूढ़ संदेश को छोटे-छोटे पर्वों से जोड़ दिया ताकि हम उनके बहाने ही सही कुदरत की अनमोल देन का महत्व समझे पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा को हस्तांतरित करने के लिये उसे इस तरह से दैनिक जीवन से गूंध दिया कि वो हमारी आवश्यकता बन गयी और पहले जबकि, सारा कृषि का काम बैलों के कंधों पर था तो उसकी महत्ता प्रतिपादित करने उसके लिये भी अपने त्योहारों में जगह बनाई

तभी तो कोई भी उत्सव का अवसर हो कृषक सबसे पहले अपने पशुधन की पूजा करता जिसकी वजह से उसका जीवन-यापन चलता इस तरह वो अकेले नहीं अपने उन साथियों के साथ जश्न मनाता जब से मशीनी युग आया इंसान इतना अधिक सुविधाभोगी हो गया कि यंत्रों के साथ जीवन बिताते-बिताते खुद ही मशीन बन रहा जिसके भीतर की संवेदनाएं इस कदर मर गयी कि वहीं बैल जो कभी उसके लिये पुत्रवत थे अब अनुपयोगी होकर सडकों पर मारे-मारे फिरते हैं

ऐसे में जब इस तरह का कोई तीज-त्यौहार आता तो हमें उनकी याद आती कि कभी इनके कंधे हमारे परिवारों का बोझ उठाते थे और कभी जब हम बच्चे थे तो पोला का इंतजार करते थे कि वो दिन आये और हम बैलों की जोड़ी खरीदकर खेल-खेले माँ खुरमे-बतिया बनाये हम खाये पर, अब ये सबी केवल ग्रामीण अंचलों में ही शेष रह गया और ये प्रार्थना कि भले किसी कोने में ही सही हमारी प्राचीन रस्में धरोहर की तरह सुरक्षित रहें हमारे भीतर की संवेदनाओं और कुदरत के प्रति हमारे कोमल भाव को अक्षुण बनाये रखे... पोला अमावास की आप सबको बहुत-बहुत बधाई... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०९ सितंबर २०१८

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