बुधवार, 13 मार्च 2019

सुर-२०१९-७२ : #दुश्मन_के_घर_में_घुसकर #टारगेट_हिट_करने_वाले_वीर_उधम_सिंह




२० साल की उम्र में वो भी ब्रिटिश शासनकाल में गुलामी की ज़िन्दगी जीते हुये एक नवजवान के द्वारा ये फैसला लेना कि वो १३ अप्रैल १९१९ को जलियावाला बाग़ हुये जघन्य नरसंहार का बदला लेगा वो भी उस नराधम जनरल डायर से जो अपनी सरकार की बात न मानकर अपनी हुकूमत चलाता था और जिसे ये इल्म भी न था कि ये सब किस तरह मुमकिन होगा मगर, जब मन में शुभ संकल्प पैदा होता तो वो अनायास ही नहीं हो जाता बल्कि, प्रकृति स्वयं ही उसका सौभाग्यशाली का वरण करती जो उसे पूर्ण करने की शारीरिक व मानसिक योग्यता रखता तभी तो युवा ‘शेर सिंह’ के भीतर उस क्रूरतम हत्याकांड ने ऐसा आक्रोश उत्पन्न किया कि उसने ठान लिया कि इसके आरोपी को वह छोड़ेगा नहीं चाहे फिर इसके लिये उसे कहीं भी तलाश करना पड़े मगर, उसे ढूंढकर उसके अंजाम तक पहुँचायेगा तभी वो अपने उन असंख्य देशवासियों का प्रतिकार ले सकेगा जो निरीह, बेकुसूर, असहाय अवस्था में एक शैतान के द्वारा मौत के घाट उतर दिये गये थे

इसके लिये उसने पहले खुद को भारत के बाहर होने वाले सशस्त्र आंदोलनों से जोड़ा जिससे कि बाहर जाना आसान हो सके तो अपने इस अभियान की शुरुआत में उन्होंने पूर्वी अफ्रीका का दौरा किया और वहां रहकर मजदूरी करते हुये काफी वक़्त बिताया फिर इसके बाद अमेरिका चले गए जहाँ उन्होंने पंजाबी सिखों के क्रांतिकारी संगठन ‘गदर पार्टी’ के सदस्यों से संपर्क स्थापित किया जो उस समय अमेरिका में रहते थे और ब्रिटिश शासन से भारत को आजाद कराने की मंशा से एकजुट हुए थे लम्बे समय तक उन्होंने पूरे अमेरिका की यात्रा कर अपने आंदोलन के लिए समर्थन जुटाया इस कार्य के लिये उन्होंने अलग-अलग नामों का प्रयोग किया ताकि उनकी पहचान उजागर न हो सके तो इस दौरान उन्होंने अपनी योजना के प्रथम चरण हेतु अलग-अलग कालखंड में अलग-अलग रणनीति अपनाई जो पूरी तरह सफल रही क्योंकि, कायनात उनेक साथ थी उनकी मदद कर रही थी तो इस मुश्किल घड़ी में भी सब कुछ उनके लिये आसान हो गया था ।

फिर २१ साल के लम्बे इंतजार के बाद आज ही के दिन 13 मार्च 1940 को आखिरकार वो शुभ मुहूर्त आया जब वे अपने टारगेट को उसके ही घर में घुसकर मारने में कामयाब हो सके वो जगह लंदन का कैक्सटन हॉल था जहाँ पर ‘रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी’ और ‘ईस्ट इंडिया असोसिएशन’ की मीटिंग चल रही थी धीरे-धीरे जैसे ही वो बैठक अपनी समाप्ति की तरफ बढ़ी तो ‘शेर सिंह’ जो ‘ऊधम सिंह’ के नाम से पासपोर्ट बनवाकर उस जगह पत पहुंचा था अचानक उठा उसने अपने कोट की जेब से रिवॉल्वर निकाला और गजब की फुर्ती दिखाते हुये एक अंग्रेज स्पीकर माइकल फ्रांसिस ओ डॉयर पर गोली दागना शुरू कर दी इस तरह पूरे 21 साल के अन्तराल के पश्चात् वो उन सभी निहत्थे भारतवासियों की हत्या का बदला ले सके और निडरतापूर्वक बड़े गर्व से आत्मसमपर्ण करते हुये खुद को पुलिस के हवाले कर दिया क्योंकि, अपना अंजाम उन्हें उस दिन से ही पता था जिस दिन उन्होंने ये शपथ ली थी कि वो उस हत्यारे को छोड़ेंगे नहीं तो जान हथेली पर रखकर चलने वाले मृत्यु से डरते नहीं उसको खुद आगे बढकर चुनते है     

अभी 14 फरवरी 2019 को इस देश ने भी अपने वीर जवानों का दर्दनाक हत्याकांड देखा मगर, किसी की रगों में दौड़ते खून में वो उबाल न आया जैसा कि ‘उधम सिंह’ ने महसूस किया था जबकि, अब देश आज़ाद और दुश्मन भी कोई सात समन्दर पार नहीं मगर, भीतर वो जज्बा नहीं शायद, जो किसी युवा को ‘उधम सिंह’ बनाता है तो आज की पीढ़ी को अपने नायकों को चुनते समय सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि, जैसा हमारा आदर्श होगा वैसा ही हमारा चरित्र बनेगा इसलिये बाल्यकाल से पालक उनको अपने देश के महापुरुष, वीरांगनाओं के शौर्य की कहानियां सुनाकर उनके लिये ऐसी मजबूत आधारशिला तैयार करते जिस पर उनके भविष्य की ईमारत तैयार होती थी मगर, आजकल जो सोशल मीडिया पर ही सारा युद्ध कौशल दिखाते वे नहीं समझ सकते कि किस तरह अभावों के बीच उसने अपनी राह बनाई जिस पर चलकर वो मंजिल पाई जिसको साधना असाध्य था  

आज का दिवस हम सबके लिये बेहद गर्व व हर्ष का जिस दिन भारत माता के सच्चे सपूत ‘उधम सिंह’ ने देश के सबसे बड़े दुश्मन को उसके घर में घुसकर मारा और नये भारत के जिस नारे को हम आज दोहरा रहे उसको अपने कारनामे से साकार किया... जय हिन्द... जय भारत... वन्दे मातरम... !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च १३, २०१९

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