रविवार, 17 मार्च 2019

सुर-२०१९-७६ : #गण_और_तन्त्र_का_समन्वय #तोड़े_प्रोटोकॉल_बनाये_देश_सशक्त




‘भारत देश’ अपनी सभ्यता संस्कृति और विशिष्ट परम्पराओं की वजह से ही सम्पूर्ण जगत में सबसे अलग दिखाई देता और उसके अभूतपूर्व ज्ञान-दर्शन ने ही उसे ‘विश्व गुरु’ के ऊंचे सिंहासन तक पर विराजमान कर दिया और जिसको मिटाने-भूलाने की लिबरल्स व बुद्धिजीवियों की तमाम साजिशों लगातार के कुप्रयासों के बावजूद भी वो अपने पथ पर कछुए की भांति चलता हुआ फिर एक बार सिरमौर बनने की तरफ अग्रसर है जिसकी झलक आये दिन दिखाई देती जो बताती कि वाकई ये देश बदल रहा, ये एक नया भारत है जहाँ लोकतंत्र का मतलब महज़ शासन नहीं बल्कि, जनता-जनार्दन व सरकार का सम्मिलित स्वरुप है दोनों के बिना ही कोई भी राष्ट्र पूर्ण तरक्की नहीं कर सकता यदि एक कदम सरकार उठाती तो दूसरा कदम अवाम को भी बराबरी से उठाना चाहिये और जब दोनों सम्मिलित रूप से कदम से कदम मिलाकर अपनी भूमिका का निर्वहन करते तो फिर उसे तोड़ना या उसे झुकाना नामुमकिन होता है

ऐसे में जब ऐसी तस्वीरें नजर आये जिसमें जमीन से जुड़ा एक आमजन जो अपने कर्तव्य पथ पर चलते हुये ये विचार नहीं करता कि उसे इसके बदले में क्या मिलेगा या किस तरह से समाज हित में किये गये उसके उस असाधारण कार्यों का मूल्यांकन किया जायेगा वो तो केवल राम जी की गिलहरी सम जब मानव जन्म का उद्देश्य समझ लेता और अपने आपको पहचान लेता तो बस, जुट जाता परमार्थ में अथक, अनवरत अंतिम साँस तक बिना ये परवाह किये कि कौन उसे देख रहा है वो तो जहाँ कहीं भी अव्यवस्था देखता या अपनी आवश्यकता महसूस करता जुट जाता सहयोग करने मगर, यदि प्रशासन सजग होता है तो उसकी सूक्ष्म दृष्टि से उसका देशहित किया गया वो योगदान चूकता नहीं है । ऐसा ही हुआ दूर-दराज के गाँव-कस्बों में उन अत्यंत गरीब पर, सही मायनों में समाजसेवकों के द्वारा जो कहीं कृषि तो कहीं वृक्षारोपण या कहीं शिक्षा या संगीत या नृत्य या पशुपालन जैसे छोटे-छोटे काम करते हुये निजहित की जगह समाज को सर्वोपरि मानते हुये सहयोग कर रहा था ।         

इनके इस साधारण से लगते काम को असाधारण मानते हुये सरकार ने पद्म पुरस्कार के योग्य समझकर इनका चयन किया जिसकी तस्वीरें जब कल सामने आई तो लोग आश्चर्य से देखते रहे कि किस तरह एकदम साधारण-सी चप्पल पहने आमजन देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति से पद्म पुरस्कार प्राप्त कर रहे थे । इसमें एक तस्वीर ऐसी भी आई जिस पर प्रोटोकॉल तोड़ने का आरोप भी लगा जब माथे पर त्रिपुंड लगाये और हल्के हरे रंग की साड़ी पहने 107 वर्षीय ‘सालूमरदा थीमक्का’ जिन्हें कर्नाटक में 8000 से अधिक वृक्ष लगाने की वजह से ‘वृक्ष माता’ भी कहा जाता है । उन्होंने सम्मान लेते समय अपने मुस्कुराते चेहरे व सहज कदम से नंगे पांव आगे बढ़कर एक हाथ से सम्मान पकड़ दूसरे हाथ से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी के सर पर आशीष भरा हाथ रख दिया तो स्वयं राष्ट्रपति ही नहीं प्रधानमंत्री और अन्य मेहमानों के चेहरे पर मुस्कान आ गई और समारोह कक्ष उत्साहपूर्वक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।

ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा था इसके पूर्व भी जनवरी २००१ में खेतों में काम करने वाली दिहाड़ी मजदूर ‘चिन्ना पिल्लई’ जिसने महिला मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ी उन्हें संगठित किया को ‘नारीशक्ति सम्मान 2019’ के लिये चयनित किया गया तो तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी प्रोटोकॉल तोड़ते हुये उनसे उम्र में छोटे होने के बाद भी उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया था । चाहे वह ‘थिम्क्का’ के आशिर्वाद देते हाथ हो या ‘चिन्ना’ के पैर यह आम आदमी को गौरव से भरते है उन्हें ये विश्वास हो रहा कि अब तक जो सम्मान सिर्फ एलिट वर्ग तक सीमित थे जिन्हें पाने के लिये चापलूसी और जबर्दस्त लॉबिंग तक की जाती थी वे पुरस्कार खुद चलकर उस तक पहुंच रहे है अब देश के साधारण लोगों के असाधारण काम को सम्मानित करके पद्म सम्मान भी सम्मानित हो रहा है और ये सशक्त भारत की मजबूत दावेदारी को पेश करती वो छवियाँ है जिसने ये जता दिया कि हम सब यदि ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करे तो कितने भी अभावों में रहते हुये देश के विकास में न केवल अपना योगदान दे सकते बल्कि, उसकी पुरातन कमजोर छवि भी बदल सकते है

lll…..
गण और तंत्र
मिलते इस तरह जब
बनता इतिहास
होता अद्भुत समन्वय
समय की शिला पर
दर्ज हो जाता
एक ठहरा पल यूं ही
जहां आकाश झुक जाता
लेने धरा का आशीष
ऊपर से नीचे तक
आता नजर सच्चा लोकतंत्र
……….lll

#मेरा_देश_बदल_रहा_है
#आमजन_का_सम्मान_बढ़ाये_देश_की_शान

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च १७, २०१९

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