मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-९२ : #बचपन_से_ही_पहचाने #ऑटिज्म_को_न_कभी_नकारे




कोयल... कोयल... कोयल...

‘समायरा’ लगातार अपनी ६ महीने की बच्ची को आवाज़ दे रही थी लेकिन, न तो उसने पलटकर देखा और न ही मुस्कुराई जिसे उसने सहज ही लिया कि शायद, अभी छोटी है तो न समझती होगी ऐसा सोच वो अपने रोजमर्रा के कामों में लग गयी वैसे भी उसका ख्याल था कि हर बच्चा दूसरे से अलग होता है एवरी चाइल्ड इज स्पेशल

धीरे-धीरे समय बदला वो ११ महीने की हो गयी लेकिन, न तो खुद से पलट पाती न ही किलकारियां ही दूसरे बच्चों की तरह तेज-तेज किलकारियां ही भरती बल्कि, जब उसकी माँ उसे गोद में लेती तो आँखें मिलाने की जगह इधर-उधर ताकती रहती जबकि, अब थोड़ी परेशानी के बाद नाम सुनकर रिस्पांस तो देने लगी थी पर, चेहरे की मुस्कान अब भी उतनी ही दुर्लभ थी

उसके पास अपनी नौकरी और घर के काम-काज के बीच इतना समय ही नहीं था कि वो उसके साथ ज्यादा-से-ज्यादा समय बिता सकती तो उसे लगता इसकी एक वजह उसकी अपनी व्यस्तता भी हो सकती है जिसके कारण वो खुद में ही लीन रहने लगी थी

इस तरह देखते-देखते उसका पहला जन्मदिन आया घर में उसने पार्टी का आयोजन किया तो सबने कहा कि अरे, ये तो एक साल की हो गयी पर, अभी तक चलती नहीं और बोलती भी नहीं तो उसने ये कहकर कि कुछ बच्चे देर से चलते-बोलते उसे टाल दिया लेकिन, इस दौरान उसने महसूस किया वो दूसरे बच्चों के साथ खेलने-कूदने की जगह बार-बार अपने कमरे में जाने की जिद कर रही थी  और अपनी आदतानुसार समय पर सो गयी तो उसे लगा अकेली होने के कारण उसे सबके साथ मिक्स होने में दिक्कत हो रही तो अब इसे प्ले स्कूल भेजना शुरू कर देती हूँ दूसरे बच्चों से मिलेगी तो जल्दी ही सब सीख लेगी

इस तरह धीरे-धीरे वो 3 साल की हो गयी लेकिन, उसकी आदतों में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया बल्कि, प्ले स्कूल के स्टाफ ने भी उसे लगातार बताया कि ‘कोयल’ न तो खेल, न ही किसी क्रिएटिविटी/एक्टिविटी में हिस्सा लेना पसंद करती और न ही चीजों को जल्दी ही समझ पाती है तो उसे लगा कि कुछ तो है जिसे अब नजर अंदाज करना ठीक नहीं तो अगले दिन उसे डॉक्टर के पास ले गयी और जो भी लक्षण उसने इस अन्तराल में उसके भीतर देखे विस्तार से उनको बताया जिसे सुनकर डॉक्टर ने जो उसे बताया उसके लिये एकदम नया था

डॉक्टर बोली, आपके बताये लक्षणों के आधार पर तो यही साबित होता कि आपकी बच्ची ‘आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर’ (ASD) या ‘स्वलीनता’ जो कि एक न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम है से पीड़ित लगती है यूँ तो इसे जांचने कोई टेस्ट नहीं पर, जो कुछ आपने बताया वो यही दर्शा रहा क्योंकि, ‘आटिज्म’ में किसी बच्चे में मुख्य तौर पर शुरुआती यही संकेत दिखाई देते है...
  
