बुधवार, 6 मार्च 2019

सुर-२०१९-६५ : #बिंदास_हिन्दी_अंग्रेजी_बोलो #गूगल_एप_से_नन्हे_मुन्ने_बच्चों




इंग्लिश मीडियम की पढ़ाई और अंग्रेजी का नशा देश के लोगों पर इस कदर चढ़ा कि आम बोलचाल में बोले जाने वाले सामान्य से शब्द ही नहीं रिश्तों के प्यारे नाम भी इसकी भेंट चढ़ गये जिसकी वजह से कभी अपने परिवार में माता-पिता या अन्य संबंधों के लिये जो सम्मानसूचक संबोधन अम्मा, बाबूजी, बुआ, मौसी, नाना-नानी, देवरानी-जेठानी, काकी-काका प्रयोग में लाये जाते थे उनकी जगह हर घर-घर में आंटी, मम्मी, पापा, कजिन, इन-लॉज ही सुनाई देते है यही नहीं बच्चों को हिंदी की गिनती हो या पहाड़ा बोलने में शर्म का अहसास होता क्योंकि, आस-पास के माहौल ने उनके भीतर आंग्ल भाषा को लेकर जो एक छवि निर्मित कर दी उसकी वजह से अनावश्यक दबाब भी वे महसूस करते तो कुछ लोग तो इस वजह से बोलने से कतराते अक्सर देखने में आता कि जहाँ सामने वाले को हिंदी न बोल पाने पर शर्मिंदगी महसूस करनी चाहिये वहां अंग्रेजी न बोल पाने वाला अपमानित महसूस करता और ख़ामोशी अख्तियार कर लेता है

ऐसे परिस्थितियों व समय की मांग को देखते हुये पालक अपने बच्चों को बचपन से ही इंग्लिश मीडियम के स्कूल में प्रवेश दिला देते और बच्चा भी गिटिर-पिटिर अंग्रेजी में वर्ड्स, पोयम्स और टॉकिंग करने लगता जिससे उनका सर गर्व से ऊंचा हो जाता पर, इसका एक खामियाजा भी उठाना पड़ता कि जहाँ वो विदेशी भाषा में तो पारंगत हो जाता मगर, अपनी ही बोली बोलने में पीछे रह जाता यहाँ तक कि उसे अनेक शब्दों के अर्थ ही नहीं पता होते या अपनी भाषा शुद्ध तरीके से लिखना भी नहीं आता है भले, हमें लगे कि हिंदी न आना कोई कमी नहीं क्योंकि, आपका उद्देश्य तो अंग्रेजी में ही उसको दक्ष बनाना था लेकिन, हमारी यही सोच कहीं न कहीं हमारे लिये घातक साबित होती क्योंकि, ऐसा करने से हमारी ही भाषा पर संकट के बादल गहराते जिस तरह देखते-देखते अनेकानेक बोलियाँ लुप्त हो गयी कहीं हमारी पहचान, हमारी भाषा भी न खो जाये या फिर उसमें इतनी मिलावट न हो जाये कि उसकी शुद्धता पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाये जिस पर ध्यान देना भी हमारा फर्ज बनता है
           
आजकल का समय टेक्नोलॉजी व इन्टरनेट का तो ऐसे में यही हमारी भाषा को अच्छी तरह से सीखने में भी सहायक हो सकता और अब तो बच्चे बोलना बाद में सीखते है मोबाइल चलाना पहले सीख लेते है तो उनकी इस प्रवृति को देखते हुये गूगल ने आज ‘बोलो’ एप को लांच किया जिसका आधार ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन’ की साल 2018 की रिपोर्ट है जिसमें ये पाया गया कि भारत के ग्रामीण इलाकों में 5वीं क्लास के सिर्फ आधे स्टूडेंट ही दूसरी क्लास के स्तर की किताब अच्छे से पढ़ पाते हैं । ऐसे में यह एप प्राथमिक कक्षा के बच्चों को हिंदी और अंग्रेजी सीखने में तो मदद करेगा ही साथ ही बच्चों के उच्चारण संबंधी दोष भी ठीक करेगा कंपनी के अनुसार यह एप उसकी आवाज पहचानने की तकनीक तथा टेक्स्ट-टू-स्पीच तकनीक पर आधारित है और इसे सबसे पहले भारत में ही पेश किया गया है जिसकी मदद से हम अपने बच्चों को बेहतर हिन्दी/अंग्रेजी सीखा सकते हैं ।

इसकी विशेषता यह भी है कि इसे सीधे ही मोबाइल पर उतारा नहीं गया बल्कि, गूगल ने ट्रायल के शुरुआती तीन महीने में इस एप का उत्तर प्रदेश के करीब 200 गांवों में परीक्षण किया जिसमें 64% बच्चों के पढ़ने की क्षमता में बढ़ोतरी देखी गई तो परिणाम उत्साहजनक रहने के बाद ही इसे सार्वजनिक रूप से पेश किया गया जो कि अब गूगल प्ले स्टोर पर नि:शुल्क उपलब्ध है और इसका साइज़ भी बहुत अधिक नहीं ये केवल आपके मोबाइल की 50 एम.बी. ही इस्तेमाल करेगा । कंपनी ने यह भी बताया कि इसमें एक एनिमेटेड पात्र ‘दीया’ है जो बच्चों को कहानियां पढ़ने के लिये प्रोत्साहित करती है और किसी शब्द का उच्चारण करने में दिक्कत आने पर बच्चों की मदद भी करती है यही नहीं इसमें हिंदी और अंग्रेजी की करीब 100 कहानियां हैं तथा यह कहानी पूरा करने पर बच्चों का मनोबल भी बढ़ाती है और सबसे बड़ी बात कि यह एप ऑफलाइन भी काम करता है

#Google_App_Bolo
#Hindi_English_Seekho

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च ०६, २०१९

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