बुधवार, 24 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११४ : #खेद_प्रकट_करने_वालों_से_बचे #बहत्तर_हजार_के_जुमले_में_न_फंसे



(कृपया करदाता विशेष ध्यान दे...)

सुप्रीम कोर्ट के हवाले से दिये गये 'चौकीदार चोर है' वाले बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर खेद प्रकट किया साथ ही अपने बयान पर सफाई देते हुए राहुल गांधी ने कहा है कि, “चुनाव प्रचार के दौरान उत्तेजना में उनके मुंह से यह बयान निकल गया था”

महज़ दो दिन पूर्व की खबर है जिसने देश के सभी मुख्य पृष्ठों पर सुर्खियाँ बटोरी फिर भी समस्त मतदाता तो अख़बार पढ़ते नहीं और न ही टेलीविजन देखते या सोशल मीडिया पर ही रहते तो ऐसे में ज्यादातर को तो ये पता ही न होगा और जिन्हें पता भी तो उन्होंने इसे इस पहलू से सोचा न होगा कि, जो व्यक्ति अपने कहे शब्दों के लिये देश के सर्वोच्च न्यायालय में लिखकर खेद व्यक्त कर अपनी ही कही बात से मुकर जाये उसका क्या भरोसा कल को वो अपने घोषणा पत्र में लिखे वायदों पर भी इसी तरह से प्रतिक्रिया दे सकता है । वैसे भी वो केवल चुनाव में चंद वोट हथियाने का हथकंडा मात्र है तो उससे मुकरना कोई आश्चर्य की बात नहीं और वैसे भी इस देश में किसी राजनैतिक दल को मेनिफेस्टो में लिखी अपनी घोषणाओं को पूरा करना न तो आवश्यक होता और न ही कोई नैतिक जिम्मेदारी होती इसलिये सभी पार्टीज के पास वोटरों को लुभाने आकर्षक वादे होते है ।

‘देश के 5 करोड़ परिवार या 25 करोड़ लोगों को सालाना 72 हजार रुपए मिलेंगे’ जिस तरह विधानसभा चुनाव के ठीक पहले किसानों के 2 लाख रूपये तक की कर्जमाफ़ी का जुमला एक सोची-समझी साजिश के तहत उछाला गया था ठीक उसी तरह लोकसभा चुनाव में ये नया वाला नारा लाया गया है जिसे बड़ी खुबसूरती से ‘न्यूनतम आय योजना’ व ‘न्याय’ जैसे शब्दों के रैपर से इस तरह पैक किया गया है कि जिस तरह लुभावनी पैकिंग देखकर उपभोक्ता या बच्चा मचल जाता कि हमें तो यही लेना है भले घर लाकर उसे खोलने पर ठगे जाने का अहसास हो मगर, उस वक़्त तो उसका वो आकर्षक रूप इस कदर मन मोह लेता कि कुछ भी नहीं सूझता बस, जैसे भी हो उसे खरीदने का मन बना लेता ऐसा ही इस मामले में होने की सम्भावना क्योंकि, उन्होंने इसके साथ ‘पायलेट प्रोजेक्ट’ जैसे अंग्रेजी वर्ड का भी प्रयोग किया पर, कितनी भोलीभाली जनता जो इसे जानती-समझती है वो तो सिर्फ अपना फायदा ही देखती है ।

इसलिये जैसे ही सुनती कि फलाना कम्पनी कोई छूट या मुफ्त उपहार दे रही या किसी सेल में सस्ते दाम पर बचा हुआ सामान बिक रहा भीड़ टूट पड़ती वो तो वहां जाकर ही पता चलता कि ये तो उन्हें उन तक खींचकर लाने का इक विज्ञापन मात्र था जिसमें ‘टर्म्स एंड कंडीशन्स’ वाली लाइन बड़े शातिराना तरीके से छोटे-छोटे हर्फों में इस तरह से नीचे लिखी जाती कि उस पर आसानी-से नजर ही न जाती आखिर, उनका उद्देश्य भी तो केवल ग्राहकों को किसी भी तरह से बहला-फुसलाकर दुकान तक लाना होता फिर उसे किस तरह मूर्ख बनाना या अपना उत्पाद बेचना ये दुकानदार पर निर्भर करता वैसे भी यदि व्यापारी चालाक होता तो जैसा कि कहा गया है है कि ‘एक सफल सेल्समैन वही होता जो एस्किमो को बर्फ और गंजे को कंघी बेच दे’ जो इस श्रेणी के सयाने बिजनेसमैन वो कामयाब हो जाते अपने मकसद में फिर बेचारा कस्टमर किश्त के रूप में खामियाजा भुगतता रहता अपने ठगे जाने की कीमत इन्सटॉलमेंट में भरता ठगे जाने का ये सिलसिला चुनाव दर चुनाव इसी तरह चलता रहता पर, इसके बावजूद भी कोई उसे नहीं चुनता जो वाकई इसका हकदार है ।