इनमें विकास की गति धीमी होती है इसलिये इसने भी देर से मुस्कुराना, चलना और बोलना शुरू किया क्योंकि, उसका दिमाग उसे समझ नहीं पाता था

इनके भीतर कम्युनिकेशन सम्बन्धी समस्या भी होती तो वे आवाजें सुनकर उसके अनुसार प्रतिक्रिया नहीं दे पाते जैसा कि कोयल के केस में भी हुआ   

ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास की भी कमी होती तो ये आँख मिलाने से कतराते और किसी भी तरह की सामाजिक गतिविधि में भी हिस्सा लेने से भी दूर रहता है

आटिज्म की वजह से बच्चों की रचनात्मकता पर भी असर पड़ता तो वे क्रिएटिव एक्टिविटी कर पाने में भी सक्षम नहीं होते है

जब बच्चा इससे ग्रसित होता तो उसे एक निश्चित दिनचर्या या रूटीन की आदत हो जाती जिसमें जरा-भी परिवर्तन करने पर वे चिडचिडे हो जाते है   

उनकी बात सुनकर समायरा ने सहमति जताई कि ये सब लक्षण कोयल में नजर आ रहे है तो उसने तुरंत पूछा कि, ये उसके साथ ही क्यों हुआ इसकी वजह क्या है ?

डॉक्टर – यूँ तो इसका कोई विशेष कारण नहीं लेकिन, कभी-कभी किसी बच्चे का दिमागी विकास पूरा नहीं होता जैसे कि आजकल का तनावपूर्ण माहौल उसमें ये आम बात हो गयी और दूसरा कारण, गर्भावस्था में खान-पान पर अधिक ध्यान न देना फ़ास्ट फ़ूड के जमाने में लोग इस पर ही अधिक निर्भर हो रहे तो कहीं न कहीं ये भी इसे बढ़ावा दे रहा और आंशिक रूप से आनुवंशिकता भी इसके लिये उत्तरदायी हो सकती है   

समायरा कुछ रुआंसी होती हुई बोली, इसका इलाज क्या है और मुझे क्या करना चाहिये ?

डॉक्टर – आप इतनी परेशान न हो आपकी बच्ची लाखो-करोड़ो में एक है अतः आपको इसका अधिक ख्याल रखने की जरूरत चूँकि ये स्लो लर्नर तो आपको धैर्य के साथ इसके साथ समय बिताना होगा और सबसे अहम बात कि इसकी ग्रोथ भी नार्मल नहीं तो आपको अपनी अपेक्षाओं पर भी लगाम लगानी होगी और इसे अन्य बच्चों से कम्पेयर करने की भूल न करें इसके अलावा चूँकि इसे भाषा समझने में दिक्कत होती तो आप छोटे-छोटे वाक्यों में इससे सम्वाद करें, भाषा आपकी सहज-सरल हो, उसे बोलने का मौका दे और बोलने पर शाबाशी भी दे न कि हतोत्साहित करें, इसे नये लोगों से मेल-जोल करने में परेशानी होती तो पहले कम बच्चों के बीच खेल-खिलाये फिर उनकी संख्या बढ़ाये, पार्क में घुमाने ले जाये और साथ-साथ योग या व्यायाम भी कराये आपको परिवर्तन दिखाई देंगे लेकिन, कभी-भी ये न भूले कि आपकी बच्ची कॉमन नहीं स्पेशल है    

डॉक्टर की बात सुनकर समायरा को थोड़ी राहत महसूस हुई उसने सब बातों को नोट किया और अपने मन में उसे किस तरह से क्रियान्वित करना इस पर भी प्लानिंग तैयार कर ली घर लौटकर सबसे पहले तो उसके साथ इत्मीनान से समय बिताया फिर जब वो खा-पीकर सो गयी तो अन्य पेरेंट्स को जागरूक करने ‘विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस’ के दिन 2 अप्रैल को एक बड़ी पोस्ट लिखकर इसके बारे में विस्तार से समझाया जिससे कि कोई माता-पिता उसकी तरह इतनी देर न लगाये ये समझने में बल्कि, जल्द ही सजग होकर उसके प्रति जिम्मेदार बनकर अपनी भूमिका निभाये न कि उसे बीमार समझकर टेंशन में समय बिताये क्योंकि, ये कोई ‘डिसीज’ नहीं ‘डिसऑर्डर’ है जिसे कंट्रोल किया जा किया जा सकता है  

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल ०२, २०१९

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