सोमवार, 22 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-११२ : #गंगा_सप्तमी_और_पृथ्वी_दिवस #प्रकृति_सरंक्षण_के_प्रति_करे_सजग



‘पृथ्वी’ और ‘जल’ दोनों के बिन जीना नामुमकिन होगा कल...

ये हम सब जानते-समझते फिर भी गाफिल रहते कि अभी भी पीने को दो घूंट पानी तो रहने को सर पर छत और जरूरत भर जमीन मुहैया हो रही है ऐसे में लगता जिस दिन इनके लिये युद्ध छिड़ेगा शायद, तभी हमारी आँख खुलेगी नहीं तो अलार्म तो रोज ही बज रहा है हम ही कान बंद कर के बैठे है आज भी यही होगा कि ये दिवस मनाया जायेगा चंद बातें की जाएगी संदेशों की भरमार होगी मगर, आज के बाद कल जिस तरह चल रहा उसी तरह सब चलता रहेगा जबकि, खतरे के संकेत मिलना शुरू हो चुके है सनद रहे कि ‘प्रकृति’ व ‘जल’ ही ऐसी चीज़ जिसक हम निर्माण नहीं कर सकते केवल सरंक्षण ही हमारे हाथ में है पर, ये जानने के बाद भी केवल चंद लोग ही है जो इसके प्रति सजग होकर मुहीम चला रहे या अपने स्तर पर कोई प्रयास कर रहे है

जिनका जिक्र पढकर भी हमारे भीतर वो जज्बा नहीं जगता जो हमें भी उनकी तरह धरातल पर उतरकर कुछ कर गुजरने को प्रेरित कर सके पर, अब जिस तरह से दुनिया के हर कोने से खबरें आ रही हम सबका ये कर्तव्य बनता कि हम अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी ही यदि निभा ले तो आने वाले विश्व युद्ध को रोक सकते है जिनके केंद्र बिंदु यही दो मुख्य घटक होंगे उस वक़्त पछताने या रोने की जगह यदि हम आज से भी भविष्य की सुरक्षा के जतन करें तो जिस तरह हमारे पूर्वजों ने हमारे लिये हरी-भरी वसुंधरा की व्यवस्था की हम भी अपनी आने वाली पीढ़ियों को कुदरत की सौगात देकर जायेंगे न कि जल, वायु और धरा का ऐसा अभाव जिसकी वजह से मानव के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाए वैसे भी हमें अपनी स्वार्थान्धता के कारण वन, जंगल और वन्य प्राणियों व वनस्पतियों को तो नष्ट कर ही दिया अब जो बाकी बचा उसे सहजने की सख्त जरूरत है

यही याद दिलाने प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ का आयोजन किया जाता और आज तो अद्भुत संयोग कि उसके साथ ही ‘गंगा सप्तमी’ या ‘गंगा अवतरण दिवस’ भी है जो हमें इन दोनों की महत्ता ही नहीं बता रहा बल्कि, बचाव के लिये भी सचेत कर रहा है क्योंकि, जीवनदायिनी ‘गंगा’ हमारे लिये महज एक नदी नहीं आध्यात्मिक व धार्मिक दृष्टिकोण से भी वो हमारे लिये पूजनीय है हम तो धरती को भी ईश्वर मानते और ऐसा करने के पीछे हमारे बुजुर्गों को यही एकमात्र उद्देश्य कि हम इन्हें इस बहाने ही सही सुरक्षित रखे पर, न जाने कैसा समय आया कि ये सब बातें हमें बैकवर्ड लगने लगी और आधुनिकता के चक्कर में हम कुदरत से लगातार दूर होते गये और आज खुद एक कृत्रिम मशीन की तरह बन गये जिसके अंदर संवेदनाएं भी इनकी ही तरह खत्म होती जा रही है जिसे बचाने अब एकजुट होकर आगे आना होगा यही इसकी सार्थकता भी है        

‘गंगा’ और ‘पृथ्वी’
दोनों के बिना जीवन नहीं
बचाये इनको हम
कदम उठाये आज अभी

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल २२, २०१९

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