शुक्रवार, 22 मार्च 2019

सुर-२०१९-८१ : #जल_हो_या_फिर_रिश्ते #मिले_जब_सरंक्षण_तभी_बचते




यदि सवाल किया जाये कि, “जीवन जीने के लिये सबसे जरूरी क्या है” ???
   १.     प्रेम
   २.     रक्त संबंध  
   ३.     दोस्ती या फिर  
   ४. पर्यावरण 

तब निश्चित है कि अधिकाश लोगों का जवाब होगा ‘प्यार’ मगर, ये सब बेमानी हो जाते जब सांस लेने को शुद्ध ‘वायु’ न हो और पीने के लिये साफ़ ‘पानी’ क्योंकि, जब जीवन बचेगा तभी तो इन सब अहसासों को हम अंतर से महसूस कर पायेंगे, इन्हें जी-भरकर जी पायेंगे और आगे की नस्लों में इनको हस्तांतरित भी कर सकेंगे लेकिन, इस सार्वभौमिक सत्य को जानने के बावजूद भी हम अब तक ‘पर्यावरण सरंक्षण’ नहीं सिर्फ और सिर्फ अपने आपको बचाने में लगे है जबकि, प्यार से सराबोर और तमाम रिश्तों से घिरे होने के बाद भी घुटन महसूस होती यदि खिड़की या किसी दरार से हवा की आवाजाही नहीं होती है

जिस तरह से दुनिया में विकास की दर व जनसंख्या बढ़ रही उसी गति से जल, वायु, खाद्य, मकान व बेरोजगारी जैसी समस्यायें भी विकराल गति से बढ़ रही फिर भी ताज्जुब होता जब हम लोगों को कुदरत की कदर करने की जगह इन्हें बर्बाद करते ही पाते है माना कि इनके बीच चंद ऐसे जिन्होंने अपना जीवन सिर्फ प्रकृति बचाने को समर्पित कर दिया लेकिन, जितनी हमारी आबादी उसके आगे उनकी संख्या नगण्य तो ऐसे में जरूरत कि हम भी अब तो सही ये समझे कि यदि पर्यावरण ही नहीं होगा तो हम सब भी नहीं बचेंगे इस तरह की विकट परिस्थितयों में अब हम सबको इस पर विचार करने से आगे बढ़कर इसको बचाने आगे आना होगा जिससे कि आगे आने वाली पीढियों को हम जीने के लिये वो सब दे सके जिस पर उनका जन्मजात अधिकार है

कहीं आप ये तो नहीं समझ रहे कि इसका तात्पर्य ‘रोटी’, ‘कपड़ा’ और ‘मकान’ से है तो एकदम गलत सोच है आपकी क्योंकि, इनका नम्बर बाद में आता पहले तो वो वातावरण जरूरी जिसमें वो खुलकर सांस ले सके उसके बाद उन सांसों को चलाते रहने के लिये उस तत्व की आवश्यकता जिससे हमारे शरीर का 70% हिस्सा निर्मित हुआ है । हमने सह-अस्तित्व को नकारते हुये जंगल तो खत्म कर ही दिए हर जगह बहु-मंजिला इमारतें व कंक्रीट की सडकें बनाकर पशु, पक्षियों व जानवरों को भी लगभग विलुप्ति की कगार पर खड़ा कर दिया और रही-सही कसर प्रदुषण फैलाकर नदियों-तालाबों को भी इतना गंदा कर दिया कि जलचर भी त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं ।
  
यदि हमने इन्हें बचा लिया तो फिर अगला क्रम आता है ‘रिश्तों’ का जिनके बिना जीवन उदासीन व एकाकी लगने लगता इसलिये तो एकमात्र भारतीय संस्कृति ऐसी जहाँ उसने हर एक रिश्ते को महत्व देते हुये उनका उत्सव मनाने की परम्परा स्थापित की जिसका परिणाम कि मातामह-पितामह, माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन हर रिश्ते को समर्पित कोई न कोई त्यौहार हम बड़ी धूमधाम से मनाते है । ऐसा कर के हम उन रिश्तों में पुनः नया अर्थ भरते, उनको पुनर्जीवन देते है और यदि कोई गिला-शिकवा भी हो तो उसे भूलकर फिर से उसे नये सिरे से शुरू करते याने कि ये दिन हर कड़वाहट को भूलाकर उस रिश्ते को फिर से आगे आने वाले एक साल के लिये रिचार्ज कर देता है ।

आखिर, रिचार्ज’ की जरूरत तो सबको ही होती चाहे वो ‘रिश्ते’ हो या ‘गेजेट्स’ तो समय-समय पर हम उनके लिये कुछ अलग करने की कोशिश करते पर, जिस तरह से आजकल के लोग व्यस्त ऐसे में इनकी महत्ता अधिक बढ़ जाती क्योंकि, हर दिन न सही कम-से-कम एक दिन तो हम अपने कीमती समय में से थोड़ा वक़्त अपने रक्त सम्बन्धों को दे ही सकते है । इस बात का अहसास हमारे पूर्वजों को होगा तभी तो उन्होंने ‘भाई-दूज’ जैसा प्यारा पर्व बनाया और जब वैश्विक स्तर पर इस बात को गम्भीरता से समझा गया कि ‘जल नहीं तो कल नहीं’ तब ‘विश्व जल दिवस’ मनाने का निर्णय लिया गया और आज अद्भुत संयोग जब ये दोनों एक साथ आकर ये कहना चाह रहे कि ‘जल’ हो या ‘रिश्ते’, मिले सरंक्षण तभी बचते... <3 !!!      

इसकी सार्थकता तभी जब हम सोचे कि हमारी प्राथमिकताओं का क्रम उल्टा क्यों है ???

#भाई_दूज_और_जल_दिवस
#रिश्ते_और_जल_मांगे_सरंक्षण
   
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २२, २०१९

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