बुधवार, 17 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-१०७ : #अहिंसा_के_मानवीय_अवतार #राजकुमार_वर्धमान_बने_चौबीसवें_तीर्थंकर




बिहार के इतिहास से इतने गौरवशाली नाम और इतना वैभवपूर्ण अतीत जुड़ा है कि जहाँ उसे पढ़कर मन गर्व व हर्ष से भर जाता वहीं जब आज इस राज्य की हालत देखो तो विश्वास नहीं आता कि इस धरा पर कभी ज्ञान की अविरल गंगा प्रवाहित होती थी इसकी माटी से कभी ऐसे अवतारी पुरुषों ने भी जनम लिया जो अपनी आंतरिक शक्तियों के जागरण से मानव से महामानव बन गये थे जिन्होंने जगत को अपने उच्च तपोबल व असीम अनुभूतियों से अर्जित दिव्य ज्ञान से अज्ञान के अन्धकार को मिटाने ऐसा पारसमणि सदृश अखंड ज्योतिर्मय दीप दिया जिसकी रौशनी से अंतर्मन सदैव प्रकशित रहे । उनका वो खजाना आज भी उसी तरह हमारे पास सरंक्षित है लेकिन, हम ही अपने उस प्राचीन कालखंड से न केवल दूर हो गये बल्कि, उसे भूल भी गये अन्यथा जिस ज्ञान ने हमें विश्वगुरु बनाया आज उसके रहते हमें किसी का मोहताज नहीं होना पड़ता ।

हम तो केवल अपने मानवीय गुणों प्रेम, क्षमा, धैर्य, दया, अहिंसा और शांति से ही किसी को भी जीतने की महारथ रखते है जिसके अनगिनत प्रमाण हमरे धर्मग्रंथों, वेद-पुराणों में उपलब्ध है कुछ ऐसे वास्तविक कथानक जो बताते कि अपनी सहनशीलता से हमने एक दुर्दांत दस्यु तक को महर्षि बना दिया तो किसी राक्षसी वृति के खलचरित्र को सतचरित्र बना दिया था । आज लेकिन, माहौल ऐसा कि हम अपनी स्वाभाविक वृतियों से ही पृथक हो रहे ऐसे में वही हो रहा जिसे हम देख नहीं पा रहे कि हम कृत्रिम माहौल में लगभग उसी की तरह बनाते जा रहे जो याद दिलाता कि हम अप्राकृतिक बन जाते जब हम प्रकृति से दूर हो जाते है । ग्रंथों में जितने भी महाचरित्रों के वर्णन उनका यदि सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो पाते कि सभी एक सामान्य मानव के रूप में ही सामान्य प्रक्रिया से ही इस धरती पर जन्मे लेकिन, प्रकृति के निकट रहकर उन्होंने जो सहज ज्ञान पाया उसने उनके भीतर प्राणी मात्र के लिये ऐसी कोमलता उत्पन्न की जिसने उन्हें विशाल जनमानस का ईश्वर बना दिया ।

चाहे ‘राम’ हो या ‘सिद्धार्थ’ या ‘वर्धमान’ सभी राजमहलों में जनम लेते है और उन्हें सभी वैभव-सुख आँख खोलते ही प्राप्त होते है फिर भी उनके अंतर में खालीपन होता जो उन्हें विलासिता के जीवन में रमने नहीं देता और यही भटकन है जो उन्हें उस सत्य की तलाश में इन सुविधाओं से दूर ले जाती है । इसलिये इन सभी ने एक क्षण में ही उस ‘राजयोग’ को झटक दिया क्योंकि, हमारे यहाँ मोक्ष को ही सर्वोत्तम उपलब्धि माना जाता है तो उन्होंने उसे हासिल करने के लिये वनगमन किया जहाँ कुदरत के नजदीक रहकर उन्हें वायुमंडल में व्याप्त वो आत्मिक रहस्य प्राप्त हुआ जिसको जानने के बाद फिर कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता है । इन्होने अपने जीवन दर्शन से हमको बताया कि, अंतरिक्ष के वे गूढ़ रहस्य जिनको जानने के लिये वैज्ञानिक बरसों-बरस शोध करते और न जाने कितने यंत्रों का प्रयोग करते उसे हम कुदरत के निकट जाकर सहजता में ही पा सकते है ।     

आज एक ऐसे ही महापुरुष महावीर की जयंती है जिन्होंने ‘अहिंसा परमो धर्म’ के सिद्धांत को इस तरह से आत्मसात किया कि स्वयमेव ही अहिंसा के मानवीय अवतार बन गये तो आज सभी को इस परम पावन दिवस की अनंत शुभकामनायें... !!!
             
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल १७, २०१९

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