पिछली दफा का 2 लाख वाला वादा भी ऐसी ही कई छिपी हुई शर्तों के साथ बंधा था जो बाद में पता चली इसलिये जब फिर ऐसा ही ऑफर दिया जा रहा तो उसे केवल सुने नहीं बल्कि, किसी चतुर सुजान की तरह उसका पोस्टमार्टम करे कहीं इसमें भी तो कोई ऐसी T&C नहीं जिसे फ़िलहाल ज़ाहिर नहीं किया हो और सत्ता में आते ही बताया जाये तब सर धुनने के सिवा कोई विकल्प न होगा क्योंकि, इसे पायलेट प्रोजेक्ट कहना कुछ ऐसा ही दर्शाता है जिस पर ज्यादातर लोगों का ध्यान ही नहीं गया अतः ये विचार कर ले एक बार कि न तो इसे जल्द लागू किया जायेगा और न ही उन सबको इसका लाभ प्राप्त होगा जिनका जिक्र किया जा रहा है क्योंकि, इसे दो चरणों में क्रियान्वित करने की बात इतने दबे शब्दों में कही गयी कि 72 हजार के शोर में दब गयी तो कृपया उस विडिओ को दुबारा देखे व जो कहा गया उसे बड़े गौर से सुने दूसरी बात कि इसके ऐलान के साथ ही रेडीमेड पोस्टर्स के जरिये प्रचारकों ने कहना शुरू कर दिया कि, “यदि मेरे एक वोट से किसी गरीब का फायदा होता गई तो मेरा वोट फलाना-ढीमकाना पार्टी को” जो किसी सोची-समझी साजिश की तरफ इशारा करता है ।                 

यदि आप सचमुच ये सोचकर मत देने का मन बना रहे कि इससे किसी वंचित या सच्चे व्यक्ति का भला होगा तो ये बहुत अच्छी बात फिर भी कम से कम इस पर तो अपने मस्तिष्क के घोड़े जरुर दौडाये कि बेरोजगारी का आंकलन किस तरह किया जायेगा जबकि, आप चाय वाले, पकौड़े तलने वाले, चाट वाले, रिक्शे वाले, अख़बार बेचने वाले अपनी काबिलियत से चार पैसे कमाने वाले, गृह कार्य करने वाले सहायक/सहायिकाओं या ऐसे ही छोटे-मोटे रोजगार करने वालों को भी बेरोजगार समझते है ऐसे में संभव कि वे अपना काम-धंधा छोड़कर आपके पाले में आ सकते या फिर अपना नाम छिपकर आपसे ये आय लेते रह सकते है क्योंकि, बेरोजगारों का तो कोई पंजीयन नहीं, न ही कहीं नामांकन तो इस तरह केवल 20 फ़ीसदी नहीं सब आपकी योजना के हकदार लेकिन, जिनको सचमुच इसकी जरूरत उनको आईडेंटिफाय करना मुश्किल ऐसे में लग रहा जिस तरह संसद में कागज के प्लेन उड़ाते या आंख मारते उसी तरह बिना किसी ठोस प्लान के हवा में ये तीर चला दिया गया है

चलो ये एक बार ये मान लिया जाये कि किसी तरह बेरोजगारों का चयन कर ही लिया गया तो ये किस तरह से कह सकते उसमें रोहिंग्या / अपराधी / आतंकवादी / फर्जी शरणार्थी / धोखेबाज / झूठे प्रमाणपत्र वाले शामिल नहीं होंगे इस तरह तो जो टैक्स पेयर या व्यक्ति गरीबों के हितार्थ अपना कीमती वोट देगा वो धोखा खायेगा कि उसने अनजाने में आतंकियों की सहायता कर दी उन्हें देश पर हमला करने हथियार खरीदने सरकारी खजाने में से सहयोग राशि दिलवा दी और ये नामुमकिन या इसकी सम्भावना नहीं इससे इंकार नहीं किया जा सकता अतः जो इसके दायरे में नहीं उन शेष मतदाताओं बोले तो देश की आबादी के एक फ़ीसदी टैक्स पेयर्स जिन पर इनका बोझ डाला जाना है को इस तरह की बातों या पहलूओं पर ठंडे दिमाग से विचार करने की सख्त जरूरत है क्योंकि, उनकी कमाई से दिये गये टैक्स से ही इसे अमल में लाया जायेगा अतः समस्त करदाता इसे अवश्य पढ़े और समझने की कोशिश करें कि क्या वाकई आपका वोट किसी के काम आने वाला है ???

सनद रहे कि एक ही गड्ढे में तो ‘गधा’ भी दुबारा नहीं गिरता फिर यहाँ तो चौथी पीढ़ी आ गयी वही झुनझुना लेकर ‘गरीबी हटाओ’ जब वो उनके 55 साला शासन में न हटी तो अब क्या हटेगी कहीं ऐसा न हो कि आप अपना वोट देकर साबित कर दो कि ‘गधा ही दुबारा नहीं गिरता’ तो अंतिम फैसला आपका, आखिर वोट भी तो आपका है

#दिखावे_में_न_आओ_अपनी_अक्ल_लगाओ             
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २४, २०१९

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