मंगलवार, 8 जनवरी 2019

सुर-२०१९-०८ : #सिने_जगत_की_दिलेर_फेमिना #स्टंट_क्वीन_फ्री_फ्रेंक_फियरलेस_नाडिया



आज हिन्दी सिनेमा में ऐसी बहुत-सी सशक्त नायिकायें है जो बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड में भी अपनी प्रतिभा ही नहीं अपने अभिनय का भी परचम लहरा रही हैं उसके बावजूद भी एक-भी ऐसी हीरोइन नहीं जो बहादुरी के साथ घोड़े पर बैठकर आये और हाथ में हंटर लेकर बड़े-से-बड़े खलनायक से सीधी टक्कर ले सके और जिसके सामने हीरो भी दोयम दर्जे पर हो जो दर्शाता कि इतनी उपलब्धियों या ख्याति के बाद भी आज की सभी नायिकायें स्थापित समकालीन नायकों से कम ही है जिन्हें मेहनताना भी उनसे कम मिलता है

अभी तक ‘सुपर हीरो’ की तो अनेकों फ़िल्में बनी मगर, एक भी फिल्म ऐसी नहीं बनी जिसमें अभिनेत्री सुपर हीरोइन हो मगर, आज से आठ दशक पूर्व हिन्दी सिनेमा के रजत पर्दे ने एक ऐसी नायिका को देखा है जिसके लिये सुपर वीमेन या फ्री-फ्रेंक, फियरलेस, स्टंट क्वीन जैसे टाइटल का प्रयोग किया जाता था और वो उस दौर की कहानियों में दिखाई जाने वाली रोने-धोने वाली या घर की चारदीवारी में महज़ एक आम गृहिणी या फिर पौराणिक चरित्रों को प्रस्तुत वाली अदाकाराओं के एकदम विपरीत और बोल्ड थी

वह एक ऐसी नायिका थी जिसकी केवल बाहरी वेशभूषा ही नहीं बल्कि, सम्पूर्ण हाव-भाव, हरकतें, बॉडी लैंग्वेज, बोलचाल की भाषा बोले तो हर एक चीज़ उसे तमाम सिने तारिकाओं से अलग प्रदर्शित करती थी जिसकी वजह से उसके लिये बनने वाली फ़िल्में भी विशेष होती थी जिनके नाम भी ऐसे कि नायकों को भी इस तरह के किरदार कम ही मिलते थे पर, ‘नाडिया’ की तो बात ही अलग थी वो तो जब स्क्रीन पर आती लोग उसे देखकर जोश में भर जाते थे आज के समय में हम जो सुपर हीरो की मूवीज देखते उस समय में उन्होंने अपने दम पर ऐसी कई फ़िल्में लगातार दी जो आज भी किसी एक भी अभिनेत्री के पास नहीं क्योंकि, हमारे यहाँ केवल सुपर हीरो की परिकल्पना है  

वह घुड़सवारी, कुश्ती, तैराकी, तलवारबाजी के साथ-साथ जमीन से बिल्डिंग पर छलांग लगाने में भी माहिर थी ऐसे सारे स्टंट जो आज भी हमारे यहाँ केवल हीरो के द्वारा ही किये जाते है उस समय में जबकि, हिन्दी सिनेमा अपनी किशोरावस्था में ही था और सिने स्क्रीन पर पारम्परिक कथाओं के जरिये सामान्य चरित्रों को ही प्रस्तुत किया जाता था नाडिया ने उस छवि को तोड़कर अपने लिये एक अलग इमेज तैयार की और जैसा कि हम जानते है कि जो भी लीक से हटकर कहता या मिसाल कायम करता उसे विस्मृत कर पाना नामुमकिन होता है तो यही वजह कि हिंदी सिने जगत ‘नाडिया’ के योगदान को नहीं भूल सकता है

नाडिया का जन्म आज ही के दिन 8 जनवरी को 1908 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के 'पर्थ' शहर में हुआ तथा उनके पिता हर्बर्ट इवान्स ब्रिटिश सेना में सैनिक थे और अपने तबादले की वजह से उनका मुम्बई आना महज संयोग नहीं बल्कि, किस्मत का लेखा था तो वे यहाँ आई तो फिर यही की आकर हो गयी अपने पिता की असमी मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझते हुये स्टेनो टाइपिस्ट से शुरुआत करते हुये सर्कस में कलाबाजिया की तो बैले डांसर बनकर अपनी चपलता का प्रदर्शन भी किया जहाँ होमी वाडिया की नजर उन पर पड़ी और फिर वो ‘वाडिया मूवीटोन’ की स्थायी नायिका ही नहीं आगे चलकर उनकी अर्धांगिनी भी बन गयी और अपना एक अलग अध्याय लिखा

उन्होंने अपने पूरे कैरियर में ऐसे हैरतअंगेज कारनामे फिल्मों में किये कि देखने वाले साँस रोककर उन दृश्यों को देखते रह जाते थे जब वे पर्दे पर अवतरित होती थी उनका आगमन १९३४ में बनी ‘हंटरवाली’ फिल्म से कुछ ऐसा हुआ कि फिर वो भूमिका ही उनकी पहचान बन गयी उसके बाद आई ‘जंगल प्रिंसेज’ में तो उन्होंने शेर से लड़ने जैसे खतरनाक स्टंट तक किये जिसके बाद मिस फ्रंटियर मेल, पंजाब मेल, डायमंड क्वीन, हंटरवाली की बेटी, स्टंट क्वीन, हिम्मतवाली, लेडी रॉबिनहुड, तूफान क्वीन, दिल्ली एक्सप्रेस, कार्निवल क्वीन, सर्कस क्वीन, खिलाड़ी जैसी कई फ़िल्में उनके नाम पर दर्ज हो गयी जिनके नाम से उनके रोल का भी अंदाजा लगाया जा सकता है

उनकी इस नकाबपोश जाँबाज सुपर हीरोइन छवि का प्रभाव ये था कि एक फिल्म ‘मौज’ में जब उन्होंने रोने वाला एक दृश्य किया तो वितरक ने उसे ये कहते हुये हटा दिया कि ‘नाडिया रो नहीं सकती’ जबकि, आज की नायिकायें भी रोने-धोने वाली भूमिकाएं अभिनीत कर रही है ऐसी दिलेर जंगबाज लेडी रोबिनहुड स्टंट क्वीन ‘फियरलेस नाडिया’ को जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई... <3 !!!
     
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी ०८, २०१९

कोई टिप्पणी नहीं: