बुधवार, 3 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-९३ : #हम_निभायेंगे_देशद्रोहियों_आतंकियों_का_साथ #सर_पर_रखेंगे_उनके_सरंक्षण_का_सियासी_हाथ




कल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने बहु-प्रतीक्षित ‘मेनिफेस्टो’ अर्थात ‘घोषणा पत्र’ को जारी किया जिसका शीर्षक ‘हम निभायेंगे’ ने जहाँ लोगों को आकर्षित किया वहीँ इसे ‘जन की आवाज़’ सम्बोधित किये जाने से जनता में हर्ष की लहर भी दौड़ी जिसकी एक वजह बहत्तर हजार की एक घोषणा का पहले ही सार्वजानिक किया जाना था तो उम्मीदें बहुत अधिक बढ़ चुकी थी उनकी जिनको लग रहा था कि उनके लिये इसमें बहुत कुछ ऐसा होगा जो उनकी ज़िन्दगी बदल देगा लेकिन, जब इसको पढ़ा तो लगा ये ‘जन’ नहीं केवल ‘कांग्रेस के मन की आवाज़ है’ और ‘हम निभायेंगे’ से तात्पर्य देश या अवाम नहीं बल्कि, अप्रत्यक्ष रूप से देशद्रोहियों औत आतंकियों का साथ निभाने का एजेंडा छिपा हुआ है जिसे बहत्तर हजार, रोजगार और शिक्षा जैसी अनेकानेक घोषणाओं के बीच इतने शातिराना तरीके से रखकर पेश किया गया है कि आम जन हमेशा की तरह अपने स्वार्थ में लिप्त होकर सिर्फ उन वादों में ही खोकर रह जाये जिसकी आड़ में ये अपना लक्ष्य साध ले जैसा कि हमेशा से करते आये है मगर, इस बार चूक गये क्योंकि, अब देशवासियों की प्राथमिकतायें बदल गयी है पहले जहाँ वे खुद को रखते थे वहां अब ‘राष्ट्र प्रथम’ है

इसलिये जैसे ही उनकी नजर पृष्ठ क्रमांक 35 के चैप्टर “कानून नियम और विनियमो की पुनःपरख” पर गयी तो वहां वादा क्रमांक 3 पर लिखा था कांग्रेस विशेष रूप से वायदा करती है कि...     
 
“भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (जो की देशद्रोह के अपराध को परिभाषित करती है) जिसका कि दुरूपयोग हुआ, और बाद में नये कानून बन जाने से उसकी महत्ता भी समाप्त हो गई है उसे खत्म किया जायेगा”।

जिसने एक बार फिर कांग्रेस के चाल,चरित्र और चेहरे को उजागर कर दिया क्योंकि, ये हमेशा ही टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ खड़ी नजर आती तो ऐसे में उनको बचाने का दायित्व भी तो बनता ताकि, वे बेख़ौफ़ होकर अपना खेल खेल सके अभी तो क्या है न कि इस कानून की तलवार हमेशा उनके सर पर लटकती रहती तो इस दफा ये सोचा कि इसे जड़ से ही मिटा दे ताकि, देश को तोड़ने या बाँटने में कोई बाधा न रह जाये इस तरह उसने ज़ाहिर कर दिया कि यदि वो 72 हजार का झांसा देकर भूले से सत्ता में आ गयी तो देश की बर्बाद करने का ये उसका अंतिम प्रयास होगा जिसके लिये वो एडी-चोटी का जोर लगा रही उपर से तो बड़ी अच्छी-अच्छी बातें कर रही मगर, केंद्र में उसका यही एकमात्र टारगेट है जो 2014 में सत्ता परिवर्तन से अधूरा रह गया यदि विश्वास न हो तो जरा एक बार सभी लोग ये जानने का कष्ट करें कि भारत देश के कितने राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुका है तब आँख खुले शायद कि अब अल्पसंख्यक का मतलब केवल एक ही समुदाय नहीं रह गया हिन्दू भी उसी श्रेणी में आ रहा कहीं-कहीं इसके बाद भी यदि हिन्दू इस गुमान में कुम्भकर्णी नींद लेता रहा कि 7-8 राज्यों में कम संख्या होने से क्या होता बहुसंख्यक तो अभी हम ही है तो याद रहे कि पाकिस्तान भी कोई एक दिन में नहीं बन गया था

अब जरा ये भी समझ ले कि आखिर, क्या है धारा 124(ए) जिसे हटाने की बात की जा रही है तो शायद, इसे पढ़कर आपकी ट्यूबलाइट थोड़ी-बहुत जल जाये...

क्या है आईपीसी की धारा 124 A : “देशद्रोह”???

आईपीसी की धारा 124ए कहती है कि, “अगर कोई भी व्यक्ति भारत की सरकार के विरोध में सार्वजनिक रूप से ऐसी किसी गतिविधि को अंजाम देता है जिससे देश के सामने सुरक्षा का संकट पैदा हो सकता है तो उसे उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है इन गतिविधियों का समर्थन करने या प्रचार-प्रसार करने पर भी किसी को देशद्रोह का आरोपी मान लिया जाएगा इन गतिविधियों में लेख लिखना, पोस्टर बनाना और कार्टून बनाना जैसे रचनात्मक काम भी शामिल हैं अतः आईपीसी की धारा 124 (ए) के तहत उन लोगों को गिरफ्तार किया जाता है जिन पर देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने का आरोप होता है” ।

अब समझे कि क्या है “देशद्रोह” ?

