शनिवार, 19 जनवरी 2019

सुर-२०१९-१९ : #वृक्ष_मानव_विश्वेश्वर_दत्त_सकलानी #पर्यावरण_को_देकर_गये_पचास_लाख_निशानियाँ




“जब पेड़ ही नहीं रहेंगे तो ज़मीन भी नहीं रहेगी, न रहेंगे आप और न ही रहेंगे हम”
---विश्वेश्वर दत्त सकलानी

आठ साल की उम्र में पेड़ लगाने का ऐसा शौक लगा कि ‘विश्वेश्वर दत्त सकलानी’ पचास लाख पेड़ लगाकर ‘वृक्ष मानव’ ही बन गये और पर्यावरण को वो जो निशानियाँ देकर गये वे न केवल प्रकृति बल्कि, हमारा भी सरंक्षण करती रहेंगी और इससे बड़ी मानवता व कुदरत की कोई सेवा नहीं हो सकती जो उन्होंने की जिसके लिये उनका सदैव स्मरण किया जाता रहेगा और उनके लगाये पेड़ न जाने कितने जीवन को साँसें देकर जिलाते रहेंगे उनके इस ऋण से हम कभी उऋण नहीं हो सकते ये तो निःस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा है

उनके पेड़ लगाने के इस शौक का किस्सा भी बड़ा रोचक है कहते है कि उनके पिता के परदादा को उनकी शादी में देवदार के दो पेड़ उपहार में मिले जो उनके न रहने पर भी धरती पर मौजूद रहे तो ये देखकर उन्हें बड़ी हैरानी हुई कि वो दुल्हा-दुल्हन जिनको अपने विवाह में भेंट स्वरुप ये अनमोल धरोहर मिली थी वो अब इस धरा पर नहीं है लेकिन, उनके जाने के दो-सौ साल बाद भी उनका अस्तित्व कायम है तो बस, इस ख्याल ने जैसा कि कहते भी है कि, “An idea can change your life” तो वही हुआ उनके मन में ये विचार क्या आया उनका तो पूरा जीवन ही बदल गया वो एक साधारण मानव से ‘वृक्ष मानव’ बन गये

उन्होंने पर्यावरण के महत्व को न जानते हुये भी केवल जीवन के बाद भी पेड़ की उपस्थिति को देखते हुये ये निर्णय लिया कि वो यही काम करेंगे तो १९४८ में जब उनकी पत्नी न रही उन्होंने इस काम को करने को जो बीड़ा उठाया तो अपने आपको ही इसके लिये पूर्णतया समर्पित कर दिया जिसके परिणामस्वरूप वीराने में बहार आ गयी फिर भी वे अनवरत ये कार्य करते रहे जिसकी वजह से उनकी आँखें तक चली गयी पर, फिर भी उनका जोश कम न हुआ वे अपने संकल्प को पूरा करने आगे बढ़ते ही रहे और अपने पैतृक गाँव पुजार के आस-पास की बंजर व पहाड़ी भूमि को हरियाली से भर दिया       

उनके इस कार्य को देखते हुये उन्हें अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया जिसमें 19 नवंबर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा दिया गया ‘इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र’ पुरस्कार उल्लेखनीय है

तीन किलो की कुदाल मेरी कलम है, धरती मेरी किताब है, पेड़-पौधे मेरे शब्द हैं, मैंने इस धरती पर हरित इतिहास लिखा है

उनके कहे ये शब्द और उनके लगाये पेड़ ही अब उनकी निशानी बतौर हमारे साथ है क्योंकि, १८ जनवरी २०१९ को उन्होंने ९८ की उम्र में अंतिम सांस ली और उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गयी उनके इस अभूतपूर्व कार्य व एकनिष्ठ सेवा हेतु ऐसे कर्मयोगी समाजसेवक प्रकृति रक्षक को शब्दांजलि, श्रद्धांजलि...।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी १९, २०१९

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