शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

सुर-२०१९-०४ : #पैर_जरुर_कटा_पर_हिम्मत_नहीं #अरुणिमा_सिन्हा_विकलांग_पर्वतारोही_बनी




एक और जहाँ पूर्ण रूप से स्वस्थ और शिक्षित महिलायें सबरीमाला मन्दिर में जाने के लिये लाइन लगाकर खड़ी थी वहीं दूसरी तरफ दुर्घटनावश विकलांग बनी अरुणिमा सिन्हा माइनस 40 से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान व तेज और बर्फीले तूफान के बीच अपने हाथों में तिरंगा लिये अपनी सांसों को ऑक्सिजन के सहारे बचाते हुये ऐसे डरावने और भयावह माहौल में जहाँ जिंदगी और मौत के बीच लगातार एक कड़ी जद्दोजहद चल रही थी

इन सब कठिनाइयों को झेलते हुये वे केवल अपने भीतर के जज्बे व जिद का बल पर अपनी आंखों में झिलमिलाते सैकड़ों सपने और बेशुमार अडिग इरादों को पूर्ण करने लिए गुरुवार 12 बजकर 27 मिनट पर दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में शामिल अंटार्कटिका के सबसे ऊंचे शिखर ‘माउंट विन्सन’ का ने केवल माथा चूम लिया बल्कि वहां पर तिरंगा भी फहरा दिया और इस तरह वह ऐसा अविश्वसनीय कारनामा करने वाली दुनिया की पहली महिला दिव्यांग पर्वतारोही बन गई हैं ।   

अरुणिमा ने अपनी इस जीत को देश के प्रधानमन्त्री के साथ साँझा करते हुये अपने ट्वीट में यूँ लिखा, “इंतजार खत्म हुआ, मुझे आपके साथ यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि माउंट विन्सन (अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी ) पर चढ़ाई करने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला का विश्व रिकॉर्ड हमारे देश के नाम पर हो गया है” ।

शायद, आप सबको याद हो कि ये वही अरुणिमा सिन्हा है जो 11 अप्रैल 2011 को पद्मावती एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थी तब रात के लगभग एक बजे कुछ शातिर अपराधी ट्रैन के डिब्बो में सवार हुए और उनको अकेला देखकर उनके गले की चैन छिनने का प्रयास करने लगे जिसका विरोध करने पर उन शातिर चोरो ने अरुणिमा को चलती हुई ट्रैन से लगभग बरेली के पास बाहर फेक दिया जिसकी वजह से उनका बाया पैर पटरियों के बीच आकर कट गया और वे पूरी रात कटे हुए पैर के साथ दर्द से चीखती चिल्लाती रही फिर एक वक़्त ऐसा भी आया जब 40 से 50 ट्रैन गुजरने के बाद उन्होंने अपने जीवन की आस पूरी तरह खो दी लेकिन, जब आपका जन्म किसी विशेष कार्य के लिये हुआ हो तो फिर सब कुछ अपने आप हो जाता है

इस घटना की जानकारी होने पर इन्हें नई दिल्ली के AIIMS में भर्ती कराया गया जहा वे अपनी जिंदगी और मौत से लगभग चार महीने तक लड़ती रही और इस जंग में अरुणिमा की जीत हुई फिर उनके बाये पैर को कृत्रिम पैर के सहारे जोड़ दिया गया पर, इस हालत को देखकर डॉक्टर जहाँ उन्हें कुछ करने की जगह आराम करने की सलाह दे रहे थे वहीँ परिवार वाले और रिश्तेदारों की नजर में अब वे कमजोर और विंकलांग हो चुकी थी ऐसी स्थिति में उन्होंने अपने हौंसलों में कोई कमी नही आने दी और न ही किसी के आगे खुद को बेबस व लाचार ही साबित किया

फिर शुरू हुआ सिलसिला उस अविश्वसनीय व हैरतअंगेज कारनामे का जिसने उनके जीवन की दिशा एकदम बदल दी 21 मई 2013 को उन्होंने एक कृत्रिम पैर के सहारे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) पर चढ़ाई कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया यही नहीं उन्होंने अफ्रीका की किलिमंजारो, रूस की एल्ब्रुस, इंडोनेशिया की कास्टेन पिरामिड, किजाश्को, माउंट अंककागुआ आदि जैसी पर्वत चोटियों पर विजयश्री हासिल की है ।

देश की बेटियां यदि इस तरह की ऊँचाइयाँ छूने की जिद करें और ऐसे क्षेत्रों में आकर अपना नाम रोशन करें तो न जाने कितनी बेटियों के लिये प्रेरणा बनकर उनका जीवन बदल सकती है और जब वे ऐसा एक नकली पैर के साथ कर सकती है तो हम सब के पास तो दो-दो असली पैर है फिर भी उनसे बड़े लक्ष्य पाने की जगह मन्दिरों में जाने के लिये खड़े है तो सोचने की जरूरत है ज्यादा जरूरी क्या है ???  

देश की बेटी और पर्वतरोही ‘अरुणिमा सिन्हा’ को इस उपलब्धि पर अनेकानेक शुभकामनायें... <3 !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी ०४, २०१९

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