शुक्रवार, 15 मार्च 2019

सुर-२०१९-७४ : #लापरवाही_किसी_की #जान_गई_किसी_दूसरे_की



कल मुंबई में ‘फुट ओवर ब्रिज’ के टूटने से जहाँ एक तरफ शासन-प्रशासन की लापरवाही उजागर हुई वहीँ दूसरी तरफ एक-दूसरे पर दोषारोपण कर जिम्मेदार लोग अपना पल्ला झाड़ते दिखे जिसने फिर एक बार ये जता दिया कि हमारे देश में जनता की जान की कीमत मुआवजे के रूप में आंकी जाती इसलिये जैसे ही कोई ऐसी खबर आती या कहीं कोई दुर्घटना घटित होती तत्काल उसके बदले सरकार कुछ नये आदेश, नई योजनाओं की घोषणा व मुआवजा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती लेकिन, फिर कहीं से कोई खबर आ जाती ऐसे में यही समझ आता कि हम भारतीयों के डी.एन.ए. में ही भूलने की कोई कोडिंग फीड जिसकी वजह से हम पिछले हादसों को भूलकर आगे बढ़ जाते और इसका फायदा उठाना राजनेता बखूबी जानते जबकि, जब भी कोई ऐसी घटना हो उस पर कार्यवाही होने के साथ ही ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिये कि सिर्फ वहीँ नहीं, कहीं दूसरी जगह भी उसी तरह की या कोई मिलती-जुलती घटना का दोहराव न हो पर, महज़ कुछ ऐलान होते या किसी को प्रभारी बनाकर बात खत्म हो जाती जबकि, ऐसा पुख्ता इंतजाम होना चाहिये कि फिर ऐसा न होने के प्रति हम आश्वस्त हो क्योंकि, जनता टैक्स व वोट देकर सरकार से केवल यही चाहती कि वह उसकी जान-माल की रक्षा ही नहीं उसके ऊज्वाल भविष्य की भी गारंटी ले और देश में ऐसी सुव्यवस्था कायम करे कि प्राकृतिक आपदाओं को छोड़कर कहीं से भी किसी भी तरह की कोई ऐसी खबर सुनाई न दे जिसमें कि अवाम को उसकी लापरवाही की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़े क्योंकि, इस हादसे में भी कहीं न कहीं सभी की जवाबदेही बनती जिन्होंने इसको ‘क्लीन चिट’ देते समय ये नहीं देखा कि इसकी हालत इस लायक नहीं कि ये लम्बे समय तक बोझ वहन कर सके अब भले सब इसके लिये अगले को दोषी मान रहे पर, थोड़ा-न-थोड़ा सबका कसूर जो किसी ने भी रिपोर्ट की पुष्टि करने की बजाय उसको सटीक मानते हुये आँख मूंद ली काश, कोई एक भी देख लेता उसकी जर्जर अवस्था को तो क्या इतने लोगों की जान जाती ???

तंत्र की ऐसी ही एक खामी का वाकया आज न्यूजीलैंड में भी देखने को मिला वो देश जो कि एकदम शांत व आपसी सौहार्द के लिये जाना जाता वहां एक आतंकी हमला हुआ जिसका खामियाजा निर्दोष व्यक्तियों को झेलना पड़ा दिन के 1 बजकर 45 मिनट के आसपास का वक्त था जब ‘सेंट्रल क्राइस्टचर्च’ में लोग जुमे की नमाज के लिए मस्जिदों में इकट्ठा हुए थे ठीक इसी वक्त दो अलग-अलग मस्जिदों में गोलीबारी होने लगती है और एक शख्स दनादन गोलियां दागता है जिसमें कई लोग मारे जाते हैं जिस शख्स ने इस गोलीबारी की जिम्मेदारी है वो 74 पेज का एक दस्तावेज छोड़ गया है जिसमें उसने हमले की वजह ‘मास इमीग्रेशन’, ‘लैंड जिहाद’ तथा ‘धर्मान्तरण’ को बताया है जिसके अनुसार हमलावर के निशाने पर वो लोग थे जो दूसरे देशों से आकर यूरोपीय देशों में रहते हैं खासकर उसका इशारा मुस्लिम लोगों की तरफ था इसलिये उसने मस्जिद को चुना इस तरह से ये सामने आता कि आतंक की वजह से शांति के टापू में भी भूचाल आ सकता तो अब ये जरूरी हो गया कि आतंकवाद का खात्मा किया जाये क्योंकि, इसका शिकार केवल भारत नहीं अन्य देश भी हो सकते है और कोई कुछ भी वजह बताकर अपना गुस्स उड़ेल सकता जबकि, हत्या या आतंक किसी भी तर्क से सही नहीं हो सकते जो बेकुसूरों की जान लेते और हम तो न जाने ऐसे कितने दर्दनाक मंजर देख चुके जहाँ हमारी जनता ही नहीं सैनिक भी आतंकवादियों द्वारा मारे जाते तो अब हमको अपने देश को इतना मजबूत बनाना है कि फिर यहाँ कोई आतंकवादी घुसकर किसी को मौत के घाट न उतार सके क्योंकि, कोई कहीं भी मेरे किसी भी वजह से मरे घायल इंसानियत ही होती तो उसी मानवता को जीवित रखने के लिये आतंकवाद का मरना जरूरी है और हम न्यूजीलैंड में हुए इस हादसे के मृतकजनों की पीड़ा को न केवल समझ सकते हैं बल्कि, भावना के स्तर पर उसे बाँट भी सकते है ये दर्द सबका साँझा होता है मगर, अब ये कोशिश सब तरफ से होनी चाहिये कि आतंकवाद के लिये सब एकजुट हो नहीं तो एक-दो दिन के शोर के बाद फिर एक लम्बी ख़ामोशी जब सब गाफिल होंगे अपने में तो फिर कहीं से एक धमाके के आवाज़ हमें जगायेगी तो क्या हम अभी नहीं जाग सकते ???

मुम्बई एवं न्यूजीलैंड में हुये पीड़ादायक हादसों में मृत समस्त निर्दोष आत्माओं को भावपूर्ण श्रद्धांजलि जो पता नहीं किसकी चूक का शिकार हुये पर, अब ये सब रुकना चाहिये... किसी दूसरे की खामी का भुगतान कोई दूसरा कब तलक और क्योंकर करें... ॐ शांति ॐ

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च १५, २०१९

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