शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

सुर-२०१८-२६२ : #शान्ति_गंवाकर_शान्ति_तलाशते #बड़े_नादान_हम_सब_भीतर_न_झांकते




अरे, प्रियम कहाँ भागा जा रहा जरा शांति से दो घड़ी बैठकर नाश्ता-पानी कर ले फिर जा जहां जाना है

मम्मा, यहां मरने को फुर्सत नहीं और आप हो कि दो घड़ी शांति से बैठकर बैठकर खाने की बात कर रही हो वहां क्लासेस शुरू हो गयी होंगी सब दोस्त बाहर इंतज़ार कर रहे बाई मैं चला...

मां उसके जाने के बाद सोफे पर बैठकर सोचने लगी प्रियम के पैदा होने के बाद से उसके कॉलेज जाने तक उसका जीवन जिस तरह बदला उसे समय ही नहीं मिला कि खुद के बारे में सोचे सारा दिन बस, उसके ही काम करती रहती यदि थोड़ी फुर्सत मिलती तो महसूस करती कि वो इतनी थकी हुई है कि कुछ मन का काम करने की बजाय आराम के दो पल की अधिक आवश्यकता है

तभी गाड़ी की आवाज़ आई तो वो समझ गयी कि प्रियम के पापा आ गए लंच करने तो जल्दी से उठकर किचन की तरफ भागी उधर से उसके पति मयंक उसे आवाज़ देते भीतर आये, प्रिया जल्दी से खाना लगा दो तो वो किचन से हाथ पोछती बाहर आई और उनको खाना परोसने लगी उनके जाने के बाद सोचा कि जरा आराम कर लूं तो बगल वाली मिसेज शर्मा आ गयी फिर पठान चला कब शाम हो गयी और वो फिर डिनर की तैयारी में जुट गई

वो अभी डाइनिंग टेबल पर से डिनर के बाद की प्लेट्स हटा ही रही थी कि प्रियम आ गया तो उसने कहा, चल जल्दी से फ्रेश होकर आ जब तक मैं खाना गर्म कर देती हूं तो उसने सीढियां चढ़ते हुए कहा, मम्मा बाहर से खाकर आ रहा हूँ अब नींद आ रही तो सिर्फ सोना चाहता हूं गुड नाईट ये कहकर वो ऊपर अपने कमरे की तरफ चला गया

उधर प्रिया अकेली खुद से बातें करने लगी उफ, जिसे देखो वही व्यस्त सब बस, दौड़े चले जा रहे जाने कहाँ किसी के पास दो घड़ी का समय नहीं कि शांति से बैठकर कुछ विचार कर सके उसके खुद के माता-पिता का भी यही हाल रहा माताजी सारा दिन घर मे खटती पिताजी दफ्तर और ओवर टाइम में ताकि, हम पांचों भाई-बहनों को अच्छी ज़िंदगी दे सके इस चिंता के मारे वो दोनों कभी शांति से सो भी न सके और फिर क्या हुआ वही चक्कर चल रहा केवल पात्र बदल गये है

हम सब भी उसी तरह जीवन को बेहतर बनाने की चाह में कोल्हू के बैल की तरह भागे चले जा रहे ऐसे में उसे अपने पिता के अंतिम शब्द बहुत याद आते जो उन्होंने उससे कहे थे, “बेटी, मैं सोचता था कि एक दिन सब कुछ ठीक-ठाक हो जायेगा तब मैं शांति से मर सकूंगा मगर, मुझे क्या मालूम था कि तब कैंसर मेरा इंतजार कर रहा होगा और मैं दर्द सहन करते हुये मौत को पुकारूँगा ऐसे में आज अहसास हुआ कि शांति तो हमेशा से मेरे भीतर थी वो तो मैं ही उसे अनदेखा कर भागा जा रहा था आज जब सब कुछ मिल गया सब बच्चे भी अपनी-अपनी लाइफ में सेटल हो गये तो मैने सोचा अब मैं और तेरी मां शान्ति से रहेंगे पर, शांति क्या कोई चिराग़ में छिपा जिन है जो हमारा इंतज़ार करे कि हम जब चाहे उसे पुकारे वो प्रकट हो जाये ये तो आत्मा की तरह हमारे अंदर बसी हुई जब हम उसकी लगातार उपेक्षा करते तो फिर वो अंदर ही घुटकर मर जाती है इसलिये जब वक़्त मिले उसके साथ व्यतीत करो उससे बात करो नहीं तो फिर वही होगा कि जो पास है उसकी कदर नहीं कि जीवन इस आस में गंवा दिया कि जब सब कुछ पा लेंगे आराम से शांति से उसका उपभोग करेंगे मतलब जो शांति हमारे पास थी उसको अनदेखा कर हम बेचैनी में जीवन काटते रहे और फिर उसकी खोज में निकल पड़े और अब मरते हुए भी सोच रहे कि शांति से स्वर्ग में रहेंगे इसलिये तुम ऐसा न करना अपने बच्चों को सीखाना कि शांति को त्यागकर शांति की तलाश न करे”

मगर, वो क्या सीखा पाती किसी को जबकि, उसके पति भी वैसे ही आम सोच वाले इंसान निकले जो शांति के इंतजार में शांति को ही इंतजार करवा रहे थे कि जब सब कुछ सेट हो जायेगा मनमाफ़िक तब वो उसके साथ दिन गुजारेंगे तो शांति कब तक इंतजार करेगी उनका चली जायेगी वहां जहाँ कोई उसकी बाट जोह रहा होगा फिर जब उसे पुकारेंगे, ढूँढेगे तो वो वापस न आयेगी काश, वो समझा पाती किसी को ये कि सब यही गलती कर रहे है जो चीज उनके पास उसकी अनदेखी कर उसे ही तलाश रहे है तभी तो साल-दर-साल २१ सितंबर को ‘विश्व शांति दिवस’ मना रहे है क्योंकि, उसके घर में नहीं पूरी दुनिया में ही सब यही कर रहे है

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ सितंबर २०१८

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