शनिवार, 13 अप्रैल 2019

सुर-२०१९-१०३ : #सौ_साल_बीत_गये_है #जख्म_अब_तक_वो_टीसते_है


१३ अप्रैल १९१९
ये तारीख जब पहली बार इतिहास में पढ़ी तब से ही एक अमिट दर्द की तरह अंकित हो गयी जिसे पढ़कर ही नहीं याद कर के भी रूह कांप जाती है कि कभी ऋषि-मुनियों की इस परम पावन भूमि शांति के इस टापू पर ऐसा भी नरसंहार हुआ जिसमें निर्दोष-मासूम असहाय बूढ़े-जवान और बच्चे ही नहीं बल्कि, अजन्मों को भी निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया गया था जिस क्रूर हत्यारे ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया उसने अपनी आंखों के सामने न केवल उस निर्मम हादसे को घटित होते देखा बल्कि, उस पर तो उन लोग की चीख-पुकार उनके आंसुओं का कोई असर नहीं हुआ वो तो उस एकमात्र दरवाजे पर मौत की दीवार बनकर खड़ा हो गया जिसके माध्यम से वे अपनी जान बचा सकते थे ।

उन असंख्य लोगों का कसूर क्या था ?

केवल, इतना कि वो उस देश के वासी थे जिस पर जबरन फिरंगियों ने अपना कब्जा जमाकर उन्हें अपना गुलाम बना लिया था और वो उनसे खुद को स्वतंत्र कराने की कोशिश कर रहे थे जिसका परिणाम उन्हें अपनी जान देकर भुगतना पड़ा पर, इस भीषण अमानवीयता ने उस कालखंड के अनगिनत किशोर व युवाओं में ब्रिटिश सरकार के प्रति इतना आक्रोश भर दिया कि इसके बाद उन्होंने जो अंतिम क्रांति की उसकी वजह से लगभग 200 सालों से अत्याचार कर रही इस तानाशाह सरकार को अब इस घटना के महज़ 27 साल बाद ही ये देश छोड़कर जाना पड़ा थे

उसके बाद भी मन के किसी कोने में जो एक कसक शेष रह गयी थी जिसने ‘उधम सिंह’ के दिल में इस ऐसा नासूर बना दिया कि उसने लंदन जाकर उस ज़ालिम हत्यारे से इसका बदला लेकर भारत माता का कर्ज चुकाया फिर भी ‘जलियांवाला बाग’ की धरती पर जो रक्त बहा, उसकी दीवारों ने उन बेकुसूरों की जो दर्द भरी चीखें सुनी और वो गोलियां जो सीना छलनी कर जगह-जगह अपने निशान छोड़ गई सब उस जगह में आज भी उसी तरह उस हिंसक घटना की गवाही देते है ।

वैशाखी की खुशियों में इस क्रूरतम नरसंहार ने मातम की ऐसी उदासी मिला दी कि उसके सदमे से निकलना आज सौ साल बाद भी मुमकिन नहीं क्योंकि, इतिहास का ये रक्तरंजित पन्ना इतने बरसों के पश्चात भी मन में वही टीस उत्पन्न करता है जिसे उस वक़्त उन लोगों ने न जाने कैसे सहा होगा जिनके अपने इस जुल्म का शिकार हुये होंगे हम तो सिर्फ पढ़कर उस कल्पना मात्र से सिहर जाते है वे जिन पर ये गुजरा वे तो जीते-जी ही मर गये होंगे जिनके जिगर के टुकड़े एक दरिंदे की राक्षसी प्रवृति की वजह से यूं असमय मृत्यु का ग्रास बन गये होंगे कोई वृद्ध असहाय रुग्ण बिस्तर पर लेटे-लेटे इंतज़ार में पाषाण बन गया होगा तो कोई बच्चा अपने माता-पिता की बाट जोहता रोते-रोते सदा के लिए सो गया होगा तो कोई मां खाना बनाकर अपने बाल-गोपालों की राह ही निहारती रह गयी होगी

उफ, सोच भी नहीं पाते कि इस एक कांड ने केवल उनको ही नहीं मारा जो वहां उपस्थित थे उनके साथ-साथ उनकी भी मौत लिख दी जो वहां गये अपनों पर आश्रित थे उन्हें क्या पता था कि ये उनका आखिरी दिन होगा ये जा तो रहे खुशी-खुशी पर लौटकर कभी नहीं आयेंगे बेमौत मारे जायेंगे । न जाने कितनी कहानियां इस दिन आधी-अधूरी रह गयी होंगी जो उसी तरह खत्म हो गयी जिस तरह इस कहानी के किरदारों को नहीं पता था कि उनकी जीवन लीला कोई यमराज बनकर असमय ही समाप्त करने वाला है ।

अभी 10 अप्रैल को ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने संसद में जलियांवाला बाग हत्याकांड पर खेद प्रकट करते हुए इसे शर्मनाक बताया उन्होंने इस घटना पर दुख व्यक्त किया यह पहला मौका होगा जब किसी ब्रिटिश पीएम ने खुलकर इस घटना पर दुख प्रकट करते हुए इसकी निंदा की है। अब तक जलियावाला बाग हत्याकांड को लेकर किसी भी ब्रिटिश पीएम ने खुलकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्ति नहीं की थी फिर भी इसके गहरे जख्म है कि केवल जलियांवाला बाग सुनते ही हरे हो जाते है ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
अप्रैल १३, २०१९

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