सोमवार, 4 मार्च 2019

सुर-२०१९-६३ : #विष_रखें_सहेजकर #जगत_संहारक_शिव_शंकर




हम सब जानते है कि समुद्र मंथन से सबसे पहले बेहद खतरनाक विष ‘कालकूट’ निकला जिसे देखकर सब घबरा गये पर, ‘शिवजी’ ने बड़ी खामोशी से उसे अपने कंठ में रख लिया जो संकेत देता हलाहल को ग्रहण करने का मतलब सदैव मृत्यु नहीं होता बल्कि, स्वयं में आत्मविश्वास हो तो उसे भीतर सहेजकर भी रखा जा सकता और समय आने पर उसका उपयोग किया जा सकता है जिस तरह भोलेनाथ करते कि जब सृष्टि में पाप बढ़ जाते और अधर्म चहुंओर व्याप्त हो जाता तब फिर वो इस जहर से इन दुनिया को समाप्त कर ड्रामे का पर्दा गिरा देते इस तरह गरल को पीना और अपने भीतर सहेजकर रखना सिर्फ शिव ही कर सकते है ।

हम सब कुछ बन सकते मगर, शिव बनना किसी के वश के बात की नहीं क्योंकि उसके लिए सिर्फ जहर को ही नहीं हर उस शय को गले लगाना पड़ता जो हमारे लिए खतरा हो सकती यहां तक कि विरोधियों को भी प्रेम के साथ एकजुटता के साथ रखना पड़ता है । ये शिव परिवार की ही खासियत जहां पर यदि चूहा है तो सर्प और मोर भी है गाय-बैल है तो शेर भी है खतरनाक परिवेश से घिरे होकर भी मगन होकर तांडव करते तो कोलाहल के मध्य मौन साधना भी करते है । ऐसा व्यक्तित्व उनका जो सम्पूर्ण जगत का सम्राट होकर भी राजसी वस्त्र नहीं धारण करता न ही किसी पर शासन करता या अपना दबदबा कायम करता बल्कि, उसके होने से मन को भरोसा होता कि शिव है अगर, साथ तो डरने की नहीं कोई बात

कुछ भी नहीं असम्भव जब शिव की कृपा भरा हाथ हो सर पर तभी तो उनको जगतपिता कहा जाता तो पार्वती जी को जगत माता जो मिलकर इस सम्पूर्ण संसार का पालन करते है आज उन्ही शिव-पार्वती के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण तिथि ‘महाशिवरात्रि’ पर <3 से मुबारकबाद ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
मार्च ०४, २०१९

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