सोमवार, 11 मार्च 2019

सुर-२०१९-७० : #रमज़ान_और_मतदान #लोकतंत्र_महापर्व_में_एक_समान




जब तक चुनाव आयोग ने 2019 में होने वाले लोकतंत्र के महापर्व चुनाव की तिथियां घोषित नहीं की थी हर कोई उन पर ऊँगली उठा रहा और यही सवाल पूछ रहा था कि आखिर, चुनाव कब होंगे ?

कल चुनाव आयोग ने प्रेस वार्ता कर इन सब अटकलों पर विराम लगाते हुये सात चरणों में होने वाले आगामी चुनाव की समय सारिणी सबके समक्ष रख दी तो लगा कि आचार संहिता लागू होते ही फ़ालतू की बातों पर भी ब्रेक लग जायेगा मगर, जिनका उद्देश्य केवल शोर करना या हाय-तौबा मचाना है उनके लिये ये सब कोई मायने नहीं रखता वो तो एक सवाल खत्म होते ही दूसरे पर आ जाते जो उनके झोले में रखे ही रहते तो जिसका अंदेशा था वही हुआ जब इनको लगा कि अब इस पर कोई बात संभव नहीं तो नया शिगूफा छेड़कर ध्रुवीकरण का पुराना फार्मूला आजमाते हुये हंगामा खड़ा कर दिया कि निर्वाचन आयोग ने जान-बूझकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल में चुनाव की तिथियाँ रमज़ान के दौरान रखी ताकि, वे मतदान न कर सके

इस पूरे मुद्दे को जमीन देने का काम किया कोलकाता के मेयर और तृणमूल कांग्रेस (टी.एम.सी) नेता फिरहाद हाकिम ने जिन्होंने कहा कि कहा कि “चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है और हम उसका सम्मान करते हैं हम चुनाव आयोग के खिलाफ कुछ नहीं कहना चाहते, लेकिन सात फेज में होने वाले चुनाव बिहार, यूपी और पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए कठिन होंगे। इतना ही नहीं, इन चुनावों में सबसे ज्यादा परेशानी मुस्लिमों को होगी क्योंकि, बी.जे.पी. चाहती है मुस्लिम न डाल पाएं वोट इसलिये वोटिंग की तारीखें रमजान के महीने में रखी गई हैं”

बस, ओपनिंग बैट्समैन के शॉट मारने की जरूरत थी फील्डिंग में तो खड़े ही थे कई एक-एक कर लपक लिये ने सभी उस गेंद को जिसने मुद्दे के लिये तरसते उन सभी मुद्दाविहीन राजनेताओं को एक बहुत बड़ा झुनझुना दे दिया तो सब लगे बजाने...

आप सांसद संजय सिंह ने ट्वीट किया, “चुनाव आयोग मतदान में हिस्सा लेने की अपील के नाम पर करोड़ों खर्च कर रहा है, लेकिन दूसरी तरफ 3 फेज का चुनाव पवित्र रमजान के महीने में रख कर मुस्लिम मतदाताओं की भागीदारी कम करने की योजना बना दी है। सभी धर्मों के त्योहारों का ध्यान रखो मुख्य चुनाव आयुक्त साहेब”।

तो अमानतुल्लाह ने ट्वीट किया, “12 मई का दिन होगा, दिल्ली में रमजान होगा। मुसलमान वोट कम करेगा, इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा” ।

जिसमें धर्मगुरु भी शामिल हो गये और देखते-देखते एक छोटी-सी चिंगारी ने भड़ककर दावानल का रूप ग्रहण कर लिया...  

लखनऊ के ईदगाह इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने चुनाव आयोग के इस फैसले से नाराजगी जताते हुये कहा कि “आयोग से मुसलमानों की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिये और मैं रमजान के महीने में चुनाव ना कराने का निवेदन करता हूँ” ।

मौलाना खालिद ने कहा, "रमजान का महिना 5 मई से शुरू हो जाएगा अगर, चांद दिखाई दिया तो 6 मई को पहला रोजा होगा और मई में गर्मी के कारण मुस्लिमों को वोट डालने में दिक्कत हो सकती है। इन बातों का ध्यान रखते हुए चुनाव आयोग अगर तारीखों में कुछ फेर-बदल कर दे तो बेहतर होगा” ।

