गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-१०१ : #देर_से_मिले_गर_न्याय #तब_वो_बन_जाता_अन्याय



हे बीस फीसदी गरीबों...
सावधान, ‘न्याय’ का दाना मत चुगो

शिकारी एक बार फिर भेष बदलकर आ गया है और उसने ‘न्यूनतम आय सहायता योजना’ (न्याय) का चुग्गा भी डाल दिया है जिसका निशाना 20 फीसदी गरीब है जिनके कानों को 72 हजार सुनकर बड़ा अच्छा लग रहा और वे तो 6000 महीने के सपने भी देखने लगे क्योंकि, जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती जिसका लाभ उठाने ही ऐसे दावे और वादे बार-बार किये जाते है अन्यथा जो दांव एक नहीं अनेक बार नकारा सिद्ध हो चुका हो उसे लगातार 50 सालों तक रटने का दूसरा क्या उद्देश्य हो सकता है सिवाय इसके कि यही वो मन्त्र जो उनकी डूबती नैया को किनारे लगा सकता न कि आपको गरीबी के दलदल से बाहर निकाल सकता है यदि ऐसा होता तो 1971 में जब से ‘गरीबी हटाओ’ अभियान का शुभारम्भ हुआ तब से आज तक तो इस शब्द को ही शब्दकोश से हट जाना था मगर, हुआ क्या ये तो एक बार फिर से ‘मेनिफेस्टो’ की शान बढ़ा रहा जिसकी वजह ये कि यदि गरीबी खत्म हो गयी तो फिर ये क्या करेंगे इसलिये इस दफा भी ये महज़ एक नारा है

ऐसे में आप जो इस योजना के सच्चे हकदार उनको थोड़ा-सा समय लगाकर ये जरुर सोचना चाहिये कि क्या ये सम्भव है और उन करदाताओं को भी गहन चिन्तन करने की जरूरत जिनके टैक्स से इस स्कीम को अंजाम दिया जाना और यही आपकी शिक्षा व जागरूकता का सार्थक उपयोग जब आप ये समझो कि भले सरकार चंद लोग चलाते लेकिन, उन्हें इसे सुचारू रूप से चलाने के लिये ईधन आप ही जुटाते तो फिर क्यों आप ये नहीं जानना चाहते कि जो टैक्स आप अपनी मेहनत की कमाई से देश को मजबूत बनाने के लिये देते उसका इस्तेमाल किस तरह से किया जाता है क्या उसे मुफ्त में बांटकर आपके किये-कराये पर पानी नहीं फेरा जाता क्योंकि, गरीब तो फिर भी मजबूर जिसे अपनी परिस्थितियां व जरूरतें सोचने की सुविधा नहीं देती लेकिन, करदाताओं के पास तो ये फैसिलिटी कि वो अपने अधिकार व कर्तव्यों को संविधान से मिला उपहार ही न समझे बल्कि, अपनी जिम्मेदारी पर भी गंभीरता से विचार करें कि किस तरह वो अपने टैक्स के द्वारा राष्ट्र के निर्माण में अप्रत्यक्ष योगदान देता तो क्या उसके पैसों को इस तरह खैरात में बाँटना ठीक है ?

ये एक तरह से ‘गरीब’ ही नहीं ‘करदाताओं’ को भी छलना है जिन्होंने 1971 में भी इस उम्मीद में टैक्स दिया होगा कि उनके इस आंशिक योगदान से किसी गरीब का भला होगा जो कि नहीं हुआ फिर उसके बाद आगे के सालों में पुनः यही कहकर उससे टैक्स लिया गया मगर, कोई बड़ा परिवर्तन हुआ नहीं ऐसे में ये किस तरह से कहा जा सकता कि इस बार ये कारगार साबित होगा ही जबकि, इस बार सरकारी बजट में अतिरिक्त बोझ पड़ना है जो कहीं न कहीं देश के अतिआवश्यक मसलों को कमजोर करेगा और ध्यान रहे कि गरीबी कारू का खजाना दे देने से भी खत्म हो जाने वाली चीज़ नहीं है क्योंकि, हर खजाना चाहे वो कितना ही विशाल क्यों न हो कभी न कभी समाप्त होना ही होता लेकिन, ‘हुनर’ या ‘काबिलियत’ ऐसी चीजें जिन्हें न तो चुराना और न ही मिटाना संभव तो प्रयास ‘रोजगार’ की संभावनायें बढ़ाना होना चाहिये न कि रूपये-पैसे लुटाना नहीं तो आने वाले समय में ‘आरक्षण’ की तरह ये भी एक बड़ी समस्या बन जायेगा और तब इसे देते रहने के सिवा कोई चारा न रह जायेगा जो देश के लिये घातक है

