किसी भी रचना
का एक मूल उद्देश्य होना जरूरी हैं क्योंकि एक सृजन तो वह होता जो स्वयं जन्म लेता
तो उसकी वजह कुछ भी हो सकती है और कलमकार कहीं से भी प्रेरणा प्राप्त कर सकता हैं
लेकिन, जब विषय पूर्ण लिखना हो तो सब कुछ हमारे हाथ में होता ऐसे में यदि हम
स्वांत सुखाय लेखन न कर एक जिम्मेदारी के साथ ये कर्म करते तो फिर सामाजिक हित एवं
नैतिकता भी इसमें जुड़ जाती है
अतः हम लिखते
समय सभी को ये ध्यान रखना चाहिये कि, उसमें कोई उद्देश्यपूर्ण बात या जागरूकता फैलाने
कोई संदेश भी छिपा हो तो फिर वो व्यक्तिगत न होकर व्यष्टिगत बन जाती और हमें सदैव
यही प्रयास करना चाहिये तभी कलम ऊंचाइयों पर पहुँच सकेगी वरना महज़ दिनचर्या का एक
हिस्सा मात्र बनकर रह जायेगी क्योंकि इसकी सुगंध तो इसके बाहर प्रसारित ही न हो
पायेगी ।
ऐसे में जरूरी
कि कलमकार लेखनी को ही नहीं अपनी सोचने समझने व प्रस्तुति करने की काबिलियत को भी
विस्तार दे तो सही मायनों में वे आगे बढ़ सकेंगे जिसकी रफ़्तार सबकी अलग-अलग इसलिये
कोई सफल तो कोई अपनी ही जगह पर स्थिर दिखाई देते है यदि से चिंतन करें तो समझआयेगा
कि सब केवल चुनिंदा विषयों एवं पूर्व निधारित कथ्यों के आस-पास ही चक्कर लगा रहे
तभी कहीं पहुँच नहीं पा रहे पर यदि कुछ नया करना हैं तो सोच के दायरे को भी अधिक
खोलना होगा ।
इसके साथ ही
लेखक को अपनी असफलता या अपने लेखन में गिरावट पर भी ध्यान देना चाहिये न कि अपना दोष
विषय या पाठकों की
समझ पर मढ़ना चाहिये
क्योंकि, कमी तो हम में ही होती कि हम एक ढर्रे पर लिखने के आदि हो चुके तो इस तरह
की चुनोतियों को स्वीकार नहीं करते जबकि हम अब जिस तरह के माहौल में जी रहे वहां
तो बहुत कुछ बदल गया तो क्या हमारे लेखन में बदलाव नहीं आना चाहिये ? क्या हमें
वर्तमान परिस्थितियों पर कलम नहीं चलानी चाहिये ?? क्या नवीन तथ्यों को अनदेखा कर उससे विलग रहना चाहिये ?? ?
इन सब पर एक
बार गौर से सोचने की आवश्यकता है ।
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
जनवरी १७, २०१९
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें