गुरुवार, 10 जनवरी 2019

सुर-२०१९-१० : #देश_के_नौजवानों_का_मार्गदर्शक #स्वामी_विवेकानंद_का_जीवन_दर्शन_०१




आज हमारे देश में नौजवानों का प्रतिशत सर्वाधिक है और उनमें से ज्यादातर बेरोजगार हैं जिसकी वजह से उनके भटकने की सम्भावना भी अधिक है क्योंकि, पहले जहाँ घर के नौनिहालों को सम्भालने-सहेजने व उनके जीवन को संवारने के लिये पूरा परिवार उसके साथ खड़ा होता था और घर के बुजुर्ग उसको समय-समय पर सही सलाह व सुझाव देकर उसके भविष्य का मार्ग प्रशस्त करते थे

वहीं आज किशोर जिनके शरीर ही नहीं बुद्धि का विकास भी उतना नहीं होता कि वो सही-गलत में विभेद कर सके उनके हाथ में भी ऐसा यंत्र है जिसमें बिना टाइप किये केवल बोलकर भी वे कोई शब्द ढूँढना चाहे तो ऐसी-ऐसी जानकारियां उनके सामने प्रस्तुत हो जायेगी कि उनका यदि स्वयं पर काबू न हो और जिज्ञासा का स्तर हर सीमा को पार कर जाये तो जो कुछ भी वे देखेंगे उसे अपने कच्चे विवेक के तहत किन अर्थों में ग्रहण करेंगे ये कोई भी नहीं जानता है

यही वजह कि अब वो उम्र भी जो कल तक खेल के मैदान या स्कूल की दहलीज तक ही सीमित थी और जिसकी मासूमियत का आलम ये था कि सेक्स/किस/हनीमून/सनी लियोने जैसे वर्जित विषयों में न तो उसकी कोई रूचि होती थी न ही उसका इनसे पाला ही पड़ता था लेकिन, अब तो हर जगह इसी का बोलबाला है कोई चाहे न चाहे उसकी आँखों के सामने से ऐसी कई चित्र गुजर जाते जो आपत्तिजनक होते और वे बच्चे जो कल तक १७-१८ की उम्र में ऐसी बातों से अनजान होते थे आज आगे बढ़कर इन पर चर्चा करते है

उनकी अपनी गर्ल ग्रेंड होती है और ज्यादातर विषयों का व्यावहारिक ज्ञान वो प्राप्त कर लेते है ऐसे में यह पीढ़ी अब हर तरह के ज्ञान से लबरेज होकर ऐसे-ऐसे काम कर रही है जिसके बारे में विश्वास करना भी हैरत में डाल देता है फिर भी सब इतने अधिक व्यस्त कि ऐसी कोई खबर सामने आने पर बस, दो-चार दिन उस पर बहस करते फिर आगे बढ़ जाते जिसका नतीजा कि फिर कोई उससे भी बड़ी वारदात सामने आ जाती और यही क्रम चलता रहता लेकिन, इस पर कोई ठोस कदम या कार्यवाही किसी के भी द्वारा नहीं की जाती है

आधुनिक जीवन शैली व तकनीकी उन्नति के चलते आजकल तो पेरेंट्स अपने बच्चों को नाज़ुक उम्र में ही गाड़ी, मोबाइल ही नहीं अच्छा-ख़ासा बैंक बैलेंस भी दे देते जिसके पीछे ये तर्क होता कि अगले के पास है तो फिर अपने बच्चे को न देना उसको हीन भावना का शिकार बनता याने कि इस दौर में प्रतिद्वंदिता का चलन बदल गया है पहले जहाँ कभी बच्चों के बीच पढ़ाई-लिखाई के मध्य प्रतिस्पर्धा चलती थी अब ब्रांडेड सामानों के लिये होती है जिसके लिये उनके पालक ही जिम्मेदार है

यदि हम इसके कारणों को खोजे तो आश्चर्य होगा कि, अपने जीवन को जीने का चस्का इस कदर सबको लगता जा रहा है कि वो किसी भी हालत में इसमें कोई समझौता नहीं करना चाहते इसलिये वो अपने बच्चों से स्पेस बनाने उनको भी इस तरह की ज़िन्दगी की लत लगा देते है हालाँकि, आगे चलकर वे इसका खामियाजा भुगतते भी है पर, जब खुद की इच्छायें हिलोरें मारती तो फिर सोचने-समझने की शक्ति ही नहीं दृष्टि भी कम हो जाती तब तो किसी भी तरह केवल यही प्रयास किया जाता कि मेरी ज़िन्दगी पर सिर्फ मेरा हक़ हो

वे नहीं चाहते कि उनकी सन्तान उनके किसी पर्सनल मामले या लाइफ में बाधा उत्पन्न करे तो उन्हें इसका समाधान यही ठीक लगता कि उसके हाथों में भी वही थमा दे जिसके चक्कर में वो खुद लगे हुये है ये ‘अपनी लाइफ जीने’ वाला फंडा बड़ा खतरनाक है जिसके तहत हर कोई अपना जीवन जीना चाहता, अपने लिये अपना समय व्यतीत करना चाहता जिसकी पराकाष्ठा इस हद तक पहुंच चुकी है कि इसकी वजह से कई युवा अब शादी या बच्चे जैसे फैसलों से बचने लगे है    

इन सबके साइड इफ़ेक्ट के तहत हम आये दिन अख़बारों में ऐसी खबरें पढ़ रहे जिनमें ज्यादातर अपराधों के केंद्र में अपराधी युवा वर्ग ही है जिनका भटकाव देश व समाज के लिये ही हानिकारक नहीं वरन, भविष्य के लिये भी चिंताजनक है और इसका एकमात्र हल है... ‘स्वामी विवेकानंद साहित्य’ जिसमें उन्होंने अपने अनुभवों का निचोड़ भर दिया है और यही वो शख्सियत जो युवाओं के रोल मॉडल बनने की सारी खूबियाँ रखते जो स्वयं एक भटके युवा से विश्व पटल पर एक आदर्श चरित्र बनकर उभरे थे

१२ जनवरी को उन्हीं का जन्मदिन ‘युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता जिसके पूर्व ये तीन दिवसीय श्रृंखला लिखने का एक छोटा-सा प्रयास है जिसकी प्रथम कड़ी आप सबके सामने है     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी १०, २०१९

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