मंगलवार, 5 मार्च 2019

सुर-२०१९-६४ : #सबूत_मांगना_बस_एक_बहाना_है #एजेंडा_तो_सेना_का_मनोबल_गिराना_है



बचपन में एक कहानी सुनी थी कि एक चुड़ैल के प्राण तोते में रहते तो वो हमेशा यही प्रयास करती कि किसी को उसका पता न लगे, कोई उसके नजदीक न पहुंच जाए और वो सदा जीवित रहे तो ऐसा ही कुछ उन राजनेताओं, सांसदों और चमचों के बारे में भी कहा जा सकता जो सबूत-सबूत चिल्ला रहे है । दरअसल, असलियत तो ये है कि ये घबरा रहे क्योंकि, इनकी जान आतंकियों में बसती जिनका जीवित रहना इनकी सेहत के लिए अच्छा क्योंकि, उनका इस्तेमाल कर के ये जब चाहे तब सत्ता में परिवर्तन करवा देते है । इस बार भी इन्होंने ऐसा ही एक दाव आदिल अहमद डार के सीने पर बम बांधकर खेला और सोचा कि इस तरह वे सरकार से जवाब मांगेंगे, नैतिकता के नाम पर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर खुद गद्दी पर काबिज होने मगर, वैसा कुछ भी हुआ नहीं उल्टे जिसको हटाने इतनी मशक्कत की उसके ही दुबारा आने के आसार बनने लगे और सबसे बड़ी बात कि वो इनकी आतंक की फैक्ट्री को ताला लगाने की बात भी करने लगा । तब सबको लगा कि अब तो बेहद मुश्किल हो जायेगी, खेल ही खत्म हो जायेगा तो ऐसा क्या करें कि इस मुद्दे से सबका ध्यान भटका सके इससे भी ज्यादा दबाब इन पर उनके पाकिस्तानी आका का भी था अब तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं था कि ये पाकिस्तान के एजेंट्स लेकिन, जिस तरह उसे फायदा दिलाने सब लगे महसूस हो रहा दाल में जरुर काला है जरुर इनसे कहा गया होगा कि इन सबको वहां आराम करने नहीं बल्कि, ख़ुफ़िया जानकारी लीक करने पैसे दिये जाते ऐसे में चूक कैसे हुई जो ये बता न सके कि एयर स्ट्राइक होने वाली है ।

इस ‘एयर स्ट्राइक’ को इतने सुनियोजित व पुरजोर तरीके से कामयाब बनाने में आखिर किस तकनीक या सूत्रों का प्रयोग भारतीय सेना द्वारा किया गया जिसकी जानकारी प्राप्त कर जल्द इत्तला दे तो उनके मुखबिरों को ये समझ नहीं आया कि अब इस सीक्रेट का किस तरह पता लगा अपने बॉस को खुश कर सके । तब सबने मिलकर प्लानिंग बनाई कि एक सबूत मांगने की बात करेगा तो बाकी सब भी उसका समर्थन करते हुए सामने आएंगे और सरकार व सेना को इतना अधिक मजबूर कर देंगे कि जो ‘I am not supposed to tell you that कहकर इन सबसे पल्ला झाड़ सकती वो अपने इनफार्मेशन का सोर्स ज़ाहिर कर देगी और बस, इनका काम हो जाएगा साजिशन वही किया गया एक-एक कर नवजोत सिंह सिद्धू, दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी, महबूबा मुफ्ती, कपिल सिब्बल, उमर अब्दुल्ला, मायावती, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल सब जोर-जोर से सबूत-सबूत चिल्लाने लगे । यूं तो सेना ये बताने बाध्य नहीं कि उसने किस तकनीक से विजय हासिल की लेकिन, गद्दारों का तो काम यही कि वे जिस डाल पर बैठते उसे ही काटते, जिस थाली में खाते उसमें ही छेद करते क्योंकि, इन्हें न तो देश और न ही सुरक्षा से कोई मतलब इनका तो एक ही एजेंडा कैसे भी हो राज करना जहां सत्ता विहीन हुये तिलमिला जाते तो फिर से उसे पाने एड़ी चोटी का जोर ही नहीं लगाते दुश्मन से भी हाथ मिला लेते तो अपने उस एजेंडे को पूरा करने ये सब पूरी ताकत से चिल्लाने लगे मजबूरन सेना को सामने आने पड़ा जिसने ये साबित कर दिया कि बेईमानी में फेविकॉल से ज्यादा मजबूत जोड़ जो चोरों को एकजुट कर देता तो सब फिलहाल एक ही थैले में बंद वही से मिले सुर मेरा तुम्हारा कर रहे है ।

इस पूरे वाकये में सबसे ज्यादा दुख की बात कि इनकी इस नापाक हरकत से तंग आकर जहां एयर चीफ मार्शल बी.एस. धनोआ जी को स्वयं सामने आकर अपना पक्ष रखना पड़ा वही उनके बचाव में ख़ुफ़िया एजेंसी एन.टी.आर.ओ. सर्विलांस को भी सामने आकर बताना पड़ा कि उस रात बोले तो 26 की सुबह-सुबह उन्हें जैशे मुहम्मद के अड्डों पर सक्रिय कम से कम 300 मोबाइल के सिग्नल्स से ये ज्ञात हुआ कि वहां लगभग इतने ही या इससे अधिक आतंकी भी एक्टिव है और इसी तरह के सक्रिय टारगेट की जानकारी दूसरी भारतीय खुफिया एजेंसियों ने भी उपलब्ध कराई थी । जिससे उन्होंने पूर्व तैयारी के अनुसार मिनटों में अपने आपरेशन को सक्सेस कर लिया उनका ये बताना हुआ कि देशद्रोहियों की गैंग का देश मिटाओ, खुद को बचाओ मिशन भी पूर्ण हुआ । इन्होंने फटाफट अपने दुश्मनों को इंफर्म किया कि अगली बार सतर्क रहें मोबाइल का इस्तेमाल या तो न करें या ऐसी टेक्नोलॉजी प्रयोग में लाये जिससे कि उसकी खबर भारतीय सेना को न लग सके याने कि ये सभी जो सबूत-सबूत का शोर मचा रहे दरअसल अपनी इस सामूहिक चिल्ल-पो के नीचे पाकिस्तान व आतंकियों की रक्षा का प्रबंध कर रहे जिसके तहत इन्होंने सफलता हासिल कर ली वो भी अपनी ही सेना पर उंगली उठाकर अपनी ही सेना के पराक्रम को अस्वीकार कर के । इसके बाद भी जिनको इन गद्दारों से सहानुभूति या जो इनको वोट देकर जिताते वे ये सवाल कभी भी न करें कि आखिर, आतंक का खात्मा कब होगा ? कब कश्मीर चैन की नींद सो सकेगा ?? कब तक हमारे जवान आतंककी हमलों में मरते रहेंगे ??? क्योंकि ये लोग कश्मीर समस्या का हल नहीं बल्कि उसे सदा सदा के लिए समस्या बनाकर रखना चाहते है वरना देश के लोगों का असली समस्याओं या मुद्दों पर ध्यान चला जायेगा जो कि देश के लिए निहायत जरूरी पर, उसमें ये सक्षम नहीं तो सबको फालतू बातों में उलझाकर रखना चाहते है ।

अब भी समय है कि हम इन गद्दारों को जल्द से जल्द पहचाने अन्यथा आने वाले समय में सबूत देते-देते हमारी सेना का मनोबल इतना कमजोर हो चुका होगा कि वो अटैक करने की जगह कागज़ी कार्यवाही, फ़ोटो शूट, यू ट्यूब से एडिटेड वीडियो रिकॉर्डिंग दिखाकर ही काम चलाएगी । क्योंकि, वो कुछ भी करे किसी ने उनकी नहीं पाकिस्तान की ही पीठ थपथपाना है उनको शांति का नोबल प्राइज दिलवाना है तो ये सब देश विरोधी कामकाज को देखते हुए क्या वो उतनी ही हिम्मत से अगली बार शत्रु को नेस्तनाबूद कर सकेगी क्या उसके दिमाग में प्रश्न नहीं आयेगा कि किसलिये इस देश को बचाना ? इन गद्दारों, देशद्रोहियों के लिए जो उन पर ही उंगली उठाते, प्रश्नचिन्ह लगाते है । और नहीं बस और नहीं अब पाकिस्तान से पहले घर में छिपकर बैठे इन दुश्मनों का निपटारा हो फिर उनसे तो हम कभी भी निपट लेंगे परमाणु बम की उनकी गीदड़ भभकी से महबूबा मुफ़्ती जैसे लोग डरते और दूसरों को डराते यहां तो सेना व जनता का हौंसला व जोश इतना बढ़ा हुआ कि वो अपने देश के थोड़े से हिस्से को गंवाकर भी पाकिस्तान का नामो निशान मिटाने की हसरत रखती जिसे फिलहाल ट्रम्प ने अपनी सूझ-बूझ से टलवा दिया अन्यथा इसी वक्त पाकिस्तान नक्शे से गायब हो चुका होता । 

नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (एन.टी.आर.ओ.) का गठन 2004 में हुआ जो पी.एम.ओ. के तहत काम करता पर, इससे पूर्व इसका इस तरह से सदुपयोग कभी किया गया हो सुनने में नहीं आया क्योंकि, ख़ुफ़िया एजेंसियां अपने काम को आम जनता से छिपाकर रखती पर, इन गद्दारों के कारण इनको सामने आकर बताना पड़ा जो इनके गुप्तकार्य को भी सामने लाता जो गलत है ऐसा बहुत कुछ सकारात्मक अब सामने आ रहा जो इसके पहले न तो सुनाई दिया या दिखाई ही दिया जिसमें ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ भी एक है जिसके मायने अब तक हमारे लिये वो नहीं थे जो अब हमने जाना था हम तो इन दोनों शब्दों को अलग-अलग समझते थे जहां ‘सर्जिकल’ मेडिकल से जुड़ा वहीं ‘स्ट्राइक’ सिर्फ हड़ताल या धरने के लिये प्रयुक्त किया जाता था परन्तु, अब हम न केवल सर्जिकल बल्कि, एयर स्ट्राइक से भी भलीभांति परिचित है जो लोग आज सबूत मांग रहे या पुलवामा आतंकी हमले को महज़ दुर्घटना बताकर इसकी गम्भीरता को कम करना चाहते यदि ये सत्ता में होते तो शायद, हमें यही बताया जाता कि एक चार दुर्घटना में सी.पी.आर.एफ. के ४५ जवान मारे गये तब न उनको शहीद मानना पड़ता और न ही दुश्मन से बदला लेने की ही जरूरत होती जो कि शानदार तरीके से लिय गया अब ऐसे हालातों में किस तरह सेना का मनोबल तोडा जाये ये सोचकर इन्होने ये कदम उठाया है जिसे रोकना हम सबका काम है बाकी, उम्मीद कि सरकार समय आने पर हर इनफार्मेशन सबके शेयर करेगी तब तक हम संयम रखें, धैर्य बनाये रखे क्योंकि, ये वक़्त दुश्मन देश की भाषा बोलने का नहीं बल्कि, देश के साथ मिलकर खड़े होने का है  ।

जय हिन्द... जय भारत... वन्दे मातरम... 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 ️!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)

मार्च ०५, २०१९


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