मंगलवार, 19 मार्च 2019

सुर-२०१९-७८ : #संवेदनायें_मर_रहीं #जिम्मेदार_कहीं_आप_तो_नहीं



सहिष्णुता की बात हो या कर्तव्यों की सब केवल एक धर्म के लोगों के लिये बने है बाकी, अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या हर तरह की आज़ादी दूसरे तबके के लिए है जो जब किसी भी तरह अपनी बात बनते नहीं देखता तो अपने मज़हब व जात का ब्रम्हास्त्र चला देता है । इस देश के धर्मग्रंथो में भी नायक-खलनायक और पक्ष-विपक्ष की परिपाटी रही जिसके तहत अच्छाई-बुराई का प्रतिनिधित्व दर्शाया जाता मगर, कभी ऐसा देखने में नहीं आया कि तमाम विरोध के बाद भी सत्य के समर्थकों ने यदि असत्यधारियों में कोई गुण या अच्छाई देखी हो तो उसे नजर अंदाज कर दिया हो या उसकी प्रशंसा करने में उन्हें अपनी पराजय नजर आती हो चाहे इतिहास हो या आध्यात्मिक किताब उठाकर देख लो अनेकों उदाहरण मिल जायेंगे ।

सुर हो या असुर लड़ते-भिड़ते हुये भी किसी में कोई अच्छाई हो तो उसका गुणगान करते थे मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी ने भी रावण की नीतियों की सराहना करते हुए अपने अनुज को उसे वह ज्ञान अर्जित करने की सलाह दी थी सिकंदर-पोरस, महाराणा प्रताप-अकबर, कर्ण-अर्जुन चाहे जिसे भी उठा लीजिए सबने अपने शत्रु के गुणों को काबिले तारीफ समझा तो दिल खोलकर की क्योंकि, उसकी उस अच्छाई ने उसकी बुराइयों को ढंक लिया । ऐसी अनगिनत सच्ची व प्रेरक कहानियों से हमारे ग्रंथ भरे पड़े है जो हमें ये सिखाते कि भले हम किसी को नापसंद करे या किसी से हमारा झगड़ा ही क्यों न हो हमें अंत समय में केवल उसकी अच्छाइयों का ही विश्लेषण करना चाहिए या उसके अच्छे कार्यो का जिक्र करना चाहिए फिर भी यदि आपको उस पर श्रद्धा ही नहीं तो ये कोई जरूरी भी नहीं है हमें ये नहीं भूलना चाहिये कि गुण-अवगुण सबमें भरे पर, जो भले लोग होते उनमें बुराई का प्रतिशत नगण्य इसलिये जब कोई नायक मृत्यु का प्राप्त हो तो उसकी गलतियों पर चर्चा फिर कभी कर ले उस समय तो उसे श्रद्धांजलि दे दे वैसे तो जाने वाले को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उसे गालियां दे रहे या उसका मखौल बना रहे मगर, इससे जीते जी ही आपकी छवि जरूर दागदार हो जाती जो आपकी दूषित मानसिकता सब पर ज़ाहिर कर देती है ।

ऐसी ही घृणित मनोदशा से बीमार लोग आजकल फेसबुक पर अपने आपको रोक नहीं पाते और भीतर की गंदगी उड़ेल देते है पहले तो हम कभी सुनते थे कि ऐसे भी लोग होते दुनिया में जो दूसरों की मौत पर हंसते है पर, आजकल इन्हें ढूंढने की जरूरत नहीं आपको हर कहीं मिल जायेंगे यूँ तो हर किसी को किसी न किसी से कोई समस्या या बोले तो मनविरोध या राजनैतिक द्वेष होता जिसके चलते वे अपने आप पर काबू न रख पाते और अपनी कड़वाहट की उल्टी कर देते जबकि, होना तो ये चाहिए कि यदि किसी से आपका मन या मत न मिलता तो उसको दरकिनार कर दे कम से कम उसकी मृत्यु पर तो जहर न घोले ये हमारी भारतीय सभ्यता का भी अपमान है । मौत हर गिले-शिकवे को मिटा देती क्योंकि, जिससे आपका द्वेष भाव जब वही न बचा तो फिर ये नफरत आपको ही मिटा देगी जैसा कि गौतम बुद्ध ने भी कहा कि आपकी दी हुई गालियां मैंने नहीं ली तो वो आपके ही पास रहेंगी उसी तरह आपका ये विष वमन आपको ही लील लेगा

