बुधवार, 23 जनवरी 2019

सुर-२०१९-२३ : #कांग्रेस_से_राह_अलग_अपनी_मोड़ #बने_लोकप्रिय_नेताजी_सुभाष_चंद्र_बोस




23 जनवरी 1897, ऐतिहासिक दिवस जब उड़ीसा के कटक में पिता जानकीनाथ बोस व माता प्रभा देवी के घर संतान रूप में 'सुभाष चन्द्र बोस' ने जनम लिया ये वही समय जब देश की पृष्ठभूमि में स्वामी विवेकानन्द अपनी ओजस्वी वाणी व तेजस्वी व्यक्तित्व से एक नये भारत की इबारत लिख रहे थे ।

ऐसे में उन ऊर्जावान तरंगों से सुभाष का अप्रभावित होना असम्भव था तो उन पर उनके वचनों का गहरा असर पड़ा और उन्होंने भी अपने देश को उनकी ही तरह विश्व पटल पर स्थापित करने का एक सपना देखना शुरू कर दिया ये जानते हुए भी कि गुलामी की जंजीरें बहुत मोटी और दम घोटने वाली है ।

जिसका अनुभव उन्हें अपने आस-पास के माहौल व होने वाली घटनाओं से बाल्यकाल में ही होना शुरू हो गया था पर, 1916 की एक घटना ने तो उनके भीतर क्रांति की ऐसी मशाल जला दी कि अहिंसावादी सिद्धान्त पर चलकर आजादी पाने का विचार उनको रास न आया इस वजह से उन्होंने कांग्रेस पार्टी को अलविदा भी कह दिया क्योंकि, वे समझ चुके थे कि लातों के भूत बातों से नहीं मानने वाले तो फिर उन्होंने वही रास्ता अपनाया और देश के पहले प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल कर देश को अपने हक के लिए लड़ना सिखाया बताया कि चरखे से सिर्फ कपड़ा बुना जा सकता है पर, आज़ादी के सपने को सच करने और देश बचाने तो खून बहाना पड़ता है ।

अपने हक के लिये लड़ने की उनकी आदत किशोरावस्था से ही थी जिसका प्रमाण उनके कॉलेज की इस घटना से लगता है बात 1916 की है जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस अपनी उम्र के 19 वे साल से गुजर रहे थे और निवास स्थल वही उनके आदर्श स्वामी विवेकानंद की जन्म व कर्मभूमि कलकत्ता था । जहां के एक कॉलेज में वे उस वक़्त अध्ययनरत थे और वहां अधिकांश प्रोफेसर अंग्रेज थे ऐसे ही एक दिन कक्षा में पढ़ाते-पढ़ाते ओटन नामक एक अंग्रेज प्रोफेसर ने भारत और भारतीयों की बुराई करना शुरू कर दी जो युवा सुभाष से सहन न हुई और जब बात इस लेवल पर पहुंच गई कि उन्होंने भारत को अपशब्द कहना शुरू कर दिया तब उनका खुद पर काबू न रहा गया

फिर भी पहले उन्होंने अंग्रेज प्रोफेसर को चेतावनी दी कि वे भारत के बारे में वे अब एक भी शब्द बुरा न बोलें मगर, जब उस प्रोफेसर ने युवा सुभाष की चेतावनी को यह सोचकर हल्के में ले लिया कि एक गुलाम छात्र भला क्या कर लेगा? इस ख्याल से प्रोफेसर ओटन ने फिर बोलना शुरू ही किया था कि सुभाष अपनी जगह से उठे और प्रोफेसर को एक जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया अचानक हुये इस हादसे से प्रोफेसर सन्न रह गये थे वो कोई आज के युवा नहीं जो खुद अपने देश की बुराई करते और हंसते है ।

इसके बाद सुभाष ने आत्मविश्वास से भरे स्वर में जोश के साथ कहा- “मेरे भारत को कोई भी व्यक्ति अपशब्द नहीं कह सकता। यह देश दुनिया की सबसे श्रेष्ठ संस्कृति और सबसे उन्नत सभ्यता वाला देश है और यह बात तुम अंग्रेज कभी नहीं समझ सकोगे”।

उन्होंने अपने देश की सभ्यता-संस्कृति पर गर्व था जिसके लिये वे मरने-मारने का दम रखते थे न कि कृतध्न युवाओं की तरह देश का मखौल बनाते फिरते थे और जब वे क्रांतिकारी विचारधारा का अपनी पार्टी कांग्रेस से तालमेल न बिठा पाये तो उन्होंने उसे छोड़कर अपनी अलग राह ही नहीं अपनी अलग सेना बनाई और आज़ादी की लड़ाई लड़कर विजेता भी बने आज उसी ऊर्जा से भरपूर देशभक्त राष्ट्रनिर्माता देश के एकमात्र नेता सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिवस है... समस्त राष्ट्र की तरफ से उनको <3 से बधाई... जय हिन्द...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी २३, २०१९

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