रविवार, 14 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-१०४ : #भारत_रत्न_भीमराव_अम्बेडकर #सामाजिक_समानता_के_प्रबल_पक्षधर




14 अप्रैल को सम्पूर्ण देश में संविधान निर्माता के रूप में स्थापित ‘डॉ भीमराव अम्बेडकर’ का जन्मदिन उसी गरिमा और सम्मान के साथ मनाया जाता जिसके वो हकदार है और जिन संघर्षों के बाद उन्होंने ये मुकाम हासिल किया उसको समझाना सबके लिये अधिक जरुरी है क्योंकि, उन्होंने जिस कालखंड में जनम लिया वो आज के संदर्भ में अधिक कठिनाइयों भरा था फिर भी उन्होंने बिना ‘आरक्षण’ के न केवल खुद को उच्च शिक्षित किया बल्कि, अपना ऐसा व्यक्तित्व व शख्सियत बनाई कि उनके बिना आज़ाद भारत के संविधान की रुपरेखा बनाया जाना मुमकिन नहीं था तो ये जिम्मेदारी उनके कंधों पर डाली गयी उनकी काबिलियत को देखकर न कि उनको जात कि उन्होंने देश-विदेश से जो डिग्रियां व ज्ञान हासिल किया उसका निचोड़ वो देश की आधारशिला तय करने वाले इस सर्वोच्च ग्रन्थ में समाहित कर एक ऐसी पुस्तक लिख सके जिसमें हर धर्म, हर वर्ग, हर समुदाय और हर व्यक्ति को उसका हक़ व देश को सुरक्षित ढांचा मिल सके

इसके बाद उन्होंने भी दुनिया भर के सभी संविधान का अध्ययन कर जो ‘भारतीय संविधान’ बनाया वो अपने आप में एक ऐसा अनूठा महाकाव्य बन गया जिसमें सभी को संतुष्ट करने का भरसक प्रयास किया गया जिससे कि संतुलन स्थापित हो सके क्योंकि, ये हमारा देश विविधताओं ही नहीं विविध जातियों के लोगों का भी आश्रय स्थल है तो किसी को भी उससे कोई शिकायत न हो फिर भी कहीं न कहीं उनका पलड़ा एक वर्ग विशेष की तरफ ख़ास झुक गया जो प्रश्न खड़ा करता कि जब वे स्वयं इतने पढ़े-लिखे थे और उन्होंने उस दौर की विषमताओं का सामना करते हुये अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई तो फिर वे अपने उस संप्रदाय के लिये ऐसी व्यवस्था क्यों कर के गये क्यों नहीं उन्हें भी यही सन्देश या सबक देने की कोशिश की गयी कि तुम भी मेरी तरह इसी समाज में रहकर अपने लिये अपने बूते पर जगह बनाओ अब तो हम स्वतंत्र है तो मुश्किलें उतनी नही जितनी कि गुलामी के दिनों में झेलनी पड़ी थी अब तो अपना देश, अपनी सरकार और अपना ही राज है तो फिर आरक्षण की सीढ़ी लगाकर चढ़ने की जगह अपने पैरों पर दम से खड़ा हुआ जाये जिस तरह मैंने कर के दिखाया आपमें भी तो वो कूवत है कि आप भी कर सको आखिर, उसी व्यवस्था में से निकलकर ही तो वे भी साधारण से अ-साधारण बन गये थे

ऐसे में उनको शैक्षणिक रूप से मजबूत करना ही पर्याप्त था क्योंकि, ज्ञान का दीपक तो हर तरह के अंधकार को पराजित करने की क्षमता रखता है फिर भी ऐसा कर उन्होंने समानता के अधिकार को स्वतः ही कमजोर कर दिया उसके बाद भी हम उनकी दूरदृष्टि व गहन सोच की वजह उनको समानता का प्रबल पक्षधर मानते है जो उन्होंने हर तरह की असमानता को झेलकर भी खुद को टूटने नहीं दिया हर गलत का विरोध कर अपना ही नहीं अपनों का भी भला सोचा और देश को एकसूत्र में बांधने के लिये जो कुछ संभव था वही किया जिसके आधार पर आज हर कोई उनके साथ खड़ा दिखाई देता है पर, जो उनके विशेष अनुयायी उनको आज उनकी जयंती पर उनकी आत्मकथा पढ़कर ये संकल्प लेना चाहिये कि वे आरक्षण नहीं सक्षमता के बूते पर वही ऊँचाई प्राप्त करेंगे जहाँ पर उनको देखने के लिये वे आजीवन कर्मरत रहे... आज जयंती पर उनको नमन... !!!                
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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल १४, २०१९

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