शनिवार, 9 मार्च 2019

सुर-२०१९-६८ : #सनातन_आस्थाओं_को_मसल_सकते_है #बस_बाबर_के_किये_को_नहीं_बदल_सकते_है




हजारों साल की हिन्दुओं की आस्था सनातन की परम्पराओं को पलटने या खत्म करने में ‘सुप्रीम कोर्ट’ पल भर का समय नहीं लेती तत्काल फैसला दे देती फिर चाहे उनके अस्तित्व का सवाल हो या फिर वे धर्मसंकट में ही क्यों न पड़ जाये इसके बावजूद भी सोचने का विषय ये नहीं कि ये सब क्या है और क्यों हो रहा ???

सोचने की बात तो ये है कि ये सब तब हो रहा जब वो बहुसंख्यक है एक पल को विचार करें कि यदि ये पलड़ा कम या सम हो गया तब क्या होगा ? ये मत कहियेगा कि वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा जबकि, सच्चाई यही कि तब ये ‘सुप्रीम कोर्ट’ जो हिन्दुओं के मसले पर बिना आगा-पीछा किये फैसला सुनाता उसका नमो-निशान ही न रहेगा क्योंकि, ‘शरीयत’ लागू होने पर ‘संविधान’ तो स्वतः ही लाचार हो जायेगा माना कि, इसमें अभी समय लगेगा तो क्या तब तक इस मामले को कछुए की गति से चलाते-चलाते यूँ ही लटकाकर रखा जायेगा ताकि, फिर ‘बाबर’ के किये को बदलने की नौबत ही न आये उसके वंशज उसके किये को पुनर्स्थापित कर उसके नाम को बदस्तूर कायम रख नया इतिहास रचे या फिर सुप्रीम कोर्ट खुद उस ऐतिहासिक अवसर को लपक ले जो उसके नाम को इतिहास में सदा-सदा के लिये स्वर्ण अक्षरों में अंकित कर अमर कर दे क्योंकि, ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलते मगर, जिनमें हिम्मत होती वही इनका मान रखते है     

इसके बाद भी शर्मिंदगी की बात ये कि वो जो खामोश सब सहता क्योंकि, उसके लिये रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार और शिक्षा का सवाल इतना बड़ा कि उसने धर्म को अपनी वरीयता सूची में कहीं पीछे कर दिया है तो इस तरह का लचरपन देखकर भी उसकी रगों में उबाल नहीं आता बल्कि, वो आगे बढ़कर प्रस्ताव रखता कि उस जगह या तो सर्व-धर्म का प्रतीक या कोई अस्पताल या यूनिवर्सिटी बना दी जाये इतने के बाद भी हद है कि उसकी सहिष्णुता का लगातार इम्तिहान लिया जा रहा और सबसे कमाल की बात कि उसके बाद उस पर असहिष्णुता का ठप्पा भी लगाया जा रहा मगर, मजाल है जो वो भड़क जाये या उसके विरुद्ध आवाज़ उठाये जो कि एक अच्छी बात क्योंकि, देश में अमन-चैन कायम रहे इससे बढ़कर दूजी बात नहीं फिर भी ये देखकर कहीं संदेह होता कि वो क्यों नहीं दूसरों की तरह बिना हिंसा किये सरकार से सवाल करता या मन्दिर के लिये कोई मुहीम चलाता है

इनसे ज्यादा जागरूक और सजग तो वे लोग जो अपने खिलाफ एक भी निर्णय लिये जाने पर सरकार को अध्यादेश लाने पर मजबूर कर देते चाहे फिर ‘एट्रोसिटी एक्ट’ का मामला हो या फिर ‘200% रोस्टर’ जिसके बदले भले सरकार को ‘नोटा’ का स्वाद चखना पड़े पर मन मारकर भी उसे वो कदम उठाना पड़ता आखिर, वोट का सवाल जो पर, सवर्णों के मतों पर उनके माथे पर चिंता को कोई लकीर तक न उभरती क्यों ? क्योंकि, वो जायेगा कहाँ, वो तो झख मारकर आपके ही पास आयेगा आखिर, आपसे उम्मीद जो लगाये बैठा कि आप उसके भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम ‘श्रीराम’... उसके प्यारे ‘रामलला’... की जन्मस्थली में उसको उसका हक दिलाकर रहोगे उसका भव्य मन्दिर बनवाओगे उस इतिहास को मिटाकर नई इबारत लिखोगे पर, सुनने मिलता कि ‘बाबर ने जो किया हम उसे बदल नहीं सकते’ तो क्या जनाब आप केवल ‘सबरीमाला मन्दिर’ की प्राचीनकालीन रवायत को कुचलने में ही सक्षम या फिर आप ‘एडल्ट्री’ पर कानून बनाने का ही दम रखते है

पहले तो ‘राम मन्दिर प्रकरण’ को तारीख-पर-तारीख देकर इतना कमजोर कर दिया कि उसके प्रति दिलचस्पी ही खत्म हो जाये बोले तो व्यक्ति को मानसिक रूप से इस तरह प्रताड़ित किया गया कि उसका रुझान ही उस तरफ से कम हो गया उसके बाद लगातार मजाक कर भीतर की आस्था को भी इतनी बार छला गया कि अब उसके लिये इस मामले में जरा-सी भी उम्मीद शेष हो लगता नहीं वो समझने लगा कि ये गोल-गोल घुमाकर वहीं पहुंच जाते जहाँ से शुरू हुये थे ये मध्यस्थता भी एक बचकना निर्णय जो पहले भी कई दफा आजमाया गया और हमेशा फ्लॉप रहा उस पर पैनल में उन ‘श्री श्री रविशंकर’ को लिया गया जो ‘डॉ जाकिर नाईक’ के तर्को के आगे टिक न सके ऐसे में सवाल उठता कि वो क्या उन दोनों के सामने अपना पक्ष मजबूती से रख सकेंगे या फिर आठ हफ्तों का समय बिताकर कहानी वहीं की वहीँ शुरू से शुरू तो इस तरह क्या वो वापस ‘बाबर’ तक न पहुँच जायेगी क्या लगता आप सबको ???

एक बार सोचियेगा जरुर... गोलमाल है भई सब गोलमाल है... !!!

#बाबर_के_किये_को_बदलना_मुमकिन_है
#राम_मन्दिर_बनना_जरूरी_है

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च ०९, २०१९

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