इतने सालों में गरीबों का तो पता नहीं मगर, ये उम्मीद है कि ‘टैक्सपेयर’ पढ़-लिखकर इतना तो समझदार हो ही चुका होगा कि वो इन खोखले वादों के लिये अपना वोट बेकार नहीं करेगा तो ऐसे स्थिति में आपका वोट भी किसी काम का न रह जायेगा क्योंकि, इस योजना का क्रियान्वन तभी पॉसिबल जब आपके वोट में समस्त टैक्सपेयर का मत भी शामिल होगा जो कि महज एक ख्याली पुलाव जिसे आप कल्पना में देख तो जरुर सकते हो मगर, खा नहीं सकते तो फिर ऐसे झूठे ख्वाब देखने या इस लालच में फंसने की जरूरत ही क्या है इसकी बजाय जो आपको और आपकी आने वाली पीढ़ियों को सर उठाकर जीने का अवसर दे उसे चुने न कि जो खुद की आने वाली सात नस्लों को ऐश्वर्य भोगने की व्यवस्था करें उसे अपना वोट देकर फिर उसी तरह से बुद्धू बन जाये जिस तरह कभी आपके पूर्वजों ने इनके पूर्वजों पर भरोसा कर वोट देकर खुद को पाया होगा ये तो एक तरह से आपको और आपकी आने वाली पुश्तों को मुफ्तखोरी की आदत डालकर अपना गुलाम बना लेने की तैयारी है आखिर, उनकी न्यू जनरेशन भी तो जवान हो रही उसे भी तो इसी बिजनेस में लगाना है तो उसके लिये इन्वेस्टमेंट अभी से नहीं करना पड़ेगा क्या तो समझो ये बस, खुद के भविष्य को सुरक्षित करने का निवेश है न कि आपको आत्मनिर्भर बनाने का मन है क्योंकि, वो हुआ तो फिर आप उनके इशारों पर नाचने वाली गुलाम न रहेंगे इसलिये इसे ‘(अ)न्याय’ नाम दिया है

हम सब ये जानते है कि वो ‘न्याय’ जो समय बीत जाने के बाद मिले एक तरह से ‘अन्याय’ हो होता और आपको तो आपकी इतनी नस्लें बीत जाने के बाद भी जब वही मिल रहा तो फिर इस जाल में फंसना क्षणिक राहत भले दे दे लेकिन, इसके दूरगामी परिणाम नजर नहीं आते तो ऐसे में फैसला अब आपको करना है कि ‘गरीब’ ही बने रहकर अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी इनका गुलाम बनाना है या खुद ‘स्वावलंबी बनकर अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी आत्मनिर्भर बनाकर उनका भविष्य सुरक्षित करना है तुमको भी हक़ है कि तुम अपने सुखद भविष्य के सपने देखो उनको पूरा करने के लिये खुद में ऐसी काबिलियत पैदा करो कि अगर, तुम न भी रहो तो ये सोचकर निश्चिन्त रहो कि तुम्हारी सन्तान तो कम से कम तुम्हारी तरह गरीबी भोगने अभिशप्त नहीं रहेगी और उनके बच्चे तुम्हारे बच्चों पर राज नहीं करेंगे बल्कि, अपनी प्रतिभा से अपना आने वाला खुशियों भरा कल खुद लिखेंगे और BPL की दीवार फांदकर बाहर निकलेंगे

सनद रहे सबसे बड़े अर्थशास्त्री ‘चाणक्य’ ने कहा था...

“भ्रष्ट बेशर्म राजा और लोभी प्रजा देश के लिए दोनों घातक हैं” !!!
                 

#सावधान_बीस_फीसदी_गरीब
#आत्मनिर्भर_बनो_दूसरे_पर_निर्भर_न_रहो          
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल ११, २०१९

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