बुधवार, 10 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-१०० : #दार्शनिक_रचनाकार_खलील_जिब्रान #जिनकी_कहानियों_में_छिपा_मनोविज्ञान




जीवन की पाठशाला में सीखकर जो लिखा जाता वो गहन अनुभव की स्याही और दक्षता की कलम से पन्नों पर उभरता है जिसमें छिपा सन्देश सीधे मर्म पर चोट लगती है और ये काम महान लेबनानी दार्शनिक व सूफी रचनाकार ‘खलील जिब्रान’ ने जब किया तो उसका असर सिर्फ उस देश विशेष नहीं बल्कि, सरहदों को लांघकर सम्पूर्ण विश्व में हुआ जिसकी वजह से जीवन की अनसुलझी बातों को भी बड़ी आसानी से समझा सकता है क्योंकि, उन्होंने व्यक्तिगत व आस-पास के परिवेश में जो भी घटित होते देखा और उन्हें देखकर जब आंतरिक विश्लेषण किया तो जो समझ में आया उसे सफों पर उतार दिया जिसमें कोई किताबी ज्ञान नहीं आत्मिक दर्शन से प्राप्त वो निचोड़ था जिसको अर्जित करने के लिये अक्सर, पाठ्य पुस्तकें कम पड़ जाती है  

जब हम इनका लिखा हुआ पढ़ते है तो अहसास होता कि कितने कम शब्दों में उन्होंने कितना गूढ़ ज्ञान कितनी सरलता से अभिव्यक्त कर दिया उनका लेखन सदैव सार्थक दिशा में लगा रहा इसलिये उसने समाज की सोच को प्रभावित किया अखिर्म निकला भी तो वो उसी समाज से था तो उसने लोगों के हृदय को भी छूआ उन्हें भी कहीं न कहीं ये महसूस हुआ कि जिस दृष्टिकोण से उन्होंने इस विचार को प्रस्तुत किया उस तरह से उसे देख व समझ पाना सबके बूते की बात नहीं अन्यथा हर कोई ‘खलील जिब्रान’ हॉट मगर, ये यश उनके ही लिये था तो उनको ही प्राप्त हुआ जिसकी डगर उतनी आसान नहीं था पर, कर्मयोगी ये नहीं सोचते वे केवल अपना काम करते है तो उन्होंने भी सतत वही किया जिसे वे देश व समाज की सोच को बदल उनको एक नया नजरिया दे सकते थे

उनका मानना था कि, “कष्ट सहकर ही सबसे मजबूत लोग निर्मित होते है और सबसे महान चरित्रों पर घाव के निशान होते है” उनकी ये उक्ति महज़ कागजी बयानी नहीं बल्कि, उनके अपने जीवन के अनुभव से निकली वो भोगी हुई पीड़ा थी जिसके द्वारा उनके संघर्षों को समझा जा सकता है जिसमें कष्टों की भरमार थी लेकिन, ये उनके सोचने का ही अलहदा ढंग था जिसने उनको इन तकलीफों से टूटने की बजाय इतना मजबूत बना दिया कि फिर कोई भी मुश्किल या बाधा उनको किस तरह से बिखेर सकती थी तो उन्होंने हर तरह के विरोध का सामना किया पर, अपनी रचनाधर्मिता को किसी भी वजह से रुकने नहीं दिया क्योंकि, वे कोई साधारण इन्सान तो थे नहीं उनका तो जन्म ही अपने सृजन व कृतित्व से सामाजिक रुढियों को तोड़कर उसकी जगह नयेनियमों का निर्माण करना था

अपनी अद्भुत लेखन शैली व कल्पना शक्ति से उन्होंने गद्य, पद्य व चित्रकला तीनों ही विधा के माध्यम से अपनी कला का परिचय दिया जिनके माध्यम से दुनिया ने उनकी बहुआयामी प्रतिभा को पहचाना और ये जाना कि कोई भी चीज़ जैसी नजर आती जरूरी नहीं कि उसकी हक़ीकत वही हो उसके भीतर भी कोई रहस्य छिपा हो सकता है जिसे देखने के लिये उनकी जैसी नजरों को होना निहायत ही जरुरी और जिनके पास वो नहीं वे उसे पढ़कर भी उस पहलू को समझ सकते है तो जितना उनको पढ़े उतना ही नये-नये रहस्यों से परिचित होते है ये इस जगत का बहुत बड़ी क्षति जो महज 48 की कम उम्र में हमने उनको गंवा दिया अब बस, उनकी लिखी पाती ही हमारी थाती है और आज उनके स्मृति दिवस पर उनको पढ़ना-समझना ही उनका वास्तविक पुण्य स्मरण है ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल १०, २०१९

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