शनिवार, 23 मार्च 2019

सुर-२०१९-८२ : #इतिहास_स्वयमेव_नहीं_बनता #बलिदान_के_लहू_से_लिखा_जाता_है




इतिहास का महत्व तभी है, जब हम उससे कुछ सीख ले अन्यथा वो महज़ एक किताब जिसमें अतीत के किस्से-कहानियां दर्ज जिन्हें पढ़कर या दोहराकर हम उसके प्रति नतमस्तक होकर मन ही मन ये कहते हुये उसे रख देते कि हमें अपने देश पर गर्व और अपने भारतीय होने को अपनी शान समझते जिसे आज़ाद कराने के लिये अनगिनत वीरों-वीरांगनाओं ने अपने प्राण लुटा दिये थे । हम उन बलिदानों के पीछे की वजह और उनकी यशगाथा को जानकर भी उससे कुछ सीखने या समझने का प्रयत्न नहीं करते यदि किया होता तो बार-बार वही गलतियां नहीं दोहराते या देश को लुटते हुये चुपचाप नहीं देखते बल्कि, अपने स्तर पर जो भी संभव होता वही करते न कि देशहित के उपर निजहित को रख स्वार्थ की रोटियां सेंकते । क्योंकि, देश रहेगा तभी हम भी बचेंगे अन्यथा जिस गुलामी से बरसों-बरस लड़कर प्राणों की आहुतियां देकर स्वतंत्रता हासिल की वो उसी तरह खो जायेगी जिस तरह अज्ञानी के हाथों में कीमती हीरा देने पर वह उसे पत्थर समझकर गुमा देता है ।

इस देश पर प्रारंभ से ही हर किसी की नजर रही और जिसने इसे देखा उसकी ही लार टपकने लगी तो उसने इस पर अपना कब्जा जमाने आक्रमण किया जिसकी वजह से हम कभी यवन तो कभी शक-कुषाण तो कभी हूण या अरब-ईरान तो कभी तुर्की तो कभी मुगल तो कभी अंग्रेजों के गुलाम बनने मजबूर हुये और लगभग 2500 सालों तक हमारी न जाने कितनी पीढ़ियों ने अपनी कुर्बानियां देकर हमें आज़ादी की सौगात देने की कोशिशें की बिना ये सोचे-समझे कि हम कभी उनका स्मरण करेंगे या नहीं या हम इसकी रक्षा कर पाएंगे या नहीं या हम उसके काबिल नहीं है । वे तो केवल अपनी भारतमाता को जंजीरों में तड़फते हुये नहीं देखना चाहते थे तो निकल पड़े सर हाथ में लेकर 1857 का प्रथम स्वाधीनता संग्राम हो या सारागढ़ी का युद्ध या जलियांवाला हत्याकांड की शहादत ये सब हमें बहुत कुछ सिखाती है कि हम इनको याद करें तो ये भी न भूले कि ये उस आज़ादी को पाने लड़े जो इनको नहीं हासिल हुई और इन्होंने उन आने पीढ़ीयों के लिए अपनी जान दी जिनको ये जानते भी नहीं थे । इसलिये ऐसा किया उन्होंने क्योंकि, इनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य कि हमारी मातृभूमि सदा-सदा स्वाधीन रहे और देश की आन-बान-शान उसका परचम शान से लहराता रहे जिसके तले समस्त देशवासी बेफिक्र होकर खुली हवा में सांस लेते हुए अपना जीवन व्यतीत करें ।

आज वाकई उनका वो स्वप्न हम सब हकीकत में जी रहे पर, अफसोस कि आजादी के केवल 72 सालों के भीतर ही हम न केवल, उनके नामों को भूलते जा रहे बल्कि, अपने देश की सभ्यता-संस्कृति को पश्चिमी रंग में रंगकर उनकी कुर्बानी को भी शर्मसार कर रहे जिसे कायम रखने वे अंतिम सांस तक जूझते रहे जिसकी बदौलत हम जय हिंद, भारत माता की जय, वन्दे मातरम गर्व से कह पा रहे है और अपने पर्व भी उत्साह से मना रहे । लेकिन, देश में छिपे चंद गद्दार इस कोशिश में लगे हुए कि हम इस प्राचीन सभ्यता-संस्कृति को विस्मृत कर अपनी उस गौरवशाली पहचान से दूर होकर देश के टुकड़े-टुकड़े होते देखते रहे चुपचाप । जो देश के टुकड़े-टुकड़े करना चाहते उनका मकसद देश को तबाह-बर्बाद करना जिसके लिये उन्हें विदेशों से अकूत धन मिलता तो वे निरंतर इसी कोशिश में लगे रहते और हम इससे बेखबर अपने घरों के दरवाजे बंद कर चैन से सोते रहते क्योंकि, जब तक हमारा घर सुरक्षित हमें कोई मतलब नहीं हद दर्जे का स्वार्थीपन हमारी रगों में समा गया वो भी तब जब इस देश की मिट्टी में असंख्य बहादुरों के पराक्रम का लहू गिरा जिनके किस्से इतिहास में स्याही से नहीं उनके रक्त से लिखे गये तब लानत है हमारे भारतीय होने पर कि भारत के लोग ही इतने कृतध्न हो गये है ।

23 मार्च सिर्फ एक तारीख नहीं एक ऐसा ऐतिहासिक दिन जब भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गयी जबकि, उनको बचाना मुमकिन था लेकिन, बड़े-बड़े वकीलों के होते कोई उन्हें बचा न सका और आज लोग आतंकवादियों की पैरवी के लिये न केवल रात में कोर्ट खुलवा लेते बल्कि, अपनी सेना के शौर्य पर संदेह करते और आतंकियों को बचाव में दुश्मन के पाले तक में खड़े होने में गुरेज नहीं करते है । ऐसे में यही ख्याल आता कि उनकी आत्मायें यदि देखती होंगी तो यही कहती होंगी किन बेक़दरो व स्वार्थी लोगों के लिए जान दे दी जो देश की उन जमीनों को शत्रुओं के हाथों में सौंप रहे कभी जिनको छुड़ाने वे जान पर खेल गये जिसकी अखंडता कायम रखने उन्होंने अपने परिजनों का नहीं सोचा उसी को उसके अपने खंडित कर रहे उफ़, आज हम अपनों से ही ठगे जा रहे है ।

एक प्रश्न इतिहास में आज तलक अनुत्तरित है कि यदि इन तीनों को बचाना संभव था तो इसके लिये प्रयास क्यों नहीं किया गया जबकि, ‘महात्मा गाँधी’, ‘पंडित जवाहर लाल नेहरु’ और ‘अम्बेडकर साहब’ जैसे विदेश में शिक्षित नामी वकील थे हमारे पास फिर भी उनको फांसी दे गयी क्यों ???

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च २३, २०१९

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