चिया...
चिया...
दूर से आती
आवाज़ को सुनकर दिव्यंका को लगा बचपन में उसे भी तो उसकी सहेलियां और घर के लोग इसी
नाम से पुकारते थे मगर, उस बात को तो
बरसों-बरस हो गये अब तो न कोई बोलता न ही किसी को याद तो ख्यालों में गुम वो आगे
बढ़ती चली गयी पर, उस पुकार ने
उसका पीछा न छोड़ा जब तक उसने पलटकर नहीं देखा और जब मुड़ी तो उस चेहरे में छिपी
अपनी बचपन की सहेली की छवि को ताकती ही रह गयी जो इस अंतराल में बदल जरूर गयी थी
मगर, अक्स अब भी नुमाया हो रहे थे ।
निकिता ने आगे
बढ़कर उसे गले लगाया और बोली, चिया तो तू
बिल्कुल वैसी की वैसी रखी अब तक, तभी तो तुझे
पहचान लिया गज़ब का मेंटेनेंस है भई हमें देखो उम्र झलकने लगी कितने साल गुजर गये
तुझे बहुत तलाश किया सोशल मीडिया पर भी ढूंढा मगर, तू मिली नहीं कहाँ है, क्या कर रही सब
बता डिटेल में चल कॉफी शॉप में बैठकर इत्मीनान से बातें करते है ।
तुझे तो पता
मेरी शादी पढ़ाई करते-करते हो गयी एक तरफ एग्जाम दिए दूसरी तरफ हल्दी, मेहंदी जैसी रस्मों को पूरा किया फिर आखिरी पेपर
के साथ उस ज़िन्दगी का भी समापन हो गया जैसे ससुराल आई तो नया नाम, पहचान मिली फिर धीरे-धीरे डॉक्टर रविशंकर की बहू,
अमरकान्त की पत्नी, सोनल-मिहिर की माँ जैसे अलग-अलग सम्बोधन मिलते गये और मैं भूल ही गयी
कि मेरा भी कोई नाम है आज तूने जब बचपन वाले नाम से पुकारा तो न जाने कितने सुहाने
दिन आँखों के सामने से गुजर गये कोई मुझे अब मेरे इस नाम से बुलाता ही नहीं जिसने
मुझे मुझसे मिलवाया था कभी, जिसको सुनकर
मैं सचमुच खुद को चिड़िया से महसूस कर फुदकती फिरती थी शादी होते ही सबने मान लिया
कि अब मैं बड़ी हो गयी जिम्मेदार भी तो मुझे उसी तरह व्यवहार करना होगा इसके चलते
मेरी स्वाभाविकता भी कब गुम हो गयी पता न चला फिर मैंने अपने आपको इस सांचे में
ढाल लिया अपनी पिछली पहचान को पूरी तरह भूला दिया जिसे आज तूने दोबारा याद दिलाया
।
यार, तेरा नाम ही नहीं तेरी हर बात मुझे याद है तेरी
पेंटिंग्स कितनी सुंदर चित्रकारी करती थी तू और वो तेरी अलका याग्निक जैसी मधुर
आवाज उस पर माधुरी दीक्षित जैसा मोहक डांस कुछ भी न भूली हूं मैं...
वो सब तो बचपन
की बातें थी अब ये सब कौन करता या ससुराल में तो सोचना भी मुश्किल तो मैंने भी वो
सब छोड़ दिया ।
ये सब क्या कर
रही है तू अपना घर, नाम, पहचान, शौक
सब छोड़ दिया जो तुझे दिव्यंका बनाते जिसकी वजह से तू कॉलेज क्वीन भी बनी थी ।
ओह, वो सब तो सबके साथ होता उसमें कुछ खास नहीं जिसे
भूलना कठिन हो।
ये तुझसे किसने
कहा यदि ऐसा होता तो फिर मैं या कोई दूसरी लड़की क्यों न बनी कॉलेज क्वीन या तेरी
ही पेंटिंग को राज्य स्तरीय सम्मान क्यों मिला या तेरे नृत्य-गीत ने युवा उत्सवों
में धूम क्यों मचाई जबकि, लड़कियों की कमी
नहीं थी पर, तू हर विधा में
परफेक्शन के साथ परफॉर्म करती थी इसलिए नम्बर वन आती थी फिर क्यों सब छोड़ दिया ?
यार, तू भी अच्छे से जानती कि आज जो माहौल या खुलापन
है वैसा पहले नहीं था और शादी मतलब लाइफ का दी एंड तो फिर सोचा ही नहीं ।
कोई बात नहीं
जो हुआ सो हुआ अब आज महिला दिवस पर मन में ये संकल्प ले कि जिस चिया को भूला दिया
उसे फिर से तराशना है यार, औरतें सांचों
में फिट होने नहीं बनी बल्कि, अपने अनुसार
नये खाँचे बनाने की नैसर्गिक क्षमता रखती है और ध्यान रहे मोहतरमा शादी का मतलब
एंड नहीं औरत की लाइफ का एक्सटेंशन है ।
थैंक्स,
मेरे आत्मविश्वास लौटाने के लिए तुझे भी
शुभकामनाएं... !!!
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© ® सुश्री इंदु
सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
मार्च ०८, २०१९
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