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सोचो...
‘किताबें’
जो न होती अगर
जान पाते कैसे
सुनहरा अतीत
अपना
मिलती कहाँ
से
ज्ञान-विज्ञान
की बातें
धर्म की गाथाएँ
पहचानते किस
तरह
मोतियों जैसे
वर्ण
समझते कैसे
जीवन का ककहरा
सीखते फिर किस
तरह
गिनती और पहाड़े
उलझ जाते
रिश्तों के गणित
जान पाते न कभी
हम
शब्दों के गूढ़
अर्थ
लिखना-पढ़ना भी तो
न आता
कि पुस्तकों से
ही सीखा
अक्षर होता ‘ब्रम्ह’
मिटाता जो हर
एक भ्रम ।
....
‘किताबें’
न होंगी अगर तो
खो जायेगा
छिपा वो रहस्य
साथ उनके
बड़े जतन से
खोजा जिसे
सदियों की
परतों से
विद्वान और मनीषीयों
ने
देकर गये हमको
गौरवशाली वो इतिहास
गर्व करते है जिस
पर हम
हो रहा सुलभ आज
इंटरनेट’ के
जरिये भले
कल को हो सकता
अंतरिक्ष में
फिर गुम
हो जायेगा
तब्दील
उन्हीं सूक्ष्म
कणों में दुबारा
मुश्किलों से
किया गया
परिवर्तित जिनको
बनाया अक्षर-अक्षर
‘ब्रम्ह’
हो न जाये पुनः
भ्रम ॥
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#World_Book_and_Copyright_Day
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© ® सुश्री इंदु
सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
अप्रैल २३,
२०१९
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