सोमवार, 15 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-१०५ : #आदर्श_चुनाव_आचार_सहिंता #किसी_दल_पर_कोई_असर_नहीं_दिखता




‘आदर्श आचार सहिंता’ मतलब देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने की कठोर नियमावली परंतु, इसके लागू होते ही सभी दलों के समस्त नेता एकदम से बेलगाम हो जाते है यूँ लगता मानो निर्वाचन आयोग के चुनाव की तिथियों की घोषणा के साथ ही उनको कोई खुली छूट दे गयी हो जैसे कोई किसी बड़ी प्रतिस्पर्धा का शुभारंभ हो गया हो और माईक से चिल्लाकर कहा गया हो ‘आपका समय शुरू होता है अब...’ बस, उसके बाद सब अपनी जुबान को यूँ आज़ाद कर देते जैसे किसी ने बहुत समय से बंधी पैरों की जंजीरें काट दी हो तो समझ ही न आ रहा कि ये जो समय मिला इसमें क्या-क्या न कर ले इसलिये शायद, इन दिनों सभी हदें पार कर दी जाती हर किसी के द्वारा क्योंकि, कोई किसी से किसी भी मामले में पीछे नही रहना चाहता आखिर, इज्जत का मसला जो होता तो जिस नैतिक आचरण की अपेक्षा के साथ इसको सम्पूर्ण निर्वाचन के दौरान लागू किया जाता उसके ठीक विपरीत सभी पार्टियों के नेताओं द्वारा इसका पालन किया जाता जो इस पर कई प्रश्नचिन्ह खड़े करता है क्योंकि, इसे लागू करने का जो उद्देश्य होता वो कहीं पर भी दिखाई नहीं देता है

आये दिन इस गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाते देश की बागडोर संभालते व पूरी दुनिया में इसका प्रतिनिधित्व करने वाले माननीय मंत्री इतने निम्न स्तर पर उतर आते कि ताज्जुब होता ये देखकर कि ये जन-प्रतिनिधि है इन्हें ही जनता ने चुनकर भेजा है और ये राष्ट्र का संचालन करते है वो जिन्हें बोलने तक की तमीज नहीं और जिनकी शिक्षा का स्तर उन सरकारी कर्मचारियों व अफसरों से भी कम जिन पर इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी होती फिर भी मजाल जो कोई इनकी अवहेलना कर दे बल्कि, इनके इन अपशब्दों पर तो श्रोतागण तालियाँ पीटते भले ये किसी स्त्री का अपमान करें या किसी अफसर का तो फिर क्यों न ये इससे भी अधिक नीचे उतरने को तैयार हो जब इनके पास अपने ‘वोट बैंक’ का भरोसा हो तो ये भी अपने उस विपक्ष को हर तरह से नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते जिसके लिये ‘आदर्श आचार सहिंता’ में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि “राजनीतिक दलों की आलोचना कार्यक्रम व नीतियों तक सीमित हो, न कि व्यक्तिगत” मगर, एक भी दल ऐसा नहीं जो इसका अक्षरशः पालन करता हो सभी एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप ही लगाते रहते है

यही नहीं मतदाता की जात व धर्म के सम्बन्ध में भी साफ-साफ़ लिखा गया है कि “कोई भी दल ऐसा काम न करे, जिससे जातियों और धार्मिक या भाषाई समुदायों के बीच मतभेद बढ़े या घृणा फैले और राजनीतिक दल ऐसी कोई भी अपील जारी नहीं करेंगे, जिससे किसी की धार्मिक या जातीय भावनाएं आहत होती हों” फिर भी यही देखने-सुनने में आता कि सभी दल के नेता अपने वोट को साधने के लिये उनके मजहब को टारगेट बनाते उनसे अपने धर्म के लोगों को वोट देने की अपील करते है वे ऐसा कुछ न कुछ जरुर करते कि विभिन्न समुदायों के बीच आपसी मतभेद उत्पन्न हो तो क्या ये सब नियम केवल सहिंता की शोभा बढ़ाने के लिये ही लिखे गये है इन पर अमल करना जरुरी नहीं यदि है तो इनके उल्लंघन पर चुनाव आयोग उसी तरह से कठोर कार्यवाही क्यों नहीं करता जैसा कि उल्लेखित किया गया है बल्कि, वो तो इन सबको नजरअंदाज करता रहता जब तक कि उससे इस पर एक्शन लेने को कहा न जाए ऐसे में ये सब महज़ औपचारिकता ही लगती है

सम्पूर्ण आचार सहिंता में नेताओं के ‘सामान्य आचरण’ से लेकर उनके द्वारा आयोजित की जाने वाली ‘जनसभाओं’ और उनके द्वारा निकाले जाने वाले ‘जुलूस’ हो या फिर ‘मतदान दिवस’ में उनसे अपेक्षित व्यवहार हो या ‘मतदान केंद्र’ पर उनके प्रवेश को लेकर दिशा-निर्देश हो सब को अलग-अलग चैप्टर में क्लियर लिखा गया है इसके अतिरिक्त सत्ताधारी दल के लिये भी अलग से विशेष नियम दिए गये है ‘निर्वाचन घोषणा पत्र’ पर भी गाइडलाइन में किसी तरह का कोई संदेह नहीं है फिर भी जब उन नियमों का अध्ययन करो तो कोई भी दल उस पर सटीक बैठता दिखाई नहीं देता ऐसे में ये ‘आदर्श चुनाव आचार सहिंता’ का औचित्य क्या है ये समझ नहीं आता जबकि, उन नियमों से अलग सबके अपने नियम दिखाई देते है केवल आम जनता ही इससे प्रभावित होती क्योंकि, वो यदि किसी विभाग से अपना कोई काम कराना चाहे तो उसे दो टूक जवाब मिलता “आचार सहिंता लागू है”

#आचार_या_अनाचार_सहिंता
#जनता_अमल_करें_नेता_नहीं_मानता
     
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल १५, २०१९

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