बुधवार, 30 जनवरी 2019

सुर-२०१९-३० : #कांग्रेस_के_भीष्म_पितामह #महात्मा_गाँधी_बने_पक्षधर




तुष्टिकरण की राजनीति किस हद तक घातक और खतरनाक हो सकती है इसका जीवंत प्रमाण ‘महात्मा गाँधी’ है जिनकी मौत की वजह यही थी कि वो बंटवारे के बाद जबकि, मुसलमानों को उनका हक, उनकी हिस्सा दे दिया गया था फिर भी उनके हितों की रक्षा के नाम पर अनशन करने जा रहे थे जो नागवार तो अनेकों को गुजरा मगर, एक था ‘नाथूराम गोडसे’ जिसे ये किसी भी कीमत पर मंजूर न था कि अखंड भारत को खंडित करने के पश्चात् हिन्दुओं के हिस्से में से उनका हक भी छीनकर दूसरों को दिया जाये

इसलिये उसने मन में ठान लिया कि वो महान हस्ती जिसने देश की आज़ादी के लिये लम्बी लड़ाई लड़ी, जिसे देश का हर एक व्यक्ति न केवल पसंद करता है बल्कि, उन्हें प्रेम से ‘बापू’ और ‘महात्मा’ तक कहता है उसकी हत्या कर देना है ये कुछ उसी तरह का मामला था जैसे कि कोई पिता अपनी सम्पति में से किसी एक पुत्र को अधिक हिस्सा दे तो दूसरे की नाराजगी स्वाभाविक है मगर, यदि वो सहिष्णु हो तो खामोश रहकर इस अन्याय को सह लेता है मगर, जो न्याय के पक्षधर होते वे अर्जुन की तरह अपनों के ही खिलाफ़ युद्ध के लिये खड़े हो जाते फिर चाहे अपनों को मारकर ही उसे प्राप्त करना पड़े पीछे कदम नहीं हटाते क्योंकि, उन्हें पता होता है कि धर्म युद्ध में यदि ऐसे अपनों को छोड़ दिया जाये तो आगे जाकर वे परेशानी खड़ी कर सकते है

जैसा कि इस मामले में हुआ केवल ‘महात्मा गाँधी’ ही मारे गये पर, उनकी ‘कौरव सेना’ शेष रही जिसका खामियाजा न जाने कितनी पीढियां भुगत रही और न जाने कब तक झेलती रहेगी वो भी तब जबकि, अब न तो कोई ‘धर्मराज’ है और न ही कोई ‘अर्जुन’ या ‘भीम’ ही है ये पक्षपात देखकर जिसका खून खौलता हो अब तो सब सियासत में अपना-अपना हिस्सा पाकर मस्त है, अपने में ही व्यस्त है, मुफ्तखोरी ने उनकी जुबान पर ताले तो चाटुकारिता ने पैरों में बेड़ियाँ डाल दी है ऐसे में किसी को दूरगामी भविष्य दिखाई नहीं दे रहा कि किस तरह कौरव सेना बढ़ती जा रही है

ऐसे में पांच पांडवों को उस नारायणी सेना व सारथी की की बेहद जरूरत जो उनको सही दिशा दे सके क्योंकि, बिना संगठित हुये इस जंग को जीतना कठिन है अब परिस्थितियां ही नहीं मानसिकता भी बदल चुकी है जिनकी सफाई इतनी आसान नहीं क्योंकि, अब सोच का दायरा देश नहीं स्वार्थ है वो देश जिसे बंटवारे के समय ही ये निश्चित कर लेना था कि वो लोग जो धर्म के नाम पर बंटवारा चाहते है वे उसी समय सपरिवार दूसरे हिस्से में चले जायेंगे तो आज भारत का मानचित्र व तस्वीर ही कुछ अलग होती और रोज-रोज का ये झगड़ा एक बार में ही खत्म हो जाता पर, उन्होंने तो इसे स्वैच्छा पर छोड़ दिया जिसकी वजह ‘महात्मा गाँधी’ ही थे

१९४७ के बंटवारे में की गयी लम्हों की खता न जाने कितनी सदियों तक भुगतनी होगी, न जाने कब तुष्टिकरण व पक्षधरता की राजनीति खत्म होगी और न जाने ये सोच कितने ‘नाथुराम गोडसे’ पैदा करेगी जो न जाने कितनी जानें लेगी । ३० जनवरी की सुबह यही याद दिलाती है क्योंकि, अब कोई नहीं चाहता कि फिर से देश बंटे और फिर ‘महात्मा गाँधी’ की हत्या हो अब तो यही सबकी ख्वाहिश कि सब अपने इन क्रांतिवीरों की शहादत से सबक लेकर एक बने, नेक बने... देश तरक्की करें जिसमें भेदभाव न हो, न कोई तुष्टिकरण... जय हिन्द, जय भारत... वन्दे मातरम...  🇮🇳️ 🇮🇳️ 🇮🇳 !!!

हे राम...! हे राम...!! हे राम...!!!     

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी ३०, २०१९

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