मंगलवार, 29 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२९ : #प्रार्थना_का_भी_धर्म_खोज_लाये #षड्यंत्रकारी_फिर_नया_मुद्दा_ले_आये



इस देश को लगातार तोड़ने की साजिशें चल रही है जिसका आधार कभी जात-पात तो कभी मज़हब होता है और जब कुछ नहीं बचता तो ऐसे मुद्दे खड़े कर लिये जाते है जिसके द्वारा सीधे उसकी जड़ों पर हमला किया जा सके जिससे कि उसे समूल नष्ट किया जा सके क्योंकि, वो देश जिस पर न जाने कितने आक्रमण हुये, वो देश जिसकी सभ्यता-संस्कृति को मिटाने न जाने कितने आतातायियों ने दुष्प्रयास किये मगर, कोई कभी-भी सफल नहीं हो पाया और बार-बार गिरकर भी फिर ये अपने पैरों पर खड़ा हो गया सिर्फ इस वजह से क्योंकि, कोई भी उस जमीन को नहीं हिला पाया जिस पर ये देश खड़ा है तो ऐसे में अब उसकी नींव पर वार करने का षडयंत्र रचा जा रहा है जिसके कारण आये दिन कोई न कोई ऐसा मसला सामने आ ही जाता जिसके द्वारा इस देश की आधारशिला को कमजोर करने की कुचेष्टा की जाती है

अभी आज ही समाचार पत्रों में मुख पृष्ठ पर जो पढ़ा वो बेहद शॉकिंग था जिसके अनुसार जबलपुर के एक वकील विनायक शाह ने शीर्ष अदालत (सुप्रीम कोर्ट) में दायर याचिका में कहा है कि देश के सभी ११२५ केंद्रीय विद्यालयों में वर्ष 1964 से हिंदी और संस्कृत भाषा में जो प्रार्थना कराई जा रही है वो असंवैधानिक है जिसके लिये उनकी दलील है कि संविधान का अनुच्छेद 25 और 28 इसकी अनुमति नहीं देता क्योंकि इन स्कूलों को सरकार से सहायता दी जाती है ऐसे में उन्हें धार्मिक मान्यताओं और एक संप्रदाय विशेष को बढ़ावा नहीं देना चाहिए उनका ये भी मानना है कि इस तरह की प्रार्थनाएं वैज्ञानिक चेतना के विकास में बाधा खड़ी करती हैं । जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्रीय विद्यालय संगठन के संशोधित एजुकेशन कोड को चुनौती दी है इसके तहत हर छात्र के लिए सुबह की प्रार्थना अनिवार्य है । याचिका में कहा गया है कि सभी केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना लागू है इस सिस्टम को नहीं मानने वाले अल्पसंख्यक छात्रों को भी इसे मानना पड़ता है मुस्लिम बच्चों को हाथ जोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता प्रार्थना के बजाय बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करनी चाहिए।

वो प्रार्थना जिसमें बच्चों द्वारा विद्या दान की मांग की जाती हो और खुद को सत्य के मार्ग व अंधकार से उजाले की तरफ ले चलने की याचना की जाती हो वो किस तरह से किसी धर्म विशेष से जुड़ सकती है साथ ही ये भी विचारणीय है कि वो किस तरह से बच्चों के मानसिक विकास में अवरोध पैदा कर सकती है या उनकी वैज्ञानिक चेतना को विकसित होने से रोक सकती है इसके अतिरिक्त जो दलील दी गयी वो तो एकदम हास्यास्पद है कि केन्द्रीय विद्यालय सरकारी सहायता से चलते अतः वो किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने का काम नहीं कर सकते इस आधार पर तो तमाम मदरसों में भी रोक लगाई जानी चाहिये जो सरकारी अनुदान से चलते व सरकार द्वारा मिलने वाले इमामों के मानदेय भी शीघ्रता से बंद किये जाने चाहिये जो एक सेकुलर देश के लिये सबसे अधिक खतरनाक व असंवैधानिक है और जिन्हें हाथ जोड़ना पसंद नहीं उन्हें हाथ फैलाने से भी गुरेज करना चाहिये पता नहीं उसके लिये इन्हें कौन मजबूर करता है

ऐसे में समझना कठिन नहीं होता कि ये हरकतें किसके माध्यम से की जा रही हैं और इनके पीछे किनका दिमाग या हाथ काम कर रहा है भले ही सामने कोई नजर आये मगर, पटकथा और निर्देशन किसी और का ही होता है जिसे यदि हमने समझने का प्रयास न किया या अभी भी आँखें मूंदकर बैठे रहे तो वो दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढियां हमें माफ़ नहीं करेंगी वो हमसे सवाल करेंगी कि विदेशियों से तो हमने आपको बचा लिया लेकिन, घर में ही छिपकर बैठे जयचन्दों से अपनी रक्षा नहीं कर पाये, हम 70% होकर भी कुछ न कर पाये और अल्पसंख्यक कह-कहकर वो बहुसंख्यक हो गये, अपनी नस्लों को वो संस्कार हस्तांतरित नहीं कर पाये हो हमारे पूर्वज हमारे हाथों में सौंपकर निश्चिन्त होकर गये थे कि हम इन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ायेंगे पर, हम तो अपनों के ही हाथों छले गये अपनों से धोखा खा गये मतलब, हमने अपने इतिहास से कुछ भी नहीं सीखा जिन्होंने हमें सदा धोखा दिया हमने उन्हें ही सर पर बैठाकर खुद उनके हाथों अपना देश सौंप दिया अपनी पीढ़ियों से उनकी वास्तविक पहचान छीन ली तब हम उन्हें क्या जवाब देंगे, किस तरह से बता पाएंगे कि जब ये सब हो रहा था तो हम अपने में मस्त थे, अपनी लाइफ जीने में व्यस्त थे सोचा ही नहीं कि एक दिन अपना ही देश अपना न रहेगा और हम अपने ही देश में फिर से गुलाम बन जायेंगे जबकि, लक्षण दिखाई दे रहे थे पर, हमें लगा कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला सब ठीक हो जायेगा ऐसा करते-करते कब पानी सर से उपर निकल गया कब साँस लेना दूभर हो गया पता ही न चला और जब होश आया तो हमारे पास अपना कहने कुछ बचा ही नहीं था

इससे पहले कि ये भयावह दिन आये, हमसे हमारी पहचान छीन ली जाये अभी-भी वक़्त है हम जाग जाये भारत को बचाये यही दोहराये...      

असतो मा सदगमय ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥
मृत्योर्मामृतम् गमय ॥

मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥
--- बृहदारण्यक उपनिषद

ये जरुर हिन्दू धर्म के उपनिषद से ली गयी है परन्तु, इनमें ऐसा कोई सन्देश या अर्थ निहित नहीं जो धर्म का प्रचार-प्रसार करता हो बल्कि, सहज-सरल भाव से विनती की गयी है वो भी कितनी सार्थक भारत देश में जितने भी धर्म व दर्शन हैं उनका आधार ‘उपनिषद’ है और पूरी दुनिया के बड़े-बड़े विचारक व दार्शनिकों ने इसे सर्वोत्तम ज्ञानकोष माना है और इसमें गुरु-शिष्य सम्वाद के माध्यम से जिज्ञासाओं का शमन किया गया जिसे पढ़कर हम अपनी जड़ों तक पहुंच सकते है जिससे दिनों-दिन दूर होते जा रहे है भूले नहीं कि इतिहास हमेशा शक्तिशाली का ही बनता है कमजोर व शांतिप्रिय को तो सबकी बातें ही सुनना पड़ता है तो सोचे कि हम क्या है ???

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २९, २०१९

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