इसलिए इसे भीतर ही दफन कर दो मौन संवेदना या श्रद्धा के दो शब्द नहीं बोल सकते तो कम से कम ये उपहास भी न अभिव्यक्त करो जिससे आपकी ही असलियत सबके सामने आ जाये । कल ऐसा ही वाकया हुआ जब गोवा के मुख्यमंत्री माननीय मनोहर पर्रिकर के असामयिक निधन पर हर व्यक्ति उनकी सज्जनता के किस्से के जरिये उनका स्मरण करते हुए उन्हें शब्द सुमन अर्पित कर रहा था तब नफरत के कुछ सौदागर विष वमन कर अपनी घृणा परोस रहे थे और ये पहली बार नहीं हुआ इसके पूर्व अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीज, पुलवामा अटैक के दौरान भी ये सब देखा गया जो बता रहा कि आज का यूथ खुद का दिमाग इस्तेमाल नहीं कर रहा बल्कि, जो उनके अंदर भरा गया उसका ही परिचय दे रहा है वैसे इस मनोविज्ञान को समझना मुश्किल नहीं फिर भी ये जरूरी कि भटके हुए नवजवानों को समझाया जाये ताकि, आगे आने वाली पीढियां इस रास्ते पर चलकर दिग्भ्रमित नस्लों को जन्म न दे क्योंकि, हम उस देश के वासी जहां बैरियों से भी उसकी मौत के बाद दुश्मनी समाप्त हो जाती है ।

इस सारे वाकये में ज्यादा दुखद या अफसोस की बात ये कि ऐसा करने वाले ज्यादातर एक ही मजहब से जुड़े होते उसके बाद जब बात खुद की आती तो एकदम से आक्रमक रवैया छोड़कर डिफेंसिव मोड में आ जाते है जैसा कि न्यूजीलैंड हादसे में देखा गया जबकि, सामान्य लोग हर अवसर पर संतुलित रहकर अपनी राय रखते और राजनेता अपने हिसाब से अपनी बात करते मगर, ये कौन है जो न जाने किसके इशारे पर इतना घिनौना मजाक करते है । इनकी इन्हीं हरकतों को देखते हुए अब आमजन भी इनकी तरह सलेक्टिव हो रहे जो अपने हिसाब से प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे तो उन्हें ऐसा करते देखा ये अपने ब्रम्हास्त्र को निकाल रहे मगर जानते नहीं विक्टिम कार्ड हो या धर्मनिरपेक्षता या ब्रम्हास्त्र अधिक समय तक न तो सक्रिय रहते न ही अपना काम करते है ।

इसलिये जब एनी खालिद का यह टवीट देखा

I am MUSLIM.
Christians kill me in Iraq.
Buddhists kill me in Burma.
Jews kill me in Palestine.
Hindus kill me in Kashmir.
Atheists kill me in New Zealand.
But still, I am the terrorist
 #ChristchurchMosque

(मैं मुसलमान हूँ, ईराक में ईसाई मुझे मारते है, बर्मा में बौद्ध मुझे मारते है फिलिस्तीन में यहूदी तो कश्मीर में हिंदू मुझे मारते है न्यूजीलैंड में नास्तिक मुझे मारते है लेकिन, फिर भी मैं आतंकवादी हूँ )
  
तब भीतर कोई सहानुभूति उत्पन नहीं हुई तो मन में कहीं ये ख्याल आया कि, “संवेदना का यूं मर जाना बेहद खतरनाक है”, अतः बड़ा सवाल ये कि इसका जवाबदार कौन ??

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च १९, २०१९

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