भारतीय कानून संहिता (आईपीसी) की धारा 124 (A) में ‘देशद्रोह’ की दी हुई परिभाषा के मुताबिक...

1. अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है।
2. ऐसी सामग्री का समर्थन करता है।
3. राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है।
4. अपने लिखित या फिर मौखिक शब्‍दों, या फिर चिन्हों या फिर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नफरत फैलाने या फिर असंतोष जाहिर करता है तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है।

इसे हटाने के पीछे कांग्रेस के द्वारा तर्क दिया गया कि ‘सैडीशन लॉ’ यानि ‘देशद्रोह कानून’ ब्रिटिश सरकार की देन है चूँकि ये कानून ब्रिटिश राज में अंग्रेजों के द्वारा 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में आई.पी.सी. में शामिल कर दिया गया फिर आजादी के बाद इसे भारतीय संविधान ने अपना लिया जो वर्तमान संविधान के अनुकूल नहीं है जबकि, धारा 124ए के अस्पष्ट प्रावधानों को दूर करने की मांग के अंतर्गत साठ के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला 1992 में 'केदार नाथ सिंह बनाम बिहार सरकार' नामक बहुचर्चित मामले में दिया था जिसके अंतर्गत शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए आईपीसी की धारा 124 ए की जांच की थी इसके बाद उसने इस धारा को संविधान सम्मत बताकर इसका दायरा सीमित करते हुये अपने आदेश में कहा था कि, “किसी भी व्यक्ति को देशद्रोही तभी माना जा सकता है जब उसके काम से व्यापक हिंसा भड़क उठी हो यानी जब तक सुरक्षा का संकट साबित नहीं हो जाता तब तक किसी भी काम को देशद्रोह की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए” इस तरह देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट की वह टिप्पणी धारा 124ए में एक तरह का संशोधन ही थी यही नहीं 2011 में भी एक फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि बाकी सभी धाराओ की तरह धारा 124ए को भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ अनुकूलता में देखा जाना चाहिए याने कि शीर्ष अदालत के फैसला इन्हें स्वीकार नहीं ये खुद अदालत बनकर अपना निर्णय लेगी क्योंकि, ये देश के नहीं उनके प्रतिकूल है

जहाँ तक इनका खोखला तर्क है कि ये अंग्रेजों का बनाया गया कानून है तो ये कहते हुये शायद, ये भूल गये कि ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना एक अवकाशप्राप्त अंग्रेज अधिकारी ‘एलन ऑक्टोवियन ह्यूम’ ने 28 दिसंबर 1875 को ब्रिटिश शासन काल में ही की थी उस वक़्त इसके गठन का उद्देश्य यह था कि फिरंगियों के दुर्व्यवहार से भारतीय जनता में जो आक्रोश पनप रहा है कहीं वो खतरनाक रूप न ले सके अतः ऐसा विचार किया गया कि कोई ऐसा संगठन बनाया जाये जो उनके भीतर छिपे असंतोष को ‘सेफ्टी वॉल्व’ के रूप में बाहर निकाल सके । वैसे देखा जाये तो आज तक भी कांग्रेस यही कर रही जनता के क्रोध को दबाने उपर से बहत्तर हजार की बात करती मगर, भीतर देश तोड़ने की योजनायें बनाती रहती जबकि, महात्मा गाँधी जी ने भी आज़ादी के बात कांग्रेस भंग करने की इच्छा जताई थी लेकिन, जब उस नाम से काम बन रहा तो उसे क्यों छोड़ना । ऐसे में अब जनता के हाथ में है कि वहीँ अंग्रेजों की बनाई इस पार्टी को उसी तरह से खत्म कर दे जिस तरह ये ब्रिटिश काल का नाम लेकर देशद्रोह कानून को समाप्त करने की बात कर रही है तो ये भी तो गुलामी के दिनों की याद तो फिर इसे क्यों सहेजकर रखा जाये तो कर दो अंतिम वार आखिर, ये भी तो अंग्रेजों की बनाई पार्टी जिसका दुरपयोग हो रहा है ।     

हर हाल में हमारी पहली वरीयता देश बचाना है बाकी, गरीबी, शिक्षा, रोजगार, पर्यावरण सब अपन देख लेंगे क्योंकि, यदि देश ही न रहा तो फिर क्या करेंगे वैसे, भी हिन्दुओं के लिये सम्पूर्ण विश्व में दूसरा कोई मुल्क नहीं है ये भी गया तो दर-दर भटकोगे ये मत सोचना कि ये केवल एक प्रायोजित डर या दुष्प्रचार है जब 70 सालों में कुछ न हुआ तो अब क्या होगा तुम्हारी इसी गजनी टाइप ‘शोर्ट टर्म मेमोरी लोस’ जैसी मानसिक बीमारी का फायदा इसने अब तक उठाया है पर, बस अब नहीं अपनी आने वाली पीढ़ियों को बचा लो फिर मन में ये दोहरा लो...

“जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं
वो हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं”

जय हिन्द... जय भारत... भारत माता की जय... !!!
   
#Appeal_To_Vote_Against_Sedition   
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल ०३, २०१९

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