शनिवार, 12 जनवरी 2019

सुर-२०१९-१२ : #देश_के_नौजवानों_का_मार्गदर्शक #स्वामी_विवेकानंद_का_जीवन_दर्शन_०३




नर + इंद्र = नरेंद्र

अर्थात, जिस व्यक्ति का नरेश या राजा जैसा तेजोमय व्यक्तित्व हो और जो सभी नरों के बीच राजा की तरह सुशोभित हो उसे ही ‘नरेंद्र’ कहते है ।

इस तरह नाम के अनुरूप यदि व्याख्या करे तो पाते है कि ‘स्वामी विवेकानंद’ ने अपने नाम को सार्थकता प्रदान करते हुए इस तरह के कार्य किये जो उन्हें अपने समकालीन ही नहीं बल्कि, आज के मानवों के बीच भी सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करते है । यहां तक कि इसके बाद उन्हें जो नया नाम ‘विवेकानंद’ मिला वह भी उनकी बुद्धिमता व ज्ञान-विवेक का परिचायक है जिसने समस्त विश्व को अपनी ज्ञान ज्योति से आलोकित किया और आज भी उनका साहित्य व प्रेरक वाक्य हमें अंधकार में राह दिखाते और भटकने से बचाते है ।

जीवन उनका जितना छोटा रहा काम उन्होंने उतना ही बड़ा किया जिसकी वजह से समस्त भूमण्डल पर हमारी सनातन विचारधारा का प्रचार-प्रसार हुआ और एक गुलाम देश ने बेड़ियों में जकड़े होने पर भी अपनी उस ताकत का जगत को दर्शन करवाया जिसके बल पर बिना अस्त्र-शस्त्र के किसी भी शत्रु को पराजित किया जा सकता है । ये सब उन्होंने ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में कर के दिखाया जबकि, आवागमन या संचार के साधन भी इतने सुलभ नहीं थे फिर भी जब उन्होंने ठान लिया तो फिर कोई भी बाधा या कोई भी कठिनाई उनके बढ़े हुये कदमों को रोक न सकी वे तभी रुके जब उनकी मंजिल चलकर उनके पास आ गयी

आज तो हम स्वतंत्र है और देश-विदेश के किसी भी कोने में जाना दुर्गम नहीं और न ही किसी जानकारी को प्राप्त कर पाना ही कठिन है पर, इच्छाशक्ति व आत्मबल इस कदर दुर्बल हो गया कि सुबह का लिया संकल्प शाम को ही स्वर्गगामी हो जाता ऐसे में किस तरह उम्मीद की जा सकती कि ये युवा जो मोबाइल की अदृश्य तरंगों की बेड़ियों से बंधे हुये सेलफोन में कैद वो अपने देश की गिरती साख या रुपये के अवमूल्यन को रोकने ऐसा कोई विराट कदम उठायेंगे जिससे कि विकसित देशों की सूची में हमारा भी नाम हो न कि हमारे ये युवा विदेश जाकर अपने देश को ही बिसरा दे और यहां हम उनकी राह ताकते यही सोचते रहे कि, वे अकेले खुद का नहीं अपनी जन्मभूमि का भी ख्याल रखेंगे उसे भी उन्नति की दौड़ में जीत हासिल करने में सहयोगी बनेंगे न कि खुद मंज़िल पाकर बैठ जायेंगे जैसा कि देखने में आ रहा है ।

युवा तो अनेक विदेशी धरा पर विचर रहे पर, उनमें से कितने जिनके ख्यालों में ही सही अपना देश है और एक वो थे जिन्होंने निज हित नहीं सिर्फ और सिर्फ देश हित इतना महान काम किया कि भारतमाता अपने इस सपूत पर गर्व करती और जो भी उसने किया उसके लिये सदैव उसका स्मरण करती है । आज उनकी 156वी जयंती पर यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम उनके बताये सूत्रों व मंत्रों में से किसी भी एक को अपना ध्येय समझ ले और बस, चलते चले जाये जब तक कि मंज़िल पर न पहुंचे वही होगी उनके जन्मदिन की उपयुक्त भेंट... नमन चिरयुवा युगप्रणेता स्वामी विवेकानन्द को... युवा करें धारण उनके वचनों को बने उनकी ही तरह युगपुरुष... देश फिर बने ‘विश्वगुरु’ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
जनवरी १२, २०१९

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