शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

सुर-२०१९-१८ : #इतिहास_की_एक_महत्वपूर्ण_तिथि #लाई_तीन_अजीम_शख्सियतों_की_स्मृति




यूँ तो अपनी प्रतिभा से लोग अपनी कला के जरिये दुनिया में अपना नाम करते ही है परंतु, चंद ऐसे होते जो उस कला को अपनी कलाकारी से इस तरह रोशन करते है कि अक्सर, उसके पर्याय बन जाते है और जब जिक्र हो उस फन का तो अक्सर लोग उनका नाम सबसे पहले लेते है जो उनका उस कला के प्रति समर्पण ज़ाहिर करता है । ऐसा ही कारनामा अपने हुनर से के.एल.सहगल, हरिवंश राय बच्चन और सआदत हसन मंटो ने किया जिन्होंने गायन व लेखन को अपनी कार्यसिद्धि व प्रवीणता से इस कदर ऊँचा मुकाम दिलाया कि आज गायिकी, कविता और कहानी की जगह इनका नाम ही पर्याप्त है ।

के. एल. सहगल
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११ अप्रैल १९०४ को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को अपने गायन से पहचान दिलाने वाले कुंदन लाला सहगल का जन्म हुआ जिनके गाये गये गीत आज भी सुनने वाले को संगीत के सही मायने समझाते है गायिकी की उन बारीकियों से परिचित कराते है जिनको सीख पाना नामुमकिन है क्योंकि, वे आज के गायकों की तरह तकनीक के सहारे प्रसिद्धि के शिखर पर नहीं पहुंचे और न ही उन्होंने किसी शोर्टकट का ही सहारा लिया बल्कि, उनका तो जन्म ही गाने और अभिनय के लिये हुआ था तो फिर किस तरह वे इससे मरहूम रहते तो जैसे ही उन्हें अवसर मिला उन्होंने इस तरह पूरी शिद्दत से उसे सबके सामने प्रस्तुत किया कि लोगों के लबों से उसे सुनकर स्वतः ही आह निक गयी और आज का दिन जब वे १८ जनवरी १९४७ को हमारा साथ छोड़कर चले गये और उनके जनाजे पर उनकी आखिरी ख्वाहिश के तौर पर उनका ही गाया गया ये गीत बजाया गया...

जब दिल ही टूट गया हम जीकर क्या करेंगे
   
हरिवंश राय बच्चन
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२७ नवम्बर १९०७ को अपनी ‘मधुशाला’ से अपने पाठकों को दीवाना बना देने वाले हिन्दी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ हरिवंश राय बच्चन का जन्म हुआ जिन्होंने अपनी कलम के जरिये इस तरह अपने चाहने वालों को सदा ही कुछ नया ही देने का प्रयास किया और गद्य ही नहीं पद्य में भी अपनी काबिलियत के जलवे बिखेरे जिसे पढ़कर न जाने कितने खुद को उनकी तरह कवि सम्मेलनों के मंच पर स्थापित करने व उनकी तरह से अपने लिखे को सबके सामने पेश करने की ख्वाहिश अपने मन में पालने लगे और आज भी जबकि, वो १८ जनवरी २००३ को हमसे विदा लेकर जा चुके उनका स्थान उसी तरह बदस्तूर कायम है जिसे कोई नहीं ले सकता कि वे कोई आम कलमकार नहीं बल्कि, मिसाल कायम करने वाली हस्ती है और आज उनके जाने के इतने समय बाद भी लोग उनके लिखे शब्दों पर झूम जाते है...

मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला

सआदत हसन मंटो
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११ मई १९१२ को अपनी कहानियों से साहित्य जगत को हिला देने वाले और सच्चाई को उसी तरह बिना लिबास के लिख देने वाले बिंदास माने जाने वाले लेखक सआदत हसन मंटो का जन्म हुआ जिनकी लिखी हुई कहानियों को पढ़कर पाठक स्तब्ध रह गया क्योंकि, उससे पहले तक इन विषयों पर इस तरह से बेख़ौफ़ होकर किसी ने कलम न चलाई थी पर, जब उनके लिखे कड़वे सच से लबरेज किस्से सामने आये तो फिर हंगामा तो होना ही था तो हुआ और इतने जोर से कि उनको अदालत के कटघरे तक में खड़ा होना पड़ा कि तब तक इस तरह की नग्न हक़ीकत को अश्लीलता समझा जाता था जो आज सब तरफ अपने वीभत्स रूप में बिखरी पड़ी है मगर, उन्होंने तो वही लिखा जो उनको दिखाई दिया इसलिये उन पर कोई जुर्म साबित न हुआ और वे बेगुनाह रिहा हुये जिसके बाद कलम की धार और तेज हुई जिसका पैनापन आज भी सीने में चुभता है भले वो आज ही के दिन १८ जनवरी १९५५ को इस दुनिया से रुखसत हो गये पर उन्होंने जो सवाल खड़े किये वे अब तक अनुतारित्त है
आज इन तीनों महान हस्तियों की पुण्यतिथि पर इनको अपने सभी चाहने वालों की तरफ से शब्दांजलि... !!!
     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी १८, २०१९

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