शहर काजी और मुफ्ती अबुल इरफान ने कहा, "हम हमेशा लोगों से वोट ज्यादा से ज्यादा डालने की अपील करते हैं लेकिन, इस दौरान रमजान के कारण यह मुनासिब नहीं हो पाएगा अतः हम चुनाव आयोग से इस बात का ख्याल रखते हुए तारीखों में फेर बदल करने की मांग करते है।"

शिया समुदाय के धर्मगुरु कल्बे जव्वाद ने कहा कि, “आयोग को चुनाव की तारीखों का ऐलान करते समय रमजान की तारीखों को भी ध्यान में रखना चाहिए था वोट डालने के लिए लोगों को घंटों लाइन में खड़े रहना पड़ता है। ऐसे में रोजेदारों को गर्मी की शिद्दत में दिक्कत हो सकती है इसलिए हम चुनाव आयोग से गुजारिश करते है कि चुनाव की इन तारीखों को बदला जाए।“

इस तरह इस पर राजनीति शुरू हो गयी तब भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि, “हिंदू भाई भी व्रत करते हैं, वे भी तो मतदान करते हैं। रोजा रखने वाले कई लोग ऑफिस जाते हैं, अपना काम करते हैं, यह पहला मौका नहीं है कि जब रमजान में मतदान हो रहा है इस पर सवाल नहीं उठाने चाहिए” यहाँ तक कि इस पूरे मसले पर चुनाव आयोग को आगे आकर कहना पड़ा कि, “शुक्रवार और त्योहारों के दिन मतदान नहीं है और पूरे महीने को नहीं छोड़ा जा सकता था”

इस पूरे मामले में किसी ने अगर, सही तरह से टिप्पणी की तो वो थे AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी जिन्होंने कहा कि, “यह पूरा विवाद ही गैर-जरूरी है जो लोग ऐसा कह रहे हैं मैं उन सभी राजनीतिक दलों से ईमानदारी से अपील करूंगा कि कृपा करके मुस्लिम समुदाय और रमजान का इस्तेमाल अपने फायदों के लिए न करें भले ही आपकी कोई मजबूरी हो मुसलमान निश्चित रूप से रमजान में रोजे रखेंगे, वे बाहर जाते हैं और सामान्य जीवन जीते हैं, वे दफ्तर जाते हैं, यहां तक कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी रोजे रखेंगे. मेरा मानना है कि रमजान के महीने में मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा”

कोई भी धर्म या मजहब ये नहीं कहता कि जब हम व्रत या उपवास करें तो उन दिनों सभी काम छोड़ दे बल्कि, कहा जाता कि उन दिनों में अधिक मेहनत करे क्योंकि, उनका उद्देश्य आराम या फलाहार करना नहीं बल्कि, अपने भीतर की सुप्त ऊर्जा को जागृत करना है और यही रमज़ान के बारे में कहा जाता तो फिर इस विवाद के पीछे इन सबका इसका मकसद क्या है ?

सोचे अगर तो इन सबसे यही ज़ाहिर होता कि असल बात केवल हंगामा खड़ा करना है ताकि, चंद लोग इस बहाने ही सही खबरों में बने रहे क्योंकि, जो लोग रमजान और चुनाव की पवित्रता को समझते वे इस तरह की बात नहीं करते बल्कि, उनके लिये तो पाक़ रमज़ान कल निर्वाचन आयोग के द्वारा तारीखों के ऐलान के साथ ही हो गया और वे अपने-अपने कामों में जुट भी गये ऐसे में यही लगता कि वास्तविक समस्या रमजान नहीं बल्कि, चुनाव लड़ने के लिये किसी मुद्दे का ना होना है अन्यथा चुनाव तो पहले भी रमजान में होते रहे है ।


इन सब बयानों और कथनों के बीच बस, मन में यही ख्याल आ रहा कि यदि ऐसे में किसी हिन्दू ने कह दिया होता कि इस बीच नवरात्र, सूर्य षष्ठी व्रत, रामनवमी, महावीर जयंती,  हनुमान जयंती, परशुराम जयंती, अक्षय तृतीया, गंगा सप्तमी, नृसिंह जयंती वैशाख पूर्णिमा जैसे महत्वपूर्ण पर्व व व्रत भी आयेंगे तो नजारा क्या होता ???
   
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च ११, २